21 सितंबर 2020

जाने-अनजाने हो गई मदद

अक्सर ऐसा होता है कि किसी की सहायता करने का मन होता है मगर स्थितियों और नियमों के चलते ऐसा कर पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसी स्थिति बड़ी ही जटिल हो जाती है. सामने वाला समझता है कि जिस व्यक्ति से मदद माँगी जा रही है वह सहायता करना नहीं चाह रहा और जो मदद करना चाहता है वह नियमों, परिस्थितियों के कारण मजबूर रहता है. इधर पिछले तीन-चार दिन से कुछ ऐसा ही हो रहा था हमारे साथ. चीनी वायरस कोरोना के चलते विश्वविद्यालय की परीक्षाओं को बीच में ही स्थगित करना पड़ा था. उसी में परास्नातक की मौखिकी परीक्षाओं को भी टालना पड़ा था. इधर जैसे-जैसे अनलॉक की स्थिति आगे बढ़ती रही शासन स्तर से परीक्षाओं को लेकर अपने कदम बढाए जाने लगे. इसी में आदेश आया कि अंतिम वर्ष की छूटी हुई परीक्षाओं को करवाया जाएगा. इन्हीं में परास्नातक की मौखिकी परीक्षाओं को भी शामिल किया गया था.


अभी मौखिकी परीक्षा के तीन-चार दिन पहले मोबाइल पर घंटी बजी. उस नम्बर पर बहुत सीमित लोगों की ही कॉल आती है, उन सबके नम्बर उसमें सेव हैं ऐसे में अनजाना नम्बर चमकने पर आश्चर्य हुआ. फोन उठाया तो पता चला कि परास्नातक का छात्र है जिसकी मौखिकी परीक्षा से सम्बंधित समस्या है. उसके समाधान के बारे में कुछ कहने के पहले जानकारी की कि ये नम्बर उसे दिया किसने है. उसने बताया कि बहुत खोजबीन के बाद इंटरनेट से प्राप्त हुआ. वह नम्बर सार्वजनिक नहीं है फिर याद आया कि बहुत पहले उस नम्बर को कुछ जगहों पर दे रखा था, दूसरे मोबाइल नम्बर के विकल्प रूप में. उसकी बात सुनने के बाद लगा कि उसकी सहायता की जानी चाहिए मगर स्थिति ऐसी थी कि चाह कर भी मदद नहीं हो सकती थी.


उसकी पूरी बात सुनने-समझने के बाद उसको समझाया. आश्वस्त किया कि यथासंभव मदद की जाएगी. वह दिन में दो-तीन बार फोन करके किसी भी तरह से सहायता करने की बात करता और हम हर बार उसे आश्वस्त करते. असल में रविवार को मौखिकी परीक्षा थी और उसी दिन एक प्रतियोगी परीक्षा होने के कारण उसकी उपस्थिति में कुछ विलम्ब की सम्भावना थी. मौखिकी परीक्षा सम्पन्न होने, सभी विद्यार्थियों के अंक इंटरनेट के माध्यम से विश्वविद्यालय भेजने की प्रक्रिया में समय बहुत नहीं लगता है. ऐसे में आंतरिक और वाह्य परीक्षक भी अपना कार्य पूर्ण करके घर पहुँचने की कोशिश में रहते हैं. आखिर वे भी सुबह नौ बजे से आधा सैकड़ा से अधिक विद्यार्थियों के विस्मयकारी ज्ञान से जूझ रहे होते हैं.


अध्यापन कार्य से जुड़े होने के कारण अन्दर से यह भी लग रहा था कि किसी विद्यार्थी का नुकसान न हो. इस सम्बन्ध में किसी तरह की सहायता न कर पाने की विवशता के कारण खुद में बुरा भी लग रहा था. उसे अपनी प्रतियोगी परीक्षा पूर्ण मनोयोग से देने की बात कहते हुए उस दिन भी उसे आश्वस्त किया. किसी बच्चे का भला हो जाने की नीयत से किये जाने वाले आश्वासन संभवतः सत्य में बदल गए. विश्वविद्यालय से सूचना प्राप्त हुई कि मौखिकी परीक्षा के अंकों को विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर शाम छह बजे के बाद ही अपलोड किया जाएगा. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मौखिकी परीक्षा की सूचना विद्यार्थियों को अल्प समय में दी गई थी. ऐसे में विश्वविद्यालय की तरफ से शाम छह बजे तक अनुपस्थित विद्यार्थियों की प्रतीक्षा करने को कहा गया.


ऐसी जानकारी मिलते ही उस छात्र को खबर कर दी. वह अत्यंत ख़ुशी के भाव से अपनी परीक्षा देने उपस्थित हो गया. उससे मुलाकात तो नहीं हो सकी क्योंकि हम आंतरिक अथवा वाह्य परीक्षक के दायित्व से मुक्त थे. बात करते-करते उसका बार-बार गला भर आता. उसे समझाया कि इसमें हमारा कोई प्रयास नहीं है, यह विश्वविद्यालय के आदेश से स्वतः ही हुआ है. वह पिछले तीन-चार दिन से लगातार हमारे द्वारा फोन रिसीव किये जाने, उसकी बात लगातार सुनने, उसे आश्वस्त करने आदि को लेकर वह अत्यंत भावुक हो रहा था. अच्छा लगा कि भले ही कोई काम हमारे प्रयास से न हुआ हो मगर एक छात्र ख़ुशी-ख़ुशी अपने परीक्षा में शामिल हो सका.


हमसे मिलने, मिठाई खिलाने की उसकी बात पर कहा कि बस हमें याद रखना और जब नौकरी लग जाए तो आना मिठाई खिलाने. उस छात्र को शुभकामनाएँ.


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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