07 जून 2020

काश कि दिल-दिमाग-मन को फॉर्मेट किया जा सकता

कभी-कभी भावावेश में या फिर अचानक ही अनजाने में ऐसे कदम उठ जाते हैं जिनके बारे में बाद में सोचने पर अफ़सोस होता है. कई बार उन बातों के परिणाम सामने आने के बाद भी अफ़सोस होता है. आवश्यक नहीं कि ऐसी बातों का या कदमों का कोई दुष्परिणाम हो मगर जो भी होता है वो खुद को अच्छा नहीं लगता है. ऐसे में स्वाभाविक है कि यदि आपकी खुद की बातों का जो परिणाम रहा हो वो ही आपको पसंद न आ रहा हो तो दुःख होना स्वाभाविक है. अब पता नहीं ऐसा सबके साथ होता है या हमारे साथ ही ऐसा है?



कुछ बातों का असर कई-कई वर्षों बाद देखने को मिलता है. कुछ बातें तत्काल अपना परिणाम दिखा देती हैं. जिन बातों का असर तत्काल देखने को मिल जाता है, उनके चलते दुःख भी क्षणिक रहता है. इसके उलट ऐसी बातें जिनके परिणाम देर से मिलें उनके बारे में कष्ट भी बहुत लम्बे समय तक रहता है. इन्हीं में बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिनका छिपे रहना ही बेहतर होता है मगर कई बार भावनाओं में बह जाने के कारण बातें भी सामने आ जाती हैं. जिस समय भावनाओं का प्रकटीकरण किया जाता है, संभव है कि उस समय माहौल उनके अनुकूल हो मगर जैसे ही वातावरण उन बातों के विपरीत होता है वे बातें कष्ट देने लगती हैं.


ऐसी बातों पर पश्चाताप से भी कोई हल नहीं निकलता है. ऐसी बातों को कहने से संदर्भित क्षमा याचना भी उनके परिणाम से उत्पन्न कष्ट को कम नहीं करती. सोचने वाली बात है कि ऐसी बातों के लिए दोषी व्यक्ति पश्चाताप करना चाहता है मगर इसका कोई निदान नहीं. संभव है कि ये स्थिति अत्यंत कष्टकारी ही होती है. काश कि दिल-दिमाग-मन ऐसे यंत्र होते जिनको समय के साथ फॉर्मेट किया जा सकता. इनमें अच्छी-अच्छी यादों को संग्रहित कर लिया जाता और बुरी-बुरी बातों को, दुःख देने वाली घटनाओं को निकाल दिया जाता. काश ऐसा हो पाता.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं भी हमेशा सोचती हूँ कि अपने जिन बातों या कार्यों से ख़ुद को दुख होता है या रिग्रेट होता है, वह सब जीवन से डिलीट हो जाता। काश! ऐसा हो पाता।

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  2. कुछ बातों का असर कई-कई वर्षों बाद देखने को मिलता है. कुछ बातें तत्काल अपना परिणाम दिखा देती हैं. जिन बातों का असर तत्काल देखने को मिल जाता है, उनके चलते दुःख भी क्षणिक रहता है. इसके उलट ऐसी बातें जिनके परिणाम देर से मिलें उनके बारे में कष्ट भी बहुत लम्बे समय तक रहता है. इन्हीं में बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिनका छिपे रहना ही बेहतर होता है मगर कई बार भावनाओं में बह जाने के कारण बातें भी सामने आ जाती हैं. जिस समय भावनाओं का प्रकटीकरण किया जाता है, संभव है कि उस समय माहौल उनके अनुकूल हो मगर जैसे ही वातावरण उन बातों के विपरीत होता है वे बातें कष्ट देने लगती हैं.
    बहुत सही कहा ,नासमझी ,आवेश ,जिद्द में ऐसी बातें हो ही जाती है, बढ़िया है

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