04 दिसंबर 2020

प्रेम को बाँधने से प्यार-स्नेह नहीं नफरत-हिंसा ही फैलेगी

ओशो, ये नाम चर्चा में आते ही लोगों के मन-मष्तिष्क में दर्शन, प्रेम न उभरता है बल्कि उभरता है उन्मुक्तता का वातावरण, स्वतंत्र यौन सम्बन्धों पर ओशो की बेबाक राय. बिना ओशो को पढ़े, बिना उनके विचारों की जाने आज भी लाखों लोग ऐसे हैं जो उनके विरुद्ध अनर्गल बयानबाजी करने में लग जाते हैं. फिलहाल, आज हमारी पोस्ट ओशो पर नहीं, प्रेम पर है. ओशो को बहुत वर्षों से पढ़ रहे हैं और हमारा मानना है कि जो व्यक्ति लेखन से जुड़ा है, जो दर्शन को जानना चाहता है उसे ओशो को अवश्य पढ़ना चाहिए. इसके साथ-साथ हमारा ये भी मानना है कि जिनको प्रेम, प्यार, मुहब्बत जैसे शब्दों की गहराई को, इनकी पावनता को जानना-समझना है तो उनको भी ओशो के इन बिन्दुओं पर दिए गए विचारों को अवश्य पढ़ना चाहिए.




बहरहाल, सबके अपने-अपने शौक हैं, अपनी-अपनी पसंद है और उसके लिए किसी को जबरन मजबूर नहीं किया जा सकता है. पिछले दिनों ओशो के प्रेम सम्बन्धी विचारों को पढ़ रहे थे तो दिमाग में उथल-पुथल मची कि समाज में सबसे पवित्र शब्द के साथ कैसे खिलवाड़ किया गया है. प्रेम को संभवतः समाज का सबसे खतरनाक शब्द बना दिया गया है. विस्तृत और पावन अवधारणा से सुसज्जित शब्द को जबरदस्त तरीके से संकुचित कर दिया गया है. किसी भी चर्चा में, किसी भी बातचीत में प्रेम शब्द के आने पर उसको एक ही दिशा में केन्द्रित कर दिया जाता है. समाज के किसी भी वर्ग के बीच प्रेम का अर्थ दो विषमलिंगियों के मध्य के सम्बन्धों से लगाया जाता है. यही स्थिति समझाने के लिए है कि प्रेम को लेकर किस तरह की स्थिति बनती जा रही है समाज में.


दरअसल प्रेम बंधन का नाम नहीं, किसी रिश्ते का नाम नहीं, किसी सम्बन्ध का नाम नहीं. प्रेम तो विशुद्ध प्रेम है, एक अवधारणा है, खुद को मुक्त कर देने की अवस्था है. यदि प्रेम बंधन पैदा करे, व्यक्ति को कैद करे तो वह प्रेम नहीं आसक्ति है, लालसा है, तृष्णा है. प्रेम बाँधता नहीं है बल्कि स्वतंत्र उड़ान प्रदान करता है, स्फूर्ति पैदा करता है, विश्वास जगाता है. अभी भी प्रेम की इस अवधारणा को समझने वाले न के बराबर हैं. जब तक प्रेम को संकुचित समझा जाता रहेगा, जब तक प्रेम में बंधन जैसी स्थिति बनी रहेगी तब तक प्रेम को लेकर भ्रांति बनी ही रहेगी. यदि व्यक्तियों को प्रेम की पावनता का एहसास करना है तो उनको प्रेम की मुक्तता का, प्रेम की स्वतंत्रता का सम्मान करना होगा. प्रेम को बाँध कर समाज में प्रेम, स्नेह नहीं बल्कि नफरत, हिंसा ही फैलाई जा सकती है.


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वंदेमातरम्

5 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    06/12/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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  3. वाह!बहुत खूब ।प्रेम बाँधता नहीं ,मुक्त करता है ।

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