Early to bed and early to rise makes and man healthy, wealthy and wise. ये लाइन हमारे बाबा जी अक्सर हम भाइयों को सुनाया करते थे. जल्दी सोने की आदत उस समय हुआ करती थी और जल्दी जागने की भी. कारण ये कि पढ़ाई का बहुत बोझ जैसा कोई माहौल नहीं था. जो थोड़ा-बहुत काम मिला करता था वह बहुत जल्दी समाप्त हो जाया करता था. उसके बाद खूब जमकर मैदान पर खेलना हुआ करता था. जमकर शारीरिक अभ्यास होने के कारण जल्दी ही नींद के आगोश में चले जाया करते थे. सोने के बाद ये आराम नहीं कि सुबह देरी तक सोते ही रहना है. बाबा जी ने आदत डलवाई थी सुबह घूमने की, इसी कारण सुबह जागना भी खूब जल्दी हो जाया करता था.
बाबा जी के साथ सुबह-सुबह टहलने का क्रम वर्ष 1990 तक चला. उसके बाद हमारा उच्च शिक्षा के लिए ग्वालियर जाना हुआ और अगले वर्ष आज ही के दिन बाबा जी का अनंत यात्रा को जाना हुआ. हॉस्टल में रहने के कारण जल्दी सोने की आदत तो बदलने लगी मगर सुबह जल्दी उठने और घूमने की आदत नहीं बदली. कॉलेज के मैदान पर सुबह-सुबह जाकर कई-कई चक्कर लगाया करते थे. उसके पीछे सुबह उठने की आदत के साथ-साथ एथलेटिक्स में भाग लेना भी था.
समय बदलता रहा, हम भी बदलते चले गए और आदतें भी बदल गईं. अब देर रात तक जागना होने लगा है. सुबह नींद आज भी जल्दी खुल जाती है मगर अब न एथलेटिक्स है, न सुबह कुछ याद करने का चक्कर, न पढ़ाई करने की स्थिति सो जागते हुए घड़ी के और आगे सरकने का इंतजार करते रहते हैं. देर रात से ही आज की तारीख दिमाग में घूम रही थी, उस दिन की घटना किसी फिल्म की तरह घूम रही थी. सुबह उठकर बचपन की दिनचर्या याद आने लगी. दौड़ते-दौड़ते अजनारी गाँव तक जाना, लौटते समय रेलवे क्रासिंग पर बनी गुमटी में बैठकर निकलने वाली ट्रेन के डिब्बे गिनना, सिक्कों को चुम्बक बनाने के लिए पटरियों पर रखना और ट्रेन निकल जाने के बाद उनको ढूँढना आदि-आदि याद आता रहा, चेहरे पर मुस्कान लाता रहा. बुजुर्गों का साथ रहना बच्चों को कितना-कितना सिखा जाता है, यह वही समझ सकता जिसने उन पलों का आनंद लिया हो.
बाबा
जी को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन.
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