27 मई 2021

शाब्दिक आपत्ति वाले समाज में कमीने, छिछोरे की स्वीकार्यता

इधर कुछ दिनों से एक बाल कविता पर बहस चलती देख रहे हैं. यह कविता किसी कक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल की गई है. उसके कुछ शब्दों पर आपत्ति जताई गई है. चूँकि सिक्के की तरह किसी भी बात के दो पहलू होते हैं. कुछ ऐसा ही इस कविता के सन्दर्भ में भी हो सकता है. क्या सही है, क्या गलत है इसका आकलन इस पर सभी के मत अलग-अलग हो सकते हैं. कविता के कुछ शब्दों को बालमन पर गलत प्रभाव डालने वाला बताया जा रहा है तो एक पक्ष इन शब्दों को उनकी स्थानीयता के साथ जोड़कर सही मान रहा है. यहाँ हमारा व्यक्तिगत मत उस कविता के न पक्ष में है और न ही विपक्ष में. ऐसा इसलिए क्योंकि कोई एक कविता किसी भी तरह से स्थायी प्रभाव तब तक नहीं डाल सकती जब तक कि उसका कई सालों तक निरंतर वाचन न करवाया जाये.


यदि कोई एक कविता ही किसी भी बालमन को सुधारने, बिगाड़ने का काम करती तो ऐसे लोगों से ही पूछना चाहिए कि उनके अपने समय में पढ़ाई जाने वाली कविताओं को रटने के बाद भी उन्हीं के कालखंड के पुरुष माँ-बहिन की गालियाँ क्यों देते नजर आते हैं? दो-चार शब्दों के सहारे बालमन पर गलत असर पड़ने वालों को ध्यान रखना चाहिए कि वर्तमान में फिल्मों के माध्यम से समाज में लगभग स्वीकार्य शब्दों – सेक्सी, चुम्मा, कमीने, छिछोरे आदि को ऐसी ही पीढ़ी ने रचा है जिसने अपने समय में शालीन शब्दों वाली कविता पढ़ी है.


बहरहाल, उस कविता के कुछ शब्दों पर पढ़ने को मिली बहुत सी आपत्तियों के बाद अपना लिखा एक पुराना आलेख याद आया. यह उस समय लिखा था जबकि फिल्म कमीने बाजार में उतारी गई थी. उसके बाद से तो अशालीन शब्दों की नदी में न जाने कितने शब्द बह चुके हैं. एक बार फिर वही पुराना आलेख आपके बीच.




कमीना.....कमीने....चौंक गये आप? जी हाँ चौंकना स्वाभाविक है क्योंकि हमारे समाज में ये शब्द एक गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. अभी शायद (शायद की जरूरत है?) ऐसी स्थिति आई नहीं है कि इस शब्द को भद्रजनों की भाषा-शैली में शामिल किया जाये. गाली तो गाली ही होती है या समय के साथ उसका भी परिष्कृत रूप सामने आता है? यह सवाल एक हमारे मन में ही अकेले नहीं घुमड़ता होगा, कभी न कभी, कहीं न कहीं आपको भी परेशान करता होगा. अब करता रहे परेशान तो करे जिसको ये शब्द समाज में प्रचलित करने हैं वे तो कर ही रहे हैं.


इस बात से थोड़ा सा इतर....आपको सेक्सी शब्द के बारे में क्या विचार आता है? कुछ सालों तक इस शब्द के मायने कुछ अलग थे. इस शब्द के उच्चारण में एक प्रकार की झिझक देखने को मिलती थी. आज.....आज ये शब्द हम बड़े बेधड़क होकर इस्तेमाल करते हैं. बड़े बैठें हों या फिर छोटे इस शब्द सेक्सी के प्रयोग में कोई शर्म किसी को नहीं है. और तो और सेक्सी शब्द के मायने अब इस रूप में बदले हैं कि हम अपने नन्हे-मुन्नों के लिए भी इस शब्द को प्रयोग करने लगे हैं. कोई विशेष ड्रेस पहना देख कर, किसी विशेष प्रकार के करतब दिखाने पर हम अपने छोटे-छोटे बच्चों के लिए अकसर कह देते हैं कि इस ड्रेस में बड़ा सेक्सी लग रहा है/लगता है. अकसर हम इस शब्द को मजाक के रूप में भी इस्तेमाल कर लेते हैं और क्या हाल है, बड़े सेक्सी बने घूम रहे हो?


इस शब्द की सहज स्वीकार्यता के सापेक्ष देखा जाये तो क्या कमीना शब्द इतना सहज स्वीकार्य है? या हो पायेगा? हो पायेगा का जवाब शायद कोई भी न दे पाये क्योंकि हमारे फिल्मी संसार ने लगभग स्वीकार्यता की स्थिति में तो इस शब्द को लाकर खड़ा कर दिया है. याद है वो गाना मुश्किल कर दे जीना, इश्क कमीना, यह गाना बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ा था/चढ़ा है. अब इस गाने का विकास-क्रम बढ़ा. अब एक फिल्म आ गई है कमीने. स्वीकार्यता की ओर एक और कदम. जैसे हमारे विचार से सेक्सी शब्द की स्वीकार्यता बढ़ी थी मेरी पैंट भी सेक्सी, मेरी शर्ट भी सेक्सी..... से. अब मित्रों में आपस में चर्चा होगी चल कमीने देख आते हैं. माँ के पूछने पर बेटी-बेटे कहेंगे माँ दोस्तों के साथ कमीने देखने जा रहे हैं.  


कई बार इस तरह के शब्दों के प्रयोग करने में उसका अर्थ न मालूम होने की स्थिति होती है पर यह भी उनके लिए होती है जो कम पढ़े-लिखे या निरक्षर होते हैं. जैसे हमारे एक मित्र के घर काम वाली बाई आती थी. वह जब भी अपने सात-आठ साल के बच्चे की कोई शरारत या फिर किसी हरकत का बखान करती तो बड़े ही गर्वोक्ति भरे अंदाज में कहती लला ने ऐसो कर दओ, बड़ो हरामी है.....या बड़ो हरामी होत जा रओ, अपयें मन की करन लगो है अब.....बगैरह-बगैरह. जब एक दिन उसको बताया कि इस शब्द, हरामी का क्या अर्थ होता है तो उसने फिर इसका इस्तेमाल करना बन्द कर दिया.


क्या काम वाली बाई की तरह ही इन फिल्म वालों की स्थिति है? क्या ये लोग भी इन शब्दों के अर्थ नहीं समझते? क्या अब समाज में विकृत मानसिकता को ही फैलाने का चलन काम करेगा? हो कुछ भी अब आने वाले समय में इस तरह के वाक्यों से भी रू-ब-रू होने की सम्भावना है देखो-देखो मेरे बेटे को, इस ड्रेस में कितना कमीना लग रहा है, आज गजब हो गया, तुम्हारे कमीनेपन ने तो मजा बाँध दिया.


क्या आप इसके लिए तैयार हैं? ये लेख उस समय का है जबकि छिछोरे शब्द फ़िल्मी दुनिया ने फिल्म के रूप में उतारा नहीं था. अब तो उदाहरण में इस छिछोरे शब्द को भी जोड़ा जा सकता है.


++

ये है वो कविता जो आजकल विवादों में है, अपने कुछ शब्दों के कारण.




6 टिप्‍पणियां:

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  2. Nice Article. भाषा की मर्यादाएं खत्म हो चुकी हैं। ना जज़्बात है ना सच्चे रिश्ते...

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 30 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत ही तार्किक और उम्दा लेख!
    सारे कनून ,नियम मर्यादा सिर्फ कविता के लिए ही बने हैं क्या❓बॉलीवुड, भोजपुरी सिनेमा और बाकी सिनेमा के लिए नहीं है क्या❓ और है तो फिर ऐसे अशब्द भरे गीत पर रोक क्यों नहीं लगाया जाता? "रात भर रहे ...... हाथ वो राजा" इस भोजपुरी गीत ने तो भाषा की मर्यादा की सारी हदें पार कर दी है लेकिन इस पर किसी को आपत्ति नहीं है. ऐसे ही बॉलीवुड के बहुत से गीत है जिसे सबके सामने नहीं सुन सकते! ऐसे गीत सुनने के बाद लोगों के मुहं में दही जम जाती है क्या❓
    हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏

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  5. विचारणीय लेख ...... भाषा की मर्यादा ज़रूरी है .... आज कल बच्चे जैसी भाषा बोलते हैं उसे सुन बहुत अजीब ही लगता है .... सार्थक लेख .

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  6. सार्थक आलेख। गाली तो शुरू से आम जीवन का हिस्सा है। जिस तरह अमर्यादित शब्दों का भरमार होने लगा है, सुनकर शर्मिंदा तो हो ही जाते हैं। वैसे छोकरी शब्द न तो गाली है न अमर्यादित शब्द। यह क्षेत्रीय बोली का शब्द है जिसका व्यवहार व्यापक रूप से होता है। बात सिर्फ़ इतनी सी है कि जब बच्चों को भाषा का ज्ञान देना है तो उत्तम शब्द का प्रयोग करना चाहिए।

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