आज बैठे-बैठे लॉकडाउन की चर्चा शुरू हो गई. इसी चर्चा में उन बंद दिनों की तमाम बातें सामने आईं. तमाम लोगों की बातों से निष्कर्ष निकला कि लॉकडाउन के वे दिन सभी के लिए पहली बार आये थे. बच्चे हों या बुजुर्ग सभी के जीवन में ऐसा समय शायद पहले कभी नहीं आया होगा. जिन लोगों ने पाकिस्तान और चीन के साथ होने वाले युद्ध का माहौल भी देखा होगा उनके लिए भी ये समय नया ही होगा. जैसा कि हम अपने अइया-बाबा से उस समय के बारे में सुनते रहे हैं, तब बहुतायत में ब्लैकआउट हुआ करता था मगर लोगों के बाहर निकलने पर प्रतिबन्ध नहीं था. इस बार कोरोना के चलते अवश्य ही ऐसा हुआ.
इस अप्रत्याशित माहौल के बारे में आज चर्चा छिड़ी तो लगा कि उन दिनों के बारे में लिखा जाना चाहिए. जो लोग लिख सकते हैं वे लिखें और जिनको कभी भी लिखने का अवसर न मिला वे भी इस बारे में लिखें. इस रचनाशीलता को भले ही साहित्यिक विधा में शामिल न माना जाये मगर उन दिनों के अनुभव सभी के लिए अलग-अलग रहे हैं. चौबीस घंटे घर के भीतर रहना, सभी तरह के कार्यों का बंद होना, व्यस्तता भरे कदमों का एकदम से खामोश सा हो जाना आदि-आदि सभी के लिए एक जैसा भले रहा हो मगर इन दिनों के अनुभव सभी के लिए अलग रहे होंगे.
इस बारे में एक पहल आज से आरम्भ की है. बाकी लोग कितना साथ देते हैं, ये अलग बात है मगर हम इस यात्रा पर निकल चुके हैं. यदि सब ठीकठाक रहा तो जल्द ही ऑनलाइन भी, ऑफलाइन भी लॉकडाउन समय के अनुभव, उन दिनों की जीवन-चर्या आपके सामने होगी. ये दिन ऐसे गुजरे जैसे कभी गुजरे नहीं और आगे न ही गुजरें ऐसी कामना है. इस कामना के बाद भी डर है कि जिस तरह की जीवन-शैली मनुष्य अपना चुका है, इस कोरोनाकाल के बाद भी बनाये हुए है, उससे लगता नहीं कि उसने कुछ सीखा है. आज नहीं तो कल संभव है कि इस समाज को इससे भी अधिक भयावह स्थिति का सामना करना पड़े. संभव है कि इस लॉकडाउन समय से अधिक गंभीर समय का सामना करना पड़े. हाल-फिलहाल, लगभग पाँच दशक का समय गुजारने के दौरान ऐसी स्थिति देखने को मिली. आगे क्या-क्या देखना होगा, सबकुछ समय के हाथ है.
ऐसी स्थिति के गवाह बनने के बाद सभी से अनुरोध है कि इन दिनों के अपने अनुभवों को अवश्य लिखें. वे हमारे लिए न सही मगर आने वाली पीढ़ी के लिए एक सबक अवश्य बनेंगे.
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