12 अगस्त 2020

लिव इन रिलेशन की सामाजिकता

समाज का बहुसंख्यक वर्ग वर्तमान में वैवाहिक संबंधों के प्रति नकारात्मकता दिखा रहा है. पति-पत्नी के आपसी संबंधों में लगातार बिखराव की स्थिति आ रही है. वैवाहिक संबंधों से वितृष्णा दिखाकर वर्तमान युवा और स्वच्छंद पीढ़ी एक नए रिश्ते को समाज में स्थापित कर चुकी है. यह नई संकल्पना लिव-इन-रिलेशन के नाम से जानी जा रही है. इन लोगों को विषय की गंभीरतासमाज पर उसका प्रभावउसकी दीर्घकालिकता का कोई अर्थ नहीं होता उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपनी बात सिद्ध करना होता है. इस समय युवा वर्ग कैरियर बनाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है ऐसे में उसके लिए विवाह से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कार्य अपने कैरियर में सफलता प्राप्त करना होता हैअधिकाधिक धनार्जन करना होता हैऐशो-आराम के समस्त संसाधनों को प्राप्त कर लेना होता है. इस आपाधापी के चलते युवाओं में विवाह संस्था के प्रति विश्वास समाप्त सा होता जा रहा है. ऐसी स्थिति में बिना किसी प्रतिबन्धबिना किसी जिम्मेवारीस्वतंत्र भाव से जीने की संकल्पनाअकल्पनीय स्वतंत्रता के बीच शारीरिक संबंधों की स्वीकार्यता ने ही लिव-इन-रिलेशन को जन्म दिया. इस तरह के सम्बन्ध नितांत दैहिक आकर्षण और उसकी माँग और आपूर्ति जैसे क़दमों की देन हैं और ऐसे सम्बन्ध यदि दीर्घकालिकपूर्णकालिक नहीं हैं तो इनका सर्वाधिक नुकसान महिलाओं को ही उठाना पड़ता है.



इस मानसिकता का सर्वाधिक लाभ बाजार ने उठाया है. बाजार में जहाँ एक तरफ महिलाओं सम्बन्धी गर्भ-निरोधक साधनों कीगर्भ रोकने के उपायों की भरमार है वहीं दूसरी तरह गर्भपातों कीबिन-व्याही माताओं कीकूड़े के ढेर पर मिलते नवजातों की संख्या में भी अतिशय वृद्धि हुई है. ये समूची स्थितियाँ सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को प्रभावित करती हैं. यदि लिव-इन-रिलेशन जैसे सम्बन्ध आपसी सामंजस्य से विवाह संस्था से बचने के लिए हैंशारीरिक संबंधों की निर्बाध स्वीकार्यता के लिए हैअल्पकालिक दैहिक सुख के लिए है तो सहजता से कहा जा सकता है कि ऐसे सम्बन्ध असामाजिकता को ही बढ़ायेंगे. लिव-इन-रिलेशन जैसे संबंधों में किसी भी समय पर लड़के द्वारा लड़की को छोड़ देने, किसी और लड़की के साथ लिव-इन में चले जाने, इस रिलेशन में रहने वाली लड़की के गर्भवती होने, कई-कई शारीरिक संबंधों से होने वाले यौन-रोगों आदि दुष्परिणाम भी सामने आने की आशंका बनी रहती है.

सामाजिक संरचना में विवाह संस्था यौन-संबंधों की स्वीकार्यता मात्र के लिए नहीं है अपितु सृष्टि के विकास की अवस्था में सहगामी कदम भी है. इसके द्वारा जहाँ पारिवारिक संरचना का विकास होता है वहीं सामाजिकता भी अपना विकास करती है. ऐसे में लिव-इन-रिलेशन की सामाजिक-कानूनी मान्यता-स्वीकार्यता के पूर्व खुले मंच से इस पर बहस होखुले दिल-दिमाग से इसके समस्त पहलुओं पर चर्चा होसकारात्मक दृष्टि से इसके नैतिक-अनैतिक रूप का आकलन हो. ऐसा करना न सिर्फ वर्तमान के लिए वरन भविष्य के लिए भी उचित कदम होगा.

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