24 अक्तूबर 2021

मुलाकात एक महान व्यक्तित्व से

कैप्टन लक्ष्मी सहगल से दो बार मिलने का अवसर मिला था. पहली बार मुलाकात बहुत संक्षिप्त रही और उस मुलाकात में बातचीत का सौभाग्य भी मिला था. दोबारा जब मिलना हुआ तो बस उनको दूर से देखने भर का अवसर मिला. उनसे न बात कर सकते थे, न उनका स्पर्श कर सकते थे. पहली बार उनसे मिलना हुआ था अपने पर्यावरण विषय पर आयोजित होने वाले एक सेमिनार के सम्बन्ध में. उन्होंने अपनी आयु, स्वास्थ्य आदि का हवाला देते हुए सेमिनार में उपस्थित होने में असमर्थता व्यक्त की. हम उनके एक तरह के इंकार से दुखी थे और उसके बाद दोबारा जब मिलना हुआ तो उससे बड़े दुःख के साथ.


खबर मिली कि वे कानपुर के एक मेडिकल सेंटर में एडमिट हैं. उनको देखने वहाँ जाना हुआ तो दूर से ही दर्शन का मौका मिला. यह मौका भी बहुत देर के लिए नहीं मिला था, सबको भी नहीं मिला था. उनकी पुत्री सुहासिनी अली से मुलाकात हुई और उनसे लक्ष्मी सहगल जी से पिछली मुलाकात के बारे में बताते हुए बस चंद पल के दर्शन कर लेने का निवेदन किया. सुहासिनी अली जी को हमारी बातों से जो भी एहसास हुआ हो, एक सेकेण्ड अपने आपसे जैसे विचार किया और फिर लक्ष्मी सहगल जी के दर्शन कराने पर सहमति व्यक्त की. हमें एहसास नहीं था कि लक्ष्मी सहगल जी को आखिरी बार देख रहे हैं. उनकी आँख बंद किये छवि को अपनी आँखों में भरकर, सुहासिनी जी से जरा सी बात करके हम आँखों में एक नमी लिए वापस उरई लौट आये. उसी माह उनके देहांत की खबर हम लोगों को रुला गई. उनका निधन 23 जुलाई 2012 को कानपुर में ही हुआ. उनकी सामाजिकता को, समाज के प्रति अपनी जिम्मेवारी को ऐसे समझा जा सकता है कि उन्होंने अपनी देह को दान कर दिया था. उनके निधन के पश्चात् उनकी पार्थिव देह कानपुर में मेडिकल कॉलेज को सौंप दी गई.




यह हम जैसे लोगों के लिए गौरव का विषय है कि ऐसी महान विभूति से बात करने का, उनका स्पर्श करने का, उनके दर्शन करने का अवसर मिला. गर्व का विषय इसलिए है क्योंकि वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी थीं. फ़ौज में स्थापित रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट की कमाण्डर थीं. आजाद हिन्द सरकार का गठन होने पर उनको महिला मामलों का मंत्री बनाया गया था. उनका जन्म 24 अक्टूबर 1914 को एक तमिल परिवार में हुआ था. राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रभाव उन पर बचपन से ही था. इस कारण जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो वे सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल हो गईं. 1943 में अस्थायी आज़ाद हिन्द सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं.


सन 1947 में उन्होंने कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं. यहाँ आकर उन्होंने अपनी चिकित्सा शिक्षा को जनसेवा में लगाया और इसके साथ-साथ वे वंचितों की सेवा में लग गईं. उनके समाजोपयोगी कार्यों, सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें सन 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया.


उनकी जन्मतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि.

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