17 मई 2021

चेहरे पर मुस्कान लाएँ न कि आँखों में आँसू

मौत एक ऐसा शब्द है जिसे सुनने के साथ ही दिल-दिमाग काम करना बंद से कर देते हैं. इस शब्द में एक तरह भी भयावहता छिपी हुई है जो प्रत्येक व्यक्ति को भयभीत करने का काम करती है. इन दिनों जबकि चारों तरफ कोरोना वायरस का कहर छाया हुआ है तब मौत शब्द ने भयावहता के साथ-साथ दहशत भी बढ़ा रखी है. इस दहशत को बढ़ाने का काम सोशल मीडिया में कुछ ऐसे लोग कर रहे हैं जिनको ‘सबसे पहले मैंने वाली बीमारी लगी हुई है. इसके अलावा ऐसे लोग भी लगातार लोगों के निधन की खबरें पोस्ट कर रहे हैं, जिनका सम्बंधित व्यक्ति से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं है. यहाँ समझने वाली बात है कि सामान्य दिनों में भी ऐसा हुआ करता था मगर उन दिनों में किसी के निधन की खबर से किसी भी व्यक्ति में दहशत जैसी स्थिति नहीं बनती थी. सामान्य दिनों में ऐसी खबरें जानकारी का आदान-प्रदान जैसी समझ आती थीं लेकिन इस समय हालात अलग तरह के हैं. मीडिया के द्वारा जिस तरह की खबरें प्रसारित की जा रही हैं, उनको देखकर लगता है जैसे चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ मौत ही मौत है.




इस तरह की रिपोर्टिंग करना मीडिया चैनल्स की मजबूरी हो सकती है मगर एक आम आदमी की क्या मजबूरी हो सकती है किसी व्यक्ति की या फिर अपने ही परिजन की मौत की खबर शेयर करने की? आज जबकि तकनीकी संसाधन उन्नत किस्म के हैं, आज संचार के अत्याधुनिक संसाधन लगभग प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं, सूचनाओं का प्रसारण भी तत्काल होता दिखता है, कोई खबर चाहे वह छोटी हो या बड़ी गोपनीय नहीं रह पा रही तब यह बात समझ से परे है कि किसी के निधन की खबर सोशल मीडिया पर प्रसारित करने की आतुरता क्यों रहती है? यह समझना चाहिए कि ऐसी खबरें उन लोगों पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं जो बीमार हैं अथवा दिल से कमजोर हैं. ऐसे लोग जो कोरोना संक्रमित हैं और किसी चिकित्सलाय में अपने उपचार के दौरान अकेले हैं, उनके साथ उनका कोई परिजन नहीं है तब ऐसी खबरें उनके लिए हानिकारक हो सकती हैं.


वर्तमान परिदृश्य में जब लोगों में दहशत भरी हो, नकारात्मकता फ़ैल रही हो उस समय लोगों को सकारत्मक रहने की कोशिश करनी चाहिए. सोशल मीडिया का उपयोग करते समय सकारात्मकता का प्रसार करना चाहिए. कोरोना से संदर्भित और भी बहुत सी खबरें हैं जो प्रसारित करके लोगों की सहायता भी की जा सकती है, लोगों में सकारात्मकता लाई जा सकती है. कोरोना के इस दुखद माहौल में सबसे बड़ी सकारात्मकता यह है कि इससे संक्रमित होने वालों में स्वस्थ होने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है. ऐसा नहीं कि कोरोना के कारण मौतें नहीं हो रही हैं मगर इससे होने वाली मौतों की संख्या स्वस्थ होने वालों की संख्या से बहुत कम है. 


यह सच है कि जिसका परिजन हमेशा के लिए चला जाता है उसके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है. मौत एक व्यक्ति की हो या हजारों की दुखद ही होती है किन्तु इसी दुःख के बीच से सुख को तलाशने का काम करना पड़ता है. ऐसी ही दुखद स्थितियों के बीच खुशियों की राह बनानी पड़ती है. ऐसी ही स्थितियों से रोने वालों के आँसू पोंछने का काम करना पड़ता है. सोशल मीडिया का उपयोग हम सबको इस समय बहुत ही सोच-समझ कर, सावधानी से, धैर्यपूर्वक करने की आवश्यकता है. कोशिश सभी की यही होनी चाहिए कि उसकी एक पोस्ट लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाये न कि आँखों में आँसू.

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