19 सितंबर 2020

दिल से, नजर से उतर न जाना

कमजोर समय के वाहक हैं हम लोग या फिर समय ने हम सबको कमजोर कर दिया है? जब कोई विशेष आयोजन या समय हो तब मन में एहसास जगता है अपने कुछ विशेष लोगों के साथ होने का. किसी समय में यह साथ व्यक्तिगत रूप में हो जाया करता था. ऐसा न हो पाने की स्थिति में पत्र, फोन कॉल आदि सहायक हुआ करते थे. ऐसे समय में समय की प्रतिबद्धता को एक किनारे रखते हुए व्यक्ति की उपस्थिति को स्वीकार लिया जाता था. आज जबकि तकनीकी ने सबको एक-एक पल से जोड़ रखा है तब किसी अपने की, किसी ख़ास की अनुपस्थिति मन को व्याकुल कर जाती है. यदि आज के भागदौड़ भरे समय में शारीरिक उपस्थिति नहीं हो सकती है तो अनेक माध्यम हैं जिनके द्वारा उपस्थिति हो सकती है.


बहरहाल, ऐसे समय में जबकि दिन भी ज्ञात हो, आयोजन की जानकारी भी हो किसी अपने का न आना स्पष्ट रूप से साबित करता है कि या तो सम्बंधित व्यक्ति आपको भूलने का सन्देश दे रहा है अथवा वह आपके प्रति अपनापन नहीं रख रहा है. इसकी मीमांसा न करते हुए महज इतना ही कि विगत दिनों जो हुआ वह मन को, दिल को अच्छा न लगा.


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