आज बहुत ज्यादा
लिखने का मन नहीं है. इस मन न होने के कारण कोई विशेष नहीं है, बस मन ही नहीं है. इधर देखने में आ रहा है कि
इंटरनेट पर बहुतायत लोग बहुत बड़ा लिखा हुआ पढ़ने के मूड में रहते नहीं हैं. मोबाइल
पर हों या फिर कम्प्यूटर पर, ऐसे लोग
जल्दी-जल्दी स्क्रॉल करते हुए आगे बढ़ने में ज्यादा विश्वास करते हैं. ऐसी स्थिति
तब है जबकि एक तरह से डाटा फ्री है. न भी फ्री कहें तो बहुत अधिक सस्ता है.
यहाँ यही बात
समझ नहीं आती कि आखिर सस्ता या फ्री समान डाटा देने का क्या उद्देश्य है. फ्री के
जैसी कॉल देने के पीछे मानसिकता क्या है? अब लोगों को
मोबाइल पर ही चिपके देखा जाता है. अनावश्यक बातचीत में व्यस्त बने रहना दिखता है.
ऐसे समय में वे दिन याद आते हैं जबकि कॉल चार्ज बहुत मंहगा हुआ करते था. कम से कम
लोग अनर्गल बातचीत में व्यस्त तो नहीं रहते थे. अब घंटों के हिसाब से आपस में
बातचीत हुआ करती है. इस अनावश्यक वार्तालाप ने संबंधों को मजबूत करने की बजाय
कमजोर ही किया है.
आप सबको
आश्चर्य हो रहा होगा, इस अंतिम लाइन को पढ़कर मगर सत्यता यही
है. आज बस इतना ही, इस पर जल्द ही कुछ विस्तार से.
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