त्योहारों का आना होता है तो मन प्रसन्न हो उठता है. त्योहारों के आने में खुशियों का समावेश होता है और वे खुशियाँ हमें हमारी यादों में ले जाती हैं. तमाम त्योहारों के बीच होली और दीपावली ऐसे पर्व होते थे जबकि पूरा परिवार उरई में इकठ्ठा होता था. सभी मिलकर खूब धमाल मचाया करते थे, खूब हुल्लड़ हुआ करता था. उन दिनों में आज की तरह त्वरित संपर्क का साधन, मोबाइल नहीं हुआ करता था. बेसिक फोन भी यदा-कदा घरों में लगे हुए थे. चाचा लोगों के आने की खबर पत्र के माध्यम से मिला करती थी. ये सूचना तो जैसे हम भाइयों के लिए आधिकारिक सूचना हुआ करती थी मगर इसके अलावा हम लोगों को ये भी भली-भांति ज्ञात था कि जिस दिन से सरकारी छुट्टियों का आरम्भ होगा, चाचा लोगों का उसी दिन आना होगा.
महीनों से होली, दीपावली के दिन गिने जाने लगते. ऐसा लगता जैसे वर्षों के इंतजार के बाद ये त्यौहार आये हों. उसी में वह दिन भी जाने कितने महीनों बाद आता जबकि घर में सबका इकठ्ठा होना शुरू हो जाता. हम तीनों भाई पूरे दिन घर से लेकर सड़क तक के न जाने कितने चक्कर लगा दिया करते. उस समय बस दिन का पता होता था मगर किस समय चाचा लोगों का आना होगा, ये खबर नहीं होती थी. ऐसे में सुबह नौ-दस बजे के बाद से उन लोगों के आने तक बस भागदौड़ लगी रहती. इस दौड़ के बीच ऐसा नहीं कि दस-बीस मिनट का अन्तराल रहता हो. चाचा लोगों के आने की ख़ुशी की आतुरता ऐसी होती कि सड़क से एक भाई की वापसी के साथ ही दूसरे भाई की दौड़ सड़क की तरफ हो जाती. सड़क के दूर मोड़ पर रिक्शा के दिखते ही घनघोर शोर, चीखना-चिल्लाना शुरू हो जाता. ऐसा लगता जैसे इसी शोर में रिक्शा और तेजी से खिंचा चला आएगा.
अब चाचा लोगों का अपने-अपने परिवारों के साथ रुकना हो गया है. समय के साथ शेष भाई-बहिन भी अपनी-अपनी जगह जमे हुए हैं. आना-जान होता है मगर अब नियमितता कम हो गई है. अब पहले जैसी आतुरता दिखती है मगर सड़क तक की दौड़ नहीं होती. इसका कारण ये है कि अब आने वालों के एक-एक पल की जानकारी मोबाइल से मिलती रहती है. कौन कब कहाँ तक पहुँच गया है, यह जानकारी होती रहती है. अब जबकि बहुत अच्छे से मालूम होता है कि त्यौहार पर फलां चाचा-चाची का उरई आना नहीं हो रहा है, ये भी मालूम होता है कि छोटे भाई-बहिन अपनी-अपनी तमाम जिम्मेवारियों के कारण नहीं आ पा रहे हैं इसके बाद भी मन में, दिल में उनके आने की हुक सी उठती रहती है. सबकुछ जानते-समझते हुए भी आँखें सड़क की तरफ मुड़ जाती हैं, निगाहें बार-बार मोबाइल की तरफ जाती हैं और पीछे बस इंतजार रह जाता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें