15 नवंबर 2020

त्योहारों से गायब होती जा रही है मिठास

अब दीपावली आती है तो ज्ञानियों को लेकर आती है. अब धुएँ से, पटाखों के शोर से पर्यावरण को नुकसान होने की बात कही जाती है जबकि बचपन में पढ़ा था कि पटाखों के शोर, धुएँ से जहरीले कीड़े-मकोड़े मर जाते हैं. पता नहीं तब गलत पढ़ाया जाता था या कि अब गलत ज्ञान दिया जा रहा है? पटाखों के अलावा किन-किन चीजों से पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है, किस-किस कदम से प्रदूषण फ़ैल रहा है, इस पर सार्थक चर्चा नहीं हो रही है. बहरहाल, ये तथाकथित ज्ञानियों का क्षेत्र है और इस पर वे तभी सक्रिय होते हैं जबकि हिन्दू धर्म से सम्बंधित त्यौहार, पर्व सामने दिख रहे हों. दीपावली पर हम बचपन में भी खूब पटाखे फोड़ा करते थे और आज भी फोड़ते हैं. अब अंतर ये आया है कि अब खूब नहीं फोड़े जाते क्योंकि खूब फोड़ने के लिए घर में हमसे छोटे बच्चे मौजूद हैं.




बचपन में दीपोत्सव के पाँचों दिन पटाखों की गूँज सुनाई पड़ती थी. रंग-बिरंगी आतिशबाजी के बीच कड़ाबीन का अपना गज़ब आकर्षण हुआ करता था. हम बच्चों के बीच उनको चलाने वाला विशेष महत्त्व रखता है. कड़ाबीन या फिर किसी भी दूसरे आवाज़ वाले पटाखों को चलाने में कलाबाजी की आवश्यकता होती थी. आग लगाना और उसके चलने के पहले ही उस पटाखे की पहुँच से दूर हो जाना बहुत ही फुर्तीला और सावधानी भरा कदम माना जाता था. ऐसा तब और भी अधिक कलाबाजी का काम समझा जाता था जबकि चारों तरफ से किसी न किसी रूप में आतिशबाजी चलने में लगी हो. देर रात तक पटाखे चलाने के बाद सुबह-सुबह की ठंडक में बचे-बचाए, बिना चले पटाखों को बीनने का काम गुप्तचर रूप में किया जाता. अधचले, बिना चले पटाखे एक तरह के बोनस का स्वाद दिया करते थे.


अब पहले की तरह पारिवारिक सदस्यों का इकठ्ठा होना भी नहीं होता है. आतिशबाजी भी पहले की तरह सामूहिकता में नहीं चलाई जाती है. मोहल्ले की गलियाँ, घरों की छतें अब पहले की तरह गुलज़ार नहीं दिखाई देती हैं. अब पहले की तरह अधचले, बिना चले पटाखों को बीनने वाले जासूस भी नहीं दिखाई देते हैं. अब ऐसा लगता है जैसे त्यौहार को बस मनाना है. यह भी एक तरह की औपचारिकता सी लगने लगी है. इस औपचारिकता के निर्वहन में वो पहले जैसी मिठास गायब होती चली जा रही है. तथाकथित ज्ञानियों को पर्यावरण की चिंता है मगर सामाजिकता से गायब हो रही मिठास की चिंता नहीं है. घरों-घरों तक में फैलते जा रहे एकाकी सामाजिक प्रदूषण के प्रति कोई भी सचेत नहीं है.


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#कुमारेन्द्र 

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