11 जनवरी 2022

आखिर शास्त्री जी के साथ क्या हुआ था?

11 जनवरी, देश के दुर्भाग्य की तारीख. इस दिन देश के लाल ने विदेशी धरती पर अंतिम साँस ली थी. जी हाँ, आप सही समझ रहे हैं. देश के दूसरे और अत्यंत लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में ही ये बात कही गई. वर्ष 1966 को ताशकंद किस कारण से शास्त्री जी का जाना हुआ, वहाँ समझौते के बाद की उनकी गतिविधियाँ क्या रहीं, रात को कैसे भगदड़ मची इस बारे में बहुत बार वही सामान्य सी बात लिखी जा चुकी है, हम सभी के द्वारा बराबर पढ़ी भी जाती रही है. किसी भी सरकार की तरफ से शास्त्री जी की सामान्य और असामान्य मृत्यु के बीच की बारीक सी रेखा न मिटाई जा सकी, झीना सा पर्दा गिराया न जा सका. ऐसा क्यों होता रहा, क्यों हुआ ये बस सवाल बने हुए हैं मगर इनके जवाब मिलते न तब दिखे थे और न अब दिख रहे हैं.


शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़े तमाम सारे मुद्दों, पहलुओं को अत्यंत नजदीक से अध्ययन करने वाले अनुज धर कुछ समय पूर्व आई विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स से बहुत आशान्वित दिखाई दे रहे इसके पीछे वे अमेरिका की एक फिल्म का हवाला देते हैं, जिसके आने के बाद से अमेरिका में खलबली मच गई थी. यह फिल्म जॉन एफ. कैनेडी की हत्या से सम्बंधित तमाम दावों पर आधारित थी. बताया जाता है कि इस फिल्म के आने के बाद अमेरिका में कैनेडी की हत्या की सच्चाई जानने के लिए लोगों का दबा आक्रोश बाहर निकल आया था. ‘द ताशकंद फाइल्स फिल्म के आने के बाद ऐसा कुछ भारत देश में तो दिखाई नहीं दिया. क्या इसलिए कि यहाँ कि जनता वास्तविक जीवन पर बनी ऐसी फिल्मों को भी मनोरंजन की दृष्टि से देखती है? कहीं ऐसा तो नहीं कि यहाँ फिल्मों का सम्बन्ध नाचने-गाने से जोड़ दिया गया है? कहीं ऐसा भी तो नहीं कि फिल्मों का तात्पर्य कमाई करना, करोड़ों रुपयों के क्लब में शामिल होना बना हुआ है? या फिर देशवासी शास्त्री जी की मृत्यु का सच जानने के इच्छुक नहीं?




इस फिल्म की बात को एक तरफ कर भी दिया जाये तो ऐसा सच जान पड़ता है कि आम भारतीय नागरिक अब किसी भी रूप में देश की दो संदिग्ध मौतों के खुलासे के लिए लालायित नहीं है. उसे इसकी फ़िक्र नहीं कि देश के दो अत्यंत लोकप्रिय व्यक्तित्वों की मृत्यु का सच सामने आये. शास्त्री जी की तरह ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु का सच अभी भी परदे के पीछे छिपा हुआ है. बहरहाल, आज चर्चा शास्त्री जी की. एक पल को सोचिये कि देश का प्रधानमंत्री देश से बाहर किसी समझौते के लिए जाए और वहाँ से उसका जीवित आना न हो. मृत्यु भी सामान्य सी स्थिति में न हुई हो. उस व्यक्ति का पार्थिव शव जब विदेश से अपनी धरती पर लाया जाये तो उसका पोस्टमोर्टेम न करवाया जाये. शव भी देखने में सामान्य न समझ आ रहा हो. ऐसी तमाम स्थितियों के बाद सबकुछ सामान्य तरीके से गुजर गया. इतने वर्षों के बाद भी शास्त्री जी के परिजन कैसे अपने दिल को समझाते होंगे? कैसे उस समय में देश की सरकार ने चुप्पी साध ली होगी? कैसे अभी तक तमाम सरकारें ख़ामोशी बनाये बैठी हैं?


और भी बहुत सारे सवाल हैं जो मन को व्यथित कर जाते हैं. दिल-दिमाग में उथल-पुथल उस समय और बढ़ जाती है जबकि अनुज धर की पुस्तक ‘शास्त्री के साथ क्या हुआ था? में दिए गए तथ्यों, विचारों, रिपोर्टों, बयानों आदि को गंभीरता से पढ़ा जाता है. पृष्ठ दर पृष्ठ बहुत कुछ सामने आता रहता है. चूँकि किसी भी पुस्तक के साथ वैधानिकता का सवाल जुड़ा होता है, ऐसे में उस पुस्तक के अंश यहाँ दे पाना हमारे लिए सहज नहीं. इसके बाद भी कह सकते हैं कि अनुज धर ने बहुत से तथ्यों के आलोक में बहुत सी स्थितियों को स्पष्ट किया है. बहुत से उपायों, कदमों की भी सम्भावना व्यक्त की है.


फिलहाल तो हम सभी शास्त्री जी को बस श्रद्धांजलि ही दे सकते हैं. सच कितना क्रूर हो सकता है, ये तो उसी समय पता चलेगा जबकि झीना सा पर्दा गिरे या फिर वो बारीक सी रेखा मिटे.

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