पिछले दो-तीन दिनों से अपने संग्रह के तमाम पेन की देखभाल का काम चल रहा
है. उनकी धुलाई-पुछाई हो रही है, कुछ नए पेनों को
काम पर लगाया जा रहा है, कुछ पुराने पेनों को आराम दिया जा रहा
है. जो गिफ्ट किये गए पेन हैं, उनको सुरक्षित
रखने का काम चल रहा है. इसी में एक पेन आँखों के सामने से गुजरा तो उससे जुड़ी एक
घटना भी न चाहते हुए याद आ गई. घटना के बरबस याद आ जाने के पीछे छोटा भाई मिंटू है, जो अब बस यादों में है.
वो फाउंटेन पेन
अपने आकार में बहुत छोटा है. उरई के परिचित दुकान वाले हमारे पेन के, विशेष रूप से फाउंटेन पेन के शौक को जानते हैं, ऐसे में यदि कोई विशेष पेन या नया पेन हुआ करता
है उनके पास तो वे हमें सूचित कर देते हैं. बहुत साल पहले किसी सामान लेने के लिए
दुकान पर पहुँचे तो पता चला कि एक बहुत छोटा पेन आया है, वो भी फाउंटेन. हमने दिखाने को कहा और पेन भी ऐसा था कि पहली नजर का प्यार
हो गया उससे. बस बिना किसी संकोच के साथ उसके साथ सम्बन्ध जोड़ते हुए उसे घर ले
आये.
नए-नए पेन का
उपयोग करने का अपना ही मजा है, बस उसी मजे को
लेते हुए घर आते ही उसमें स्याही भरी गई और लिखना शुरू. ऐसे ही एक दिन अपने कमरे
में बैठे कुछ लिखा पढ़ी हो रही थी. उसी समय सबसे छोटे वाले भाई का आना हुआ. उसने
पेन देखा और आश्चर्य से उसे अपने हाथ में लेकर बोला, ये तो बहुत अच्छा लग रहा, बहुत छोटा
भी है. उसकी आँखों की
चमक बता रही थी कि अगले को वो पेन चाहिए है. यहाँ एक पल रुक कर आप सबको बता दें कि
पेन, घड़ी के शौक भी उसे हमारी तरह रहे हैं. हमने
कहा कि वो पेन रख दो, तुम्हारे
लिए अलग रखा है एक पेन.
उसे जब ये
भरोसा हो गया कि उसके लिए भी छोटा सा पेन रखा है तो उसी ख़ुशी के साथ अचानक से उसका
स्वर कुछ गम्भीर हुआ और हमसे बोला कि भाई जी, ऐसे छोटे पेन से न लिखा कीजिये. हमने उसकी तरफ सवालिया निगाह से देखा तो उसने
पेन अपनी मुट्ठी में बंद करते हुए कहा कि आपने सुना तो होगा इसे....
मुठी भर कलम, तबा की स्याही,
ताको
विद्या कभऊँ न आई.
उसके बहुत ही
गंभीरता से इतना कहते ही हमने बहुत जोर का ठहाका लगाया. दो-तीन मिनट की हमारी
अनियंत्रित हँसी को रोकने के बाद हमने उससे कहा कि दो पी-एच.डी. कर ली और कितनी
विद्या चाहिए, जो मुठी भर कलम इस्तेमाल करने से न आएगी. हमारे इतना कहते ही
उसकी भी हमारे अंदाज वाली हँसी गूँज उठी.
आज उस पेन को
देखकर भरी आँखें लिए बस मुस्कुरा कर ही रह गए क्योंकि हमारी हँसी में अपनी हँसी मिलाने
वाला वो भाई हमारे साथ न था.
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-04-2022) को चर्चा मंच "गुलमोहर का रूप सबको भा रहा" (चर्चा अंक 4399) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --