22 मई 2021

कोरोना पर भ्रम की स्थिति खतरनाक है

कोरोना वायरस जबसे देश में फैला है तबसे उसके उपचार को लेकर रोज ही कोई न कोई नई खबर सामने आती है. कोरोना से बचाव को लेकर जितनी संशय में या कहें कि भ्रम में सरकारें हैं उतने ही भ्रम में चिकित्सक हैं, उतने ही भ्रमित नागरिक हैं. कभी किसी दवा को इसके लिए कारगर बताया जाता है तो कभी किसी पद्धति को. कुछ दिनों तक एक तरह का परीक्षण किये जाने के बाद फिर उसी दवा को, उसी पद्धति को नकार दिया जाता है. इस नकार के साथ ही कोई नई दवा, कोई नई प्रक्रिया सामने आ जाती है. इस भ्रमित अवस्था में एक तरह से नुकसान नागरिकों का ही हो रहा है. उनके स्वास्थ्य के साथ लगातार खिलवाड़ ही हो रहा है. कोरोना के इलाज के लिए लगातार होते प्रयोगों से ऐसा लगने लगा है जैसे कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति गिनी पिग बने हुए हैं.


यह भली-भांति समझ आता है कि कोरोना वायरस से उत्पन्न होने वाली यह बीमारी एक तरह से सभी के लिए नई ही है. ऐसे में इसके उपचार के लिए किसी भी सटीक बिंदु पर पहुँच पाना एकदम से सहज नहीं है. सवाल उठता है कि यदि ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है तो नागरिकों को आम आदमी को किसके भरोसे छोड़ दिया गया है? विगत वर्ष (2020 में) व्यक्ति के तापमान, बुखार को प्रमुखता से आँकने की बात की जा रही थी और अब इस वर्ष (2021 में) ऑक्सीजन लेवल की चर्चा होने लगी है. समझ से परे है कि एकदम से ऑक्सीजन लेवल को लेकर इतना पैनिक क्यों बना दिया गया है? क्या दवाओं के सम्बन्ध में, इस तरह के उपकरणों के सम्बन्ध में किसी तरह के अंतर्राष्ट्रीय खेल को खेला जा रहा है?




दवाओं के स्तर पर तो इतना भ्रम है जो न केवल नागरिकों को संशय में डाल रहा है बल्कि दवा व्यापारियों, कालाबाजारी करने वालों को जबरदस्त लाभ दे रहा है. कभी किसी इंजेक्शन से उपचार का प्रचार, कभी किसी दवा से उपचार का दावा आदि किसी बड़े खेल की तरफ इशारा करते हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि इस कोरोना के इलाज के लिए भारत देश में कारगर बताया जाने वाला एक इंजेक्शन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित है. यदि यह इंजेक्शन प्रतिबंधित है तो फिर इसे डॉक्टर्स लिख क्यों रहे हैं? मरीज के परिजन इसे लगाये जाने के लिए जिद क्यों पकड़े हैं? यह सब किसी षड्यंत्र की कहानी की तरफ इशारा करता है.


कोरोना का इलाज क्या हो, इसके साथ-साथ आवश्यक है कि सरकारें, डॉक्टर्स, मनोचिकित्सक, जिम्मेवार लोग बताएं कि किसी नागरिक का, किसी आम आदमी का मनोबल कैसे बरक़रार रहे? कैसे कोई व्यक्ति अपनी मनोस्थिति पर संतुलन बनाये रखे? कैसे कोई संक्रमित व्यक्ति बिना घबराये अपने आपको स्वस्थ बनाये रखने के लिए प्रयास करता रहे? देखा जाये तो ऐसी बातों की तरफ कम से कम ध्यान दिया जा रहा है. रोज ही कोई न कोई नया विशेषज्ञ पैदा होकर कोरोना पर, उसके इलाज पर ज्ञान बाँटने लगता है. रोज ही कोई न कोई नई इलाज पद्धति सामने आकर अपने को असरदार सिद्ध करने लगती है.


शासन, प्रशासन अभी पूरी तरह से कोरोना के इलाज के लिए सफलता प्राप्त नहीं कर सके हैं. इसके लिए बनाई गई वैस्कीन के प्रति भी लोगों में अभी विश्वास पूरी तरह पैदा नहीं हो सका है. ऐसे में सरकारी संस्थाओं, व्यक्तियों का यह कर्तव्य होना चाहिए कि वे सक्रियता से, पूरी ईमानदारी से भ्रामक खबरों को रोकने का प्रयास करें. सरकारों की तरफ से इस सम्बन्ध में आधिकारिक जानकारी ही नागरिकों तक प्रेषित करवाने की कोशिश करें. इधर देखने में आ रहा है कि कोरोना से ज्यादा खतरा भ्रामक और गलत जानकारियों को लोगों तक पहुँचाने वालों से है. कोरोना व्यक्ति को अकेले संक्रमित करने में लगा है जबकि ये लोग लोगों को मानसिक रूप से संक्रमित करते हुए उन्हें ख़त्म कर रहे हैं.


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