08 दिसंबर 2020

ऐ ज़िन्दगी गले लगा ले - (1950वीं पोस्ट)

अधिकांशतः देखने में आता है कि जब कोई हमारे साथ होता है, हमारी नज़रों के सामने होता है, हमारी पहुँच में होता है तब हमें उसकी कदर नहीं होती है. यह स्थिति व्यक्ति, वस्तु, समय आदि सभी के लिए एकसमान रूप से प्रभावी होती है. हमारे पास जिसकी उपलब्धता होती है, उसकी फ़िक्र हम नहीं करते हैं. ऐसा अपने घर-परिवार के बुजुर्गों के मामले में बहुत होता है. उनके हमारे साथ रहने की स्थिति में हमें उनके अनुभवों का, उनके ज्ञान का, उनके कार्यों का भान होते हुए भी उसके बारे में विचार करने का, उनसे सीखने का जरा भी एहसास नहीं होता है. उम्र, समय, कार्यों, अनुभव आदि से बहुत अधिक सक्षम हमारे बुजुर्ग हमारे लिए एक अनमोल खजाना होते हैं, एक परिपक्व संस्थान की भांति हमारे साथ होते हैं मगर हम अपने में मगन उनसे लाभ नहीं ले पाते हैं.


आधुनिकता, भौतिकता की दौड़ में शामिल होकर बुजुर्गों के प्रति एक तरह का उपेक्षा का भाव समाज में दिखाई देने लगा है. भले ही घर-परिवार में बुजुर्गों को यथोचित सुख-सुविधाओं का ढेर लगा दिया जाये मगर उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलने-जुलने, उनके साथ समय बिताने के मामले में कमी आई है. विचार इसी बात पर किया जाना चाहिए कि घर के बुजुर्ग स्वयं को अकेला न महसूस करें. परिजनों को भी चाहिए कि वे अपने बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ अपनी जीवन-शैली को सरल बनाने में, अपने कार्यों को और अधिक प्रभावी बनाने में लेने का प्रयास करें. जीवन में बहुत से पल ऐसे आते हैं जबकि व्यक्ति के सामने असमंजस की स्थिति होती है. ऐसी स्थिति में बहुत बार बुजुर्गों के अनुभव ही सहायक बनते हैं.


आज समय की, समाज की जैसी माँग है उसके अनुसार खुद को आधुनिक बनाना अपराध नहीं, खुद के लिए भौतिकता के संसाधनों का इस्तेमाल करना, उनका जुटाना दोष नहीं है मगर इसमें ध्यान इसका रखा जाना चाहिए कि संसाधनों के जुटाने में कहीं परिवार की असल सम्पदा तो नष्ट नहीं हो रही. घर का वास्तविक खजाना तो बेकार नहीं रहा.





(इस ब्लॉग की 1950वीं पोस्ट)
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वंदेमातरम्

1 टिप्पणी:

  1. सच है कि जो सहज उपलब्ध है उसकी फ़िक्र नहीं करते। समय के साथ बहुत कुछ बदला, हमारा आपसी रिश्ता भी। जो संभव है उसमें ही ख़ुश होना हमें सीखना होगा। नए जेनरेशन के साथ मिसफ़िट मान ही लिया जाता है हमें।

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