आजतक
समझ नहीं सके कि ज़िन्दगी में आवश्यक क्या है, संबंधों का निर्वहन या संबंधों का
बनाना? हो सकता है कि संबंधों की संकुचित अवधारणा में बहुत से लोगों के लिए
संबंधों का कोई अर्थ ही न रह जाता हो. आज भी बहुत से लोगों के लिए संबंधों का अर्थ
रक्त-सम्बन्धियों से नहीं बल्कि पति-पत्नी और बच्चों से लगाया जाता है. को तैयार हो जाते थे कि वो उनके गाँव का है या
फिर उनके ससुराल का है. हमारे सन्दर्भ में देखें तो हमारा पैतृक गाँव और ननिहाल एक ही जिले में है. पिताजी
के वकालत पेशे से जुड़े होने के कारण इन दो जगहों के केस आये दिन देखने को मिलते.
उस
समय जबकि हम महज नौ-दस साल के थे, हमें अदालती मामलों की समझ न थी. हमारे लिए गाँव
से ननिहाल से आने वाला कोई भी व्यक्ति किसी मेहमान की तरह, रिश्तेदार की तरह ही
होता था. सत्तर-अस्सी के दशक में आज जैसी भौतिकता भी हावी न हुई थी. मुकदमा लड़ने
वाले घर पर ही रुका करते और हमारी अम्मा उन सभी के भोजन, शयन आदि का ख्याल रखतीं.
हम सभी भाई उन के साथ किस्सों-कहानियों
में,बाबा-अइया, नाना-नानी की कहानियों में उलझे रहते. इसी में दिन गुजरते रहते,
लोग आते रहते, जाते रहते कोई हमारे चाचा होते कोई मामा, कोई भाई होते तो कोई जीजा
मगर पिताजी समभाव रूप से सभी के केस निपटाने की कोशिश करते.
आज
हम न्यायिक प्रक्रिया से अलग हैं. पिताजी ने लॉ का कोर्स न करने दिया और हमने उनका
सम्मान करते हुए लॉ का कोर्स नहीं किया. इसके बाद भी पता नहीं कैसे गाँव में,
ननिहाल में ये खबर है कि हम वकालत किये हैं, यह खबर अप्रत्यक्ष हमारे लिए ही
लाभकारी है, इसलिए इसका विरोध नहीं किया. ये और बात है कि प्रशासनिक संबंधों के
चलते बहुत से मामले, मसले अपने स्तर पर ही निपटा लिए जाते हैं मगर इसका अर्थ कदापि
यह नहीं कि हम वकालत पेशे से सम्बद्ध हैं.
इन
बातों को कहने का कोई अर्थ नहीं, ये सब इसलिए लिखा कि कोई भी पढ़ने वाला इस बात को
समझे कि आज के दौर में भी संबंधों की अहमियत बहुत अधिक है. आज रक्त-सम्बन्धी भले
ही मदद करने को आगे आयें या न आयें मगर एक बार सामाजिक रूप में आप जिससे भी
सम्बन्ध बनाते हैं, वह आगे अवश्य ही आता है. ये भी संभव है कि सभी दशाओं में ये
नियम काम न करे मगर आपने सम्बन्ध ही हमेशा काम आते हैं, इससे कोई भी इनकार नहीं कर
सकेगा.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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