दीपावली, दीपावली करते-करते समय गुजर गया और दीपावली एकदम से ही गुजर गई. हर बार त्यौहार के जाते ही नए त्यौहार का इंतजार शुरू हो जाता. नया त्यौहार आते ही चला जाता और दे जाता आने वाले त्यौहार का इंतजार. यह साल अजीब तरह से गुजर रहा है. इसका आरम्भ एक ऐसी बीमारी से हुआ जो है भी और होते हुए भी न होने जैसी लग रही है. फिलहाल, इस बीमारी की बात नहीं. जिस तरह का वातावरण विगत कई महीनों से बना हुआ था, उसे देखते हुए लग रहा था कि दीपावली सहित अनेक त्यौहार फीके-फीके से गुजर जायेंगे. इसकी शंका तब और बढ़ी जबकि दीपावली से कुछ दिन पहले मनाये जाने वाला दशहरा पर्व एकदम ख़ामोशी से गुजर गया. लगा कि दीपावली भी बिना किसी शोर-शराबे के, ख़ामोशी से बीत जाएगी.
दीपावली का आना हुआ और इसके साथ आया दार्शनिक लोगों का प्रवचन देना. पर्यावरण, प्रदूषण की बातें करके अनेक जगहों पर आतिशबाजी को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया. कुछ जगहों के इस प्रतिबन्ध के बीच बहुत सारी जगहों पर खुलकर आतिशबाजी की गई. ख़ुशी का, प्रसन्नता का प्रस्फुटन देखने को मिला मगर इसके बाद भी बहुत कुछ खालीपन खुद में महसूस हुआ. इधर बहुत सालों से समस्त परिजनों का एकसाथ मिलकर त्योहारों का मनाया जाना नहीं हो पा रहा है. इस खालीपन को कोई आतिशबाजी नहीं भर सकती है. इसे विशुद्ध रूप से वही समझ सकता है, जिसने परिवार के साथ बहुत सारा समय हँसते हुए, मस्ती में गुजारा हो. फ़िलहाल तो इस बार की दीपावली कोरोना के डर को दरकिनार करते हुए बहुत सारे लोगों ने हँसते-हँसते मनाई. आशा है कि आगामी पर्व सभी लोग परिजनों के साथ एकजुट होकर ऐसे ही हँसते-गाते मनाएँगे.
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