इधर तनिष्क का एक विज्ञापन देखने को मिला और उसका विरोध भी साथ-साथ दिखाई देता रहा. विज्ञापन की अच्छाई-बुराई को एक किनारे लगा दिया जाये तो एक बात आज तक समझ नहीं आई कि समाज में कुछ लोगों को ये कीड़ा कहाँ से काट लेता है कि वे गंगा-जमुनी तहजीब के नाम पर हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों की वकालत शुरू कर देते हैं? क्या हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द्र के लिए आवश्यक है कि दोनों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता रखा जाये? यदि ऐसा करना आवश्यक है तो फिर रोटी-बेटी का रिश्ता बनाने में बेटी सदैव हिन्दू की ही क्यों नजर आती है? ये तनिष्क का विज्ञापन हो या फिर होली का कोई विज्ञापन, सभी जगह हिन्दू बेटी ही निशाने पर रखी जाती है. आखिर तनिष्क का ये विज्ञापन मुस्लिम को लेकर बनाया-दिखाया जाना अनिवार्य था तो उन्हीं के रीति-रिवाजों, चाल-चलन के साथ भी तो बनाया जा सकता था. उनकी मजहबी मान्यताएँ भी विज्ञापन में दिखाकर सोने का, ज्वेलरी का प्रचार किया जा सकता था, मगर ऐसा नहीं किया गया.
समझ नहीं आता कि शासन-प्रशासन कहाँ तक, किस बात की निगरानी करे, किस-किसके पीछे पहरेदारों की तरह भागती रहे. ऐसी किसी भी मानसिकता के लिए, किसी भी घटना के लिए परिवार वाले, समाज के लोग भी जिम्मेवार हैं. आखिर क्यों एक परिवार अपने बच्चों के चाल-चलन, उनकी मानसिकता पर नजर नहीं रख पा रहा है? आखिर क्यों किसी हिन्दू परिवार में उनके बच्चों में उनके धर्म, संस्कृति, सभ्यता के प्रति सकारात्मक वातावरण देखने को नहीं मिल रहा है? क्यों हिन्दू परिवारों के बच्चे लगातार अपनी धार्मिक मान्यताओं से विमुख होते जा रहे हैं? इन सवालों को समाज में, अपने परिवार में परखने की आवश्यकता है. ये विज्ञापन हो अथवा फ़िल्में, कोई कहानी हो या फिर किसी भी तरह का सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण सभी के पीछे कोई कुत्सित मानसिकता काम कर रही है. इस मानसिकता का एकमात्र उद्देश्य हिन्दू धर्म का मखौल बनाना, उसकी जड़ों को खोखला करना ही है.
सत्य लिखा है। हिन्दू जन अपनी धार्मिक मान्यता से दूर होते चले जा रहे हैं। अपनी आगामी पीढ़ी को भी यही दे रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसत्य लिखा है। हिन्दू जन अपनी धार्मिक मान्यता से दूर होते चले जा रहे हैं। अपनी आगामी पीढ़ी को भी यही दे रहे हैं।
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
18/10/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
किसी भी संस्कृति , परम्परा, नृत्य, पर्व-त्योहार और आस्था के पीछे धार्मिक आधार, वैज्ञानिक आधार, मनोवैज्ञानिक आधार के साथ-साथ सामाजिक समरसता का एक ठोस कारण होता है। पहले जि समाज की सामजिक समरस्ता (जाति थी पर जातिवाद नही था) सभी एक दूसरे के पूरक थे.सौहार्द की पराकाष्ठा मैंने देखी है. आज जिस मिशन को लेकर मै चल रहा हूँ अगर लोगों ने साथ नही दिया तो इतिहास माफ नही करेगा.....इतिहास उन्हे आज माफ नही कर रहा है जिनकी वज़ह से नालंदा जला.चाह्ते तो बचा सकते थे.
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