पोर्ट ब्लेयर से लगभग तीन-चार किमी की दूरी पर रॉस आइलैंड स्थित है. किसी समय में अंग्रेज अधिकारियों के निवास स्थान एवं अन्य प्रशासनिक कार्यों के लिए उपयोग होने वाला यह द्वीप आज एकदम निर्जन है. पहले यहाँ अंग्रेजों का राज रहा फिर द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापानियों ने इस पर कब्जाकर इसे उजाड़कर रख दिया. बनने-उजड़ने की प्रक्रिया से जूझता यह द्वीप आज अपनी भव्य इमारतों के खंडहर संभाले निर्जन, अकेला, सुनसान खड़ा है. इसकी ख़ामोशी, अकेलेपन को यहाँ आने वाले पर्यटकों की चहल-पहल ही दूर करती है. चारों तरफ से समुद्र से घिरा होने के कारण यह द्वीप अंग्रेजों के लिए अत्यंत सुरक्षित जगह थी. सन 1859 में अबरडीन का युद्ध और फिर सन 1872 में शेरअली पठान द्वारा अंग्रेजी वायसराय लार्ड मेयो की हत्या ऐसी घटनाएँ थीं जिन्होंने अंग्रेज अधिकारियों के दिल में भय पैदा कर रखा था. इसी कारण से कालांतर में भले ही क्रांतिकारियों को वाइपर द्वीप की जेल से पोर्ट ब्लेयर में बनाई सेलुलर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया हो मगर अंग्रेजों ने अपने रहने के ठिकाने को नहीं बदला. वे रॉस आइलैंड पर ही जमे रहे. बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने इसे अपने कब्जे में लेकर पूरी तरह से उजाड़ दिया था.
रॉस आइलैंड में लाइट एंड साउंड शो |
आज इस द्वीप पर तत्कालीन सभ्यता के भग्नावशेष देखे जा सकते हैं. यहाँ बने मकान, चर्च, चिकित्सालय, पोस्ट ऑफिस, दुकानों आदि के खंडहरों पर वृक्ष उग आये हैं. इसके अलावा जापानियों द्वारा बनाये बंकर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. पोर्ट ब्लेयर से फैरी के द्वारा चंद मिनट की समुद्री यात्रा के बाद रॉस आइलैंड उतरना होता है. यह द्वीप पूरी तरह से भारतीय सेना के हवाले है, जिसके चलते सुरक्षा औपचारिकताओं के साथ प्रवेश करते ही एक तरफ जापानी बंकर से सामना होता है तो दूसरी तरफ हिरन, मोर, खरगोश अपनी मासूमियत से पर्यटकों के साथ खेलते-कूदते नजर आते हैं. रॉस आइलैंड पर इमारतों के भव्य खंडहर अपनी कहानी खुद कहते नजर आये मगर समूचे इतिहास को यहाँ होने वाले लाइट एंड साउंड कार्यक्रम ने सामने रखा. गुलज़ार के सम्मोहित करते अंदाज़ ने रॉस आइलैंड के बनने-उजड़ने के साथ-साथ इससे जुड़े अनेक तथ्यों को अत्यंत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया.
वाइपर द्वीप जेल
से क्रांतिकारियों का भागना, आदिवासियों के बीच रहकर एक क्रांतिकारी दूधनाथ तिवारी
का उनका विश्वासपात्र बन जाना, अबरडीन का युद्ध, दूधनाथ का विश्वासघात, शेरअली
द्वारा लार्ड मेयो की हत्या, क्रांतिकारी कैदियों से सेलुलर जेल का बनवाया जाना,
जापानियों का रॉस आइलैंड पर हमला, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा जिमखाना
ग्राउंड पर तिरंगा फहराना आदि घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत किया गया, लगा कि हम खुद
उसी समय में जी रहे हैं. लगभग एक घंटे के उस लाइट एंड साउंड प्रोग्राम को देखने के
बाद महसूस हुआ कि अंडमान-निकोबार भ्रमण का यह अनिवार्य अंग होना चाहिए, किसी भी
पर्यटक के लिए.
सेलुलर जेल में लाइट एंड साउंड शो |
रॉस आइलैंड के लाइट एंड साउंड की तरह ही सेलुलर
जेल में भी लाइट एंड साउंड प्रोग्राम की व्यवस्था है. एक तरफ रॉस आइलैंड में एक शो
ही होता है वहीं दूसरी तरफ पोर्ट ब्लेयर में ही होने के कारण सेलुलर जेल में लाइट
एंड साउंड के दो शो होते हैं. हिन्दी भाषा के साथ-साथ एक शो अंग्रेजी भाषा में भी
होता है. सेलुलर जेल के इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से जेल के बारे में, यहाँ के
क्रांतिकारियों के बारे में, उन पर किये गए अमानवीय अत्याचारों के बारे में बताया
जाता है. रॉस आइलैंड का लाइट एंड साउंड प्रोग्राम जानकारी देता है, कहीं-कहीं
भावनात्मकता पैदा करता है किन्तु सेलुलर जेल का प्रोग्राम जानकारी देने के साथ-साथ
लगातार आँखों को नम किये रहता है. ओमपुरी की गंभीर आवाज़ में वहाँ स्थित पीपल के
पेड़ के द्वारा कही जा रही कहानी, बेहतरीन ध्वनि प्रभाव के चलते क्रांतिकारियों पर
होते ज़ुल्मों का शोर, उनकी चीखें, वन्देमातरम, भारत माता की जय का घोष अन्दर तक
हिलाकर रख देता है. सेलुलर जेल में लगभग एक घंटे के इस कार्यक्रम को देखते हुए
तत्कालीन स्थितियों के साथ इतना अन्तर्सम्बंध बन गया था कि इसके समापन के बाद भारत
माता की जय का घोष लगाये बिना मन न माना. ख़ुशी इस बात की हुई कि तीन बार के घोष
में वहाँ उपस्थित जनसमुदाय की सैकड़ों आवाजें साथ दे रही थी.
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भले ही अनेक
द्वीपों की सुन्दरता के वशीभूत आने वाले पर्यटकों की संख्या यहाँ बढ़ने लगी हो
किन्तु व्यतिगत रूप से हमारा विचार है कि यहाँ आकर मुख्य रूप से सेलुलर जेल, यहाँ
का लाइट एंड साउंड प्रोग्राम देखने के साथ-साथ रॉस आइलैंड का लाइट एंड साउंड
अनिवार्य रूप से देखना चाहिए. सेलुलर जेल तो वैसे भी राष्ट्रीय स्मारक के रूप में
प्रसिद्द है जो गवाह है कि कैसे हमारे वीर क्रांतिकारियों ने हमारी आज़ादी के लिए
ज़ुल्म सहे, कष्ट सहे, यातनाएं सहीं. इसे देखना अपने आपमें सुकून देता है, इसके साथ
ही यहाँ और रॉस आइलैंड के लाइट एंड साउंड प्रोग्राम इतिहास से परिचित करवाते हुए
तत्कालीन काला पानी का वास्तविक चित्र सामने रखते हैं.
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