समाज में, परिवार में मृत्यु किसी की भी हो वो दुखद होती है. परिवार से इतर किसी व्यक्ति का निधन होने पर यदि उस व्यक्ति से परिचय होता है तो लोग दुखी हो जाते हैं और सम्बंधित व्यक्ति के साथ सीधे परिचय न होने की स्थिति में लोग मृत्यु की खबर देने वाले व्यक्ति से संवेदना प्रकट कर लेते हैं. जिस परिवार के साथ यह दुखद घटना घटित होती है वास्तविक रूप में वही अपने परिजन की मृत्यु से प्रभावित होता है. भारतीय समाज में तमाम सारे धर्म-मजहब अपने रीति-रिवाजों के अनुसार कर्मकांड करते हैं. ऐसा करना कितना आवश्यक है, इसका उद्देश्य क्या है, मरने वाले के प्रति, उसके परिजनों के प्रति उसकी क्या उपयोगिता है ये एक अलग विषयही किन्तु सनातन धर्म में, हिन्दू धर्म में इस तरह के कर्मकांड, रीतिरिवाज सम्बंधित परिवार को, परिजनों को व्यस्त रखते हैं, उन्हें एक तरह के मानसिक कष्ट से दूर रखते हैं.
सनातन संस्कृति में मृत्यु से सम्बंधित कई
क्रिया-कलाप हैं. वैसे भी इसे एक संस्कार के रूप में स्वीकार किया गया है. ऐसी
स्थिति होने के बाद भी कई तरह की ऐसी स्थितियाँ हैं जो भ्रमित कर सकती हैं. फिलहाल, औरों को करती हों या न करती हों मगर व्यक्तिगत रूप से हमें इनके प्रति कई
बार प्रश्नवाचक मुद्रा सी बन जाती है. हमारे समाज में,
संस्कृति में आम मान्यता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए प्राकृतिक अथवा ईश्वरीय
विधान में निश्चित साँसें प्रदान की गई हैं. इन साँसों के पूरा होने के पश्चात्
व्यक्ति को यह संसार त्यागना पड़ता है. व्यक्ति के जीवन का अंत कब हो कहा नहीं जा
सकता है. इसी अनिश्चय के चलते बहुत से लोगों ने जीवन को क्षण-भंगुर भी माना है.
यह बिलकुल सत्य है कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है
कि कब व्यक्ति को अंतिम साँस लेनी पड़े. जीवन की इसी अनिश्चितता को निश्चित करने की
दृष्टि से, मानवीय मन को सांत्वना देने की दृष्टि से कहा जाता है कि व्यक्ति का
समय, स्थान, परिस्थिति आदि पूर्व
निर्धारित है. उसी के अनुसार व्यक्ति को अपना शरीर त्यागना पड़ता है. यदि ऐसा है, यदि मौत की स्थिति, समय,
स्थान आदि निर्धारित है तो फिर किसी भी मौत को अकाल मौत के रूप में परिभाषित क्यों
किया जाता है. ऐसा बहुधा कहा जाता है कि जिनका अल्पायु में निधन हो, जो आत्महत्या के द्वारा, दुर्घटना के द्वारा मौत के
मुँह में चले जाते हैं, उनकी मृत्यु अकाल मृत्यु कहलाती है.
प्रचलित मान्यताओं के रूप में देखें तो आत्महत्या, दुर्घटना,
अल्पायु से मृत होने वाले व्यक्ति के लिए वही सब निर्धारित रहा होगा तो उसे अकाल
मृत्यु कैसे कहा जा सकता है?
इसके साथ-साथ यदि किसी भी व्यक्ति की मौत का
कारण, स्थिति पूर्व निर्धारित है तो फिर किसी भी व्यक्ति की
मृत्यु के लिए किसी परिस्थिति, किसी व्यक्ति आदि को दोषी कैसे
ठहराया जा सकता है? कभी संसाधनों को दोष दिया जाता है, कभी समय को, कभी व्यक्ति को. यदि व्यक्ति का
जीवन-मरण पूर्व निर्धारित है तो फिर किसी को भी इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता
है. हाँ, ये और बात है कि न्याय व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नियम-कानून बनाये
गए हैं, उनका पालन किया-करवाया जाता है मगर कभी-कभी सामान्य
मौत के पीछे भी सम्बंधित व्यक्ति के परिजन किसी न किसी दोषी को, किसी न किसी दोष को तलाशते रहते हैं.
फिलहाल, यहाँ यह लिखने का
उद्देश्य किसी तरह का विवाद पैदा करना नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत जिज्ञासा का
समाधान खोजना है. संभव है कि किसी न किसी पाठक के द्वारा मौत से सम्बंधित, संस्कारों से सम्बंधित कोई आधिकारिक, पुष्ट जानकारी
प्राप्त हो सके.
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