अपनों
को खोने का दुःख सदैव रहता है. उम्र भर उनकी कमी महसूस होती है. यह कमी उस समय और
तीव्रता से महसूस होती है जबकि उनकी पुण्यतिथि हो. यह क्षण उस समय और कष्टकारी हो
जाता है जबकि ऐसी तिथि दो बार आपकी नज़रों के सामने से गुजरे. इसमें भी एक तिथि ऐसी
हो जिसका सम्बन्ध आपकी संस्कृति से, आपके धार्मिक कृत्य से हो. यदि किसी भी तिथि
को हिन्दी और अंग्रेजी महीनों के अनुसार देखा जाये तो सभी का दो बार आना स्वाभाविक
है. इसमें अंग्रेजी महीने वाली तारीख तो अपने नियत समय, नियत महीने पर ही आती है.
इसके उलट हिन्दी महीनों के अनुसार आने वाली तिथि प्रतिवर्ष आगे-पीछे होती रहती है.
इस कारण से हम सभी अपने महत्त्वपूर्ण दिवसों को अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार याद
किये रहते हैं. हिन्दी महीनों की तिथि बहुत से लोगों को याद भी नहीं रहती है.
ऐसा
लगभग सभी के साथ है, खुद हमारे साथ भी. हिन्दी महीनों के कैलेण्डर की तिथि हमें
उसी स्थिति में याद रहती है जबकि वह सामाजिक रूप से कुछ विशेष हो. कुछ ऐसा ही
हमारे साथ भी कुछ विशेष तिथियों को लेकर है. उन्हीं में एक विशेष तिथि है बुढ़वा
मंगल की. उस दिन भी यही मंगलवार था मगर तारीख 01 सितम्बर नहीं थी, उस दिन 17 सितम्बर थी. यह दिन पिछले 29 सालों में लगातार साथ
रहा है. यह दिन अंग्रेजी महीने की तारीख आने पर तो तो याद आता ही है, हिन्दी
महीनों के अनुसार भी यह स्मृति में छाया रहता है. सन 1991 में
सितम्बर माह की 17 तारीख थी और दिन मंगलवार था, बुढ़वा मंगल
जबकि हमारे बाबा जी हम सबको अकेला छोड़कर अनंत यात्रा को चले गए थे.
उस
दिन बाबा जी से नहीं बल्कि उनकी मृत देह से ही हम सबका परिचय हुआ था. वे हम सबको
दैहिक रूप में छोड़कर भले ही चले गए हों मगर अपनी शिक्षाओं के रूप में हमारे साथ
सदैव रहेंगे. उन्होंने हम लोगों को सदैव जीवन के विविध पक्षों के बारे में जानकारी
दी, शिक्षा दी. जीवन के विविध पक्षों के बारे में बाबा जी के द्वारा दी गई
शिक्षाओं का महत्त्व अब समझ आता है जबकि हमें जीवन के बारे में समझने की आवश्यकता
महसूस होती है. जीवन के प्रति, ज़िन्दगी के प्रति हमारी सकारात्मक सोच के पीछे
निश्चित रूप से बाबा जी के जीवन-दर्शन का ही योगदान कहा जायेगा.
बाबा
जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर श्रद्धांजलि.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बाबा जी की पुण्यतिथि पर उनको विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंसादर नमन ����
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि।
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