ओ सुन बेपेंदी के ज़ाहिल
ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है,
जो बना था हमारे ख़ून से
वो पाकिस्तान तेरे बाप का है.
मज़हब के नाम पर माँगा था
तुम्हारे ही बापों ने हिस्सा,
तुम जैसे कुछ रह गए यहीं
चलाने को वही नापाक क़िस्सा.
इस वतन को अब बँटने न देंगे
ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है.
खाते पीते यहाँ बजाते उसकी
कितने बेग़ैरत हो शर्म करो,
ना ज़लालत झेले क़ौम पूरी
कुछ तो ऐसे सदकर्म करो.
इस वतन में दुष्कर्म करने न देंगे
ये हिंदुस्तान हमारे बाप का है.
अपनी कुदृष्टि का आधार
साहित्य के मंच को न बनाओ,
रहना हो रहो शौक़ से या फिर
अपने बाप के वतन निकल जाओ.
इस वतन में नाशुकरे न टिकने देंगे
ये हिंदुस्तान मेरे बाप का है.
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08-07-2017 को लिखी रचना, किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है, बताने वाले को।
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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