एक बच्चा फाउंटेन पेन से लिखा करता था. लिखने से ज्यादा वह अपने कपड़ों को, हाथों को रंग लेता था. कभी स्याही भरने के नाम पर, कभी पेन न चलने के नाम पर, कभी निब पर स्याही सूखने के नाम पर, कभी पेन को पकड़ने की स्टाइल के कारण उसके हाथ गंदे होते और हाथों के चलते कपड़े भी गंदे हो जाते. स्याही के निशान साफ़ करते-करते उसकी माँ भी परेशान रहती. परेशान वह इसलिए भी होती क्योंकि स्याही के वे निशान सिर्फ कपड़ों, हाथों पर ही रुक कर नहीं रहे बल्कि कभी-कभी वे घर के कपड़ों पर भी दिखाई दे जाते, कभी घर की दीवारों, सामानों पर भी दिख जाते.
एक दिन वह बच्चा घर पर बैठा अपना काम करने में लगा था. फाउंटेन पेन हमेशा की तरह उसके हाथ में था. स्याही की शीशी उसकी पहुँच में थी ही. उसकी मम्मी ने देखा तो उसे समझाया. अगले पल उसकी माँ के दिमाग में कुछ बात आई. उन्होंने उस बच्चे से कहा कि तुम हर जगह स्याही के निशान बना देते हो, हाथ गंदे कर लेते हो, कपड़े गंदे कर लेते हो. अब तुम्हारे हाथों पर लगी स्याही पर तो कुछ नहीं कहा जाएगा मगर यदि किसी कपड़े पर, सामान पर, दीवार पर स्याही के जितने निशान लगेंगे, उतने बार तुम्हारी पिटाई होगी. उतनी बार तुमको तमाचे पड़ेंगे.
अब बच्चा बड़ा सतर्क हो गया. बहुत सावधानी से काम करने लगा. काम करते-करते उसी समय उसके पेन ने चलना बंद कर दिया. कई बार की कोशिश के बाद भी निब ने स्याही से कुछ भी लिखने से मना कर दिया. बच्चे के मन में पिटाई को लेकर भी एक डर था, सो वह बहुत ही सावधानी से कोशिश कर रहा था पेन को चलाने की. कई बार के बाद भी जब उसका पेन न चला तो उसने फाउंटेन पेन को हाथ में पकड़ कर झटका दिया. अरे! यह क्या? वह जिस चादर को जमीन पर बिछा कर बैठा लिखने में लगा था उसमें एक तरफ स्याही के कई सारे धब्बे बन गए. (ऐसा आपके साथ भी तो हुआ होगा, जबकि फाउंटेन पेन चलाने के लिए आपने पेन को झटका दिया होगा और उसकी निब के रास्ते स्याही निकल कर कई-कई बूँदों में बिखर गई होगी.)
कुछ देर बाद उसी माँ आई और उसने चादर पर स्याही बिखरी देखकर उसे मात्र एक बार एक सजा दी. आपको आश्चर्य हुआ होगा कि कई-कई बूँदों के निशान हो जाने के बाद भी मात्र एक बार की सजा. अब इसे वही समझ सकेगा जिसने फाउंटेन पेन का प्रयोग किया हो.
अब बच्चे को सजा मात्र एक बार मिलने की बात का खुलासा. आखिर बच्चा भी समझदार था. उसने चादर पर कई निशान देखकर मिलने वाली सजा का अंदाजा लगा लिया था. बस, झटपट उसने दिमाग चलाते हुए स्याही की शीशी उठाकर उन सारी बूँदों के ऊपर बिखरा दी. नतीजा ये हुआ कि स्याही के कई-कई निशान बस एक निशान में बदल गए. कहिये, कैसी रही उस बच्चे की कारीगरी.
आज फाउंटेन पेन साफ़ करते समय जगह-जगह पड़े स्याही के निशान देखकर यह कहानी याद आ गई.
स्याही वाले कलम की बरबस याद दिलाती एक सुन्दर उद्धरण। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 04 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाहः... बच्चे की चतुराई अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंऔर आपका साझा करना बहुत सुन्दर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंयह तो सही रही।चतुरानन की चतुराई।
वाह!बहुत खूब !कुछ कम न समझिए इन नौनिहालों को ।
जवाब देंहटाएंवाह....बच्चों की सोच भी कभी कभी कमाल की होती है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब।
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