क्या हम लोग बनावटी दुनिया में रह रहे हैं? क्या हमारे आसपास के बहुसंख्यक लोग बनावटी होते जा रहे हैं? क्या हम में से बहुतों का व्यवहार बनावटी समझ आता है? यहाँ बनावटी और स्वार्थी में अंतर भी समझिएगा. स्वार्थी व्यक्ति किसी न किसी हित के लिए, लाभ के लिए, स्वार्थ के लिए सम्बन्ध बनाता है. वह अपने लाभ के लिए संबंधों का, सम्बन्धियों का किसी भी हद तक उपयोग करने से नहीं चूकता है. उसका व्यवहार, मिलना-मिलना, बातचीत आदि सबकुछ उसके लाभ के आकलन के अनुसार ही संचालित होता है.
इसके उलट बनावटी व्यक्ति को सम्बन्ध बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं होती है. उसके लिए सम्बन्ध उतनी ही देर के लिए होते हैं जितनी देर सम्बंधित व्यक्ति उसके सामने है. उसके निगाह से दूर होते ही बनावटी व्यक्ति के लिए वह व्यक्ति अपरिचित हो जाता है. मुँह देखे का यह व्यवहार वर्तमान में बहुतायत से चलन में आता जा रहा है. ऐसा लगता है जैसे तकनीकी भरे युग में हम सब भी किसी न किसी तकनीक से संचालित होकर मशीन बनते जा रहे हैं. सभी धीरे-धीरे बनावटी होते जा रहे हैं.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-10-2020) को "बिन आँखों के जग सूना है" (चर्चा अंक-3851) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तभी तो जीवन में इतनी ऊब और नीरसता आ गई है.
जवाब देंहटाएंबात तो सही कही आपने
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