30 जून 2021

सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा

वर्तमान दौर में सोशल मीडिया के महत्त्व से कोई इंकार नहीं कर सकता है. तकनीकी विकास के साथ जैसे-जैसे इंटरनेट की उपलब्धता, सहजता आम आदमी तक होती गई, सोशल मीडिया ने और भी तेजी से अपना फलक विस्तृत किया. आज का दिन, यानि कि 30 जून को सोशल मीडिया दिवस के रूप में जाना जाता है. इस दिवस को मनाये जाने की शुरुआत वर्ष 2010 से हुई. सबसे पहले वर्ष 1997 में एंड्रयू वेनरिच ने पहला सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सिक्सडिग्री लांच किया था. वर्ष 2001 में इसके दस लाख से अधिक यूजर्स होने के बाद इसे बंद कर दिया गया. समय के साथ बहुत सारे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म सक्रिय रूप से सामने आते रहे. वर्तमान में लगभग सभी व्यक्तियों के हाथ में स्मार्ट फोन है, फोन में सस्ती इंटरनेट सुविधा है ऐसे में शायद ही कोई व्यक्ति सोशल मीडिया से दूर होगा. सभी की सोशल मीडिया पर आने की, उसके उपयोग करने की अपनी ही कहानी होगी. सोशल मीडिया के अपने अनुभव भी होंगे, कुछ खट्टे होंगे तो कुछ मीठे भी होंगे.


सोशल मीडिया पर हमारी उपस्थिति ब्लॉग के माध्यम से हुई थी. वर्ष 2008 में मई माह में सबसे पहले अपना ब्लॉग बनाकर पहली पोस्ट लिखी. उसके बाद छोटे भाई ने उस समय खूब प्रसिद्धि पाए मंच ऑरकुट के बारे में बताया. पहली बार में समझ ही नहीं आया कि ये क्या चक्कर है. उसी ने ऑरकुट पर हमारा एकाउंट बनाया और कुछ दिन की अपनी माथापच्ची के बाद समझ आया कि इसमें करना क्या है, इससे होना क्या है. उसी दौरान फेसबुक से भी परिचय हुआ. अपना एकाउंट भी बनाया मगर अब फिर वही पुरानी कहानी कि इसका किया क्या जाये, इसमें किया क्या जाये? कई महीनों तक बस एकाउंट ही बना रहा और किया-धरा कुछ भी नहीं. कई महीनों के बाद ब्लॉग के सहारे ही ऑरकुट से चलते हुए फेसबुक तक आये और फिर वहीं से बहुत सारे सोशल मीडिया मंचों पर पहुँचने का अवसर मिला.




इन तमाम सारे मंचों में ऑरकुट तो अब बंद ही है. ब्लॉग के पुराने साथियों में कुछ अभी भी वहाँ सक्रिय हैं और बहुत सारे साथी फेसबुक पर अपनी सक्रियता दिखाने में लगे हैं. हमारा अपना व्यक्तिगत अनुभव ये रहा है कि तमाम सारे मंचों में से फेसबुक ने उपभोक्ता को व्यापक पहुँच और स्वतंत्रता दी है. जो लोग भी स्मार्ट फोन का उपयोग कर रहे होंगे उनमें से लगभग सभी लोग फेसबुक पर सक्रिय होंगे ही, भले ही उनकी सक्रियता बहुत ज्यादा न हो. फेसबुक ने हमें भी बहुत सारे आयामों से परिचय करवाया, बहुत सारे और मंचों से पहचान करवाई, बहुत से वरिष्ठ लोगों से, बहुत से प्रतिष्ठित लोगों से, बहुत से नामचीन लोगों से, बहुत से नए लोगों से परिचय करवाया. इन सभी के साथ बहुत से मधुर अनुभव मिले तो बहुत सारे लोगों से बहुत सारे कड़वे अनुभव भी मिले.


सोशल मीडिया को इधर बहुत गलत तरीके से भी उपयोग में लिया जाने लगा है. इसके सहारे धोखाधड़ी भी खूब बढ़ी. आपराधिक घटनाक्रमों ने भी अपना डेरा यहाँ जमाना शुरू कर दिया. एक-दूसरे के प्रति घृणा फ़ैलाने का काम, दुश्मनी निभाने का काम, दूसरे को बदनाम करने का काम भी यहाँ खूब होने लगा. ऐसा नहीं कि सोशल मीडिया में सिर्फ बुरा ही बुरा हो रहा हो. यहाँ बहुत सारा काम अच्छा ही अच्छा हो भी रहा है. वर्तमान कोरोनाकाल में सोशल मीडिया के द्वारा ही बहुत सारे लोगों तक मदद भी पहुँचाई जा सकी. बहुत से ऐसे लोगों को भी बचाया गया जिनकी जान को खतरा था. सोशल मीडिया ने बहुत से नए कलाकारों को, नई-नई प्रतिभाओं को उभरने का अवसर भी इस कोरोनाकाल में दिया. सार्वजनिक रूप से कार्यक्रमों का आयोजन बंद था ऐसे में सोशल मीडिया ने ऑनलाइन मंच उपलब्ध करवा कर नवीन प्रतिभाओं को मुरझाने से बचा लिया.


ये तो सार्वभौम सत्य है कि किसी भी बात के दो पहलू होते हैं. यदि उसके साथ बुराई है तो अच्छाई भी जुड़ी है. यदि किसी के साथ मधुरता जुड़ी है तो उसके साथ कड़वाहट भी होगी. कुछ ऐसा ही सोशल मीडिया के साथ भी है. यहाँ बहुत सारी अच्छाइयों के बीच खूब सारी बुराइयाँ भी हैं. ये उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है कि वह किसको साथ लेकर आगे बढ़ता है, सोशल मीडिया पर खुद को प्रस्तुत करता है.


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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-07-2021को चर्चा – 4,112 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. इन दिनों "दिवसों" की मची होड़ में, "सोशल मीडिया दिवस" के बहाने ज्ञानप्रद जानकारियों से भरा आलेख .. सच ही कहा आपने कि- "उपयोग करने वाले पर निर्भर करता है कि वह किसको साथ लेकर आगे बढ़ता है." .. परमाणु बम भी कभी वैज्ञानिकों ने ऊर्जा के लिए बनाया था, पर वही धरती के विनाश का कारण बन बैठा .. शायद ...

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  3. यह दिवस भी मनाया जाता है, मुझे तो पता ही न था. आपके आलेख से सोशल मीडिया में मेरा आना कैसे हुआ, यह भी याद आया. ज्यादातर अच्छा और कुछ तो बहुत बुरा अनुभव रहा. कंप्यूटर बहुत मुश्किल से थोड़ा-थोड़ा सीख पाई थी. 2008 में ऑरकुट और फेसबुक से जुड़ तो गए, लेकिन न ठीक से टाइप करने आता था न जल्दी से कोई साइट खुलता था. खैर 2009 तक सब आ गया और ब्लॉग भी बन गया. सही कहा, सोशल मीडिया में बहुत अच्छाइयाँ हैं तो बुराइयाँ भी हैं. हमें अपने हिसाब से अच्छाइयों को चुनना होगा.

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