08 जून 2020

सहृदय योगेश जी की यादों के उजाले

विविध भारती पर इधर उजाले उनकी यादों के कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसिद्द गीतकार योगेश और उद्घोषक युनुस खान बातचीत करते सुनाई दे रहे थे. इस बातचीत में योगेश जी के जीवन के बहुत से पहलू सामने निकल कर आये. इसके साथ-साथ फिल्म संसार के भी बहुत से रंग समझ में आये. योगेश जी ने बड़े ही सहज भाव से अपने मुंबई आने की, शुरूआती दिनों के संघर्ष की, रोजगार पाने की जद्दोजहद के बीच अपने अभिन्न मित्र सत्यप्रकाश, जिन्हें योगेश जी सत्तू नाम सी पुकारते थे, के प्रेम, समर्पण को भी सुन्दर शब्दों में उकेरा. इस कार्यक्रम में बातचीत में फिल्म संसार के रंगों पर चर्चा से ज्यादा आकर्षण योगेश जी की बातों में, उनके अनुभवों का रहा.



आपको भी आश्चर्य होगा जानकर कि योगेश जी जब लखनऊ से मुंबई आये तब उनके सामने ये भी तय नहीं था कि उनको करना क्या है. विविध भारती के विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा अनेकानेक कलाकारों के अनुभवों को सुना गया. जिनमें से लगभग सभी का फिल्मों में काम करने का सपना रहा है अथवा किसी से प्रेरणा लेकर वे फिल्मों में आ गए. इसके उलट योगेश जी के पास भी फिल्मों में आने का विकल्प उनके एक रिश्तेदार के माध्यम से था मगर वे मुंबई फिल्मों में काम करने का सोच कर ही नहीं आये थे. उनको फिल्मों में लाने का पूरा श्रेय उनके मित्र सत्यप्रकाश जी का रहा, इसे योगेश जी ने खुलकर स्वीकार भी किया. वे अपनी बातचीत में बताते हैं कि उन्होंने संघर्ष नहीं किया बल्कि संघर्ष तो सत्तू ने किया. ऐसा महसूस भी हुआ. कई जगहों पर योगेश जी के काम करके पैसे कमाने को उनके मित्र ने ही बंद करवाया. वही उनको फिल्मों में काम करने को प्रेरित करते रहे.

इतना होने के बाद भी अंदाजा लगाइए कि उनको नहीं मालूम कि करना क्या है फिल्मों में. इसी चक्कर में उनको एक बार एक्स्ट्रा का काम मिल गया. बहरहाल, उनकी फिल्मों की तरफ जाने की कहानी बहुत ही मजेदार है. अनेक प्रसिद्द गीतों को लिखने वाला व्यक्ति मुंबई आने तक न कविता लिखा करता था न ग़ज़ल, गीत आदि. यह काम भी योगेश जी ने मुंबई में काम की तलाश में धक्के खाते हुए शुरू किया. उनकी तमाम बातों के बीच निष्कर्ष निकला कि वे स्वाभिमानी होने के साथ-साथ कोमल ह्रदय के व्यक्ति थे. एक हिट गाने का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि उन पर ऐसे गीत लिखने का दवाब बना रहता जो कुछ समय बाद उनको पसंद नहीं आया. इसी के चलते वे मुंबई से वापस लखनऊ आ गए. यहाँ भी उनके मित्र ने उनकी सहायता की. मुंबई से उनको बुलावा आया तो उन लोगों ने इसे मजाक समझा और असलियत जानने के लिए उनके मित्र सत्तू ही मुंबई आये.

यहाँ विशेष बात यह लगी कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने गीत, कविता लिखना मुंबई आने के बाद शुरू किया. जो अपने घर से बिना किसी निश्चित दिशा की शक्ल बनाकर निकल आया हो, जिसने काम के लिए किसी की चाटुकारिता न की हो यदि वह सच्चे मन से लगा रहे तो सफलता मिल जाती है. उनकी बातचीत में कई संगीतकारों, कई गीतकारों, गायकों के बारे में भी अनछुए पहलू सामने आये. कई-कई महीने प्रसिद्द संगीतकारों द्वारा चक्कर लगवाने के बाद योगेश जी का दो टूक शब्दों में इंकार करना, चाटुकारिता जैसी स्थिति को स्वीकार न कर पाना, अनावश्यक बैठकी लगाने के पक्ष में न रहना आदि ऐसी बातें हैं जो उनके स्वाभिमान को और तत्कालीन स्थितियों को भी दर्शाती हैं.

उनके लिखे गीत आज भी खूब गुनगुनाये जाते हैं, खूब सुने भी जाते हैं. कहीं दूर जब दिन ढल जाए, जिंदगी कैसी है पहेली, रिमझिम गिरे सावन, आए तुम याद मुझे, न जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ, कई बार यूं भी देखा है, न बोले तुम न मैंने कुछ कहा, बड़ी सूनी-सूनी है, जिंदगी ये जिंदगी है जैसे गीतों को सुनने-गुनगुनाने वालों में बहुत से लोग गीतकार योगेश से अनजान ही होंगे. उजाले उनकी यादों के ने जिस तरह से योगेश जी की यादों के उजाले में बहुत कुछ स्पष्ट किया, उसके लिए उद्घोषक युनुस खान भी बधाई के पात्र हैं.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर यादें योगेश जी के गीत बहुत लाजवाब और मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण हैं ... लम्बे समय से उनके गीत आनंद दे रहे हैं ...

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  2. विविध भारती के सारे कार्यक्रमो में से इसे भी मै बराबर सुनती हूँ ,योगेश जी के बारे में मुझे पहले से ही पता रहा, बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट और जानकारियां ,आपका आभार

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  3. महत्वपूर्ण जानकारी। ये सभी गीत ख़ूब सुनती हूँ, पर कभी गीतकार के विषय में न सोचा। जानकर बहुत अच्छा लगा।

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  4. पिता के मरने पर अपनों द्वारा दिखाये गए बेरुखे अमानवीय व्यवहार की तड़प से आंदोलित उनका संघर्ष एक अद्भुत जीवन गाथा है।

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  5. जीवन भी एक गाथा बन जाता है - संघर्ष माँज-माँज कर निखार देते है .

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  6. मोहक प्रस्तुति।
    जानकारी युक्त।

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  7. शब्दों की बुनावट फिल्मों में ऐसी कम ही मिलती है योगेश जी का जाना अखर गया

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