एक
और शिक्षा नीति देश के सामने आ गई है. इस बारे में अभी कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि
इसके बारे में अभी पढ़ना नहीं हो सका है. बिना पढ़े ऐसी किसी भी नीति के बारे में,
नियमों के बारे में कुछ भी कहना सही नहीं. राजनीति के नजरिये से प्रत्येक कदम को
देखना उचित नहीं. संभव है कि इस नीति में अच्छे बिंदु उठाये गए हों, ये भी संभव है
कि इसमें कुछ बिन्दुओं पर अभी भी विमर्श की, बदलाव की आवश्यकता हो मगर इनके बारे
में जानकारी के बाद ही कुछ कहना सही रहेगा.
अभी
बात महज इतनी कि शिक्षा नीति लागू करने के साथ-साथ कुछ कठोर कदमों को भी उठाया
जाना अपेक्षित है. उच्च शिक्षा क्षेत्र से जुड़े होने के कारण इस क्षेत्र की बहुत सी
कमियाँ आये दिन सामने आती हैं. इसके अलावा बहुत से मित्रों का, परिजनों का
प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण इस क्षेत्र की कमियों
से भी सामना होता रहता है. अभी हाल ही में प्राथमिक क्षेत्र में एक बड़ा घोटाला
सामने आया जबकि एक महिला लगभग दो दर्जन जगहों पर नियुक्त पकड़ में आई. इसके बाद
पूरे प्रदेश में शिक्षकों की जाँच का कदम उठाया गया. ये तो महज एक स्थिति है. उच्च
शिक्षा क्षेत्र में आये दिन निजी क्षेत्रों के महाविद्यालयों द्वारा किसी न किसी
रूप में नियमों की अवहेलना करने की घटनाएँ सामने आती हैं. प्रवेश से लेकर परीक्षा
करवाने तक के कई कदमों में उनके द्वारा नियमों-कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए अपना
उल्लू सीधा किया जाता है.
ये
स्थिति अकेले महाविद्यालयों की नहीं है वरन निजी क्षेत्र के तमाम शिक्षण संस्थान
इसी तरह की गतिविधियों में लिप्त हैं. यहाँ जब भी बदलाव की, परिवर्तन की बात की
जाती है तो प्रबंध-तंत्र प्रशासन पर दोष लगाता है और प्रशासन निजी संस्थानों के
प्रबंध-तंत्र को कटघरे में खड़ा कर देता है. ऐसे में अपेक्षित सुधार की सम्भावना
शून्य ही हो जाती है. इन शिक्षण संस्थानों द्वारा पुस्तकों को लेकर, फीस को लेकर
आये दिन के फसाद किसी से छिपे नहीं हैं. ऐसे में जबकि देशव्यापी तंत्र में खराबी
समझ आती है तब महज एक नई नीति का निर्माण किसी बड़े परिवर्तन का सूचक नहीं हो सकता
है. निजी संस्थानों पर लगाम लगायी जानी चाहिए, जिनके द्वारा शिक्षा का, पुस्तकों
का, फीस का घनघोर बाजारीकरण किया जा चुका है.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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