किसी
व्यक्ति के साथ गुजारा समय जितना महत्त्वपूर्ण होता है, उससे महत्त्वपूर्ण होता है
उन पलों में उस व्यक्ति का व्यवहार. यही व्यवहार उस व्यक्ति की स्मृतियों को
चिर-स्थायी करता है. यही स्मृतियाँ उस व्यक्ति को सदैव दिल में जीवित बनाये रखती हैं.
श्वेता के साथ की कुछ ऐसी अल्प-स्मृतियाँ चिर-स्थायी बनकर दिल में सदैव के लिए बस
गईं हैं. ऐसा आज अकेले हमें अपने साथ ही नजर नहीं आया बल्कि कई लोगों की निगाहों
में, उनके स्वर में, उनकी भावनाओं में ऐसा परिलक्षित हुआ.
आज,
10 जून श्वेता की तीसरी पुण्यतिथि के अवसर पर ऐसे कई लोगों
से मिलना हुआ जो भावनात्मक रूप से खिंचे आ रहे थे. हर बार की तरह इस बार भी
रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था मगर सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए
अत्यंत सीमित रूप में. पहले विचार बना था कि महज दस लोगों के द्वारा रक्तदान
करवाकर श्वेता को श्रद्धा सुमन अर्पित किये जायेंगे लेकिन यह विचार बस विचार ही बन
गया. ऐसा इसलिए क्योंकि भावनात्मकता पर किसी तरह की औपचारिकता का पहरा नहीं होता
है, किसी तरह की बंदिश नहीं होती है. इसी के चलते कुछ लोगों में श्वेता की स्मृति
में रक्तदान करने की भावनात्मक जिद भी देखी गई.
इस
भावनात्मक जिद में अंततः मेडिकल टीम को अपनी हार मानने पर एक व्यक्ति ने विवश कर
दिया. 72 वर्षीय शिव सिंह सेंगर रक्तदान के लिए बार-बार आत्मीय
रूप से लगातार निवेदन करते रहे. हर बार मेडिकल टीम रक्तदान सम्बन्धी नियमावली का
सहारा लेकर उनके निवेदन को इंकार में बदल देती. एक तरफ भावनात्मकता थी और दूसरी
तरफ नियम मगर अंततः भावनाओं की, आत्मीयता की विजय हुई. आवश्यक स्वास्थ्य जाँचों को
करने के बाद शिव सिंह जी ने इस तरह चहकते हुए रक्तदान किया जैसे कोई अपने बच्चे का
जीवन सींच रहा हो. कहीं न कहीं यह सही भी था. शिव सिंह जी का ही नहीं वरन श्वेता
का रिश्ता जिससे भी बना अत्यंत अपनत्व भरा रहा. अपनी मधुर मुस्कान के द्वारा एक पल
में सभी को अपने परिवार में शामिल कर लेने वाली श्वेता की चाह भगवान को भी रही
होगी. तभी उस उम्र में जबकि लोग अपने भविष्य के सपने बुनते हैं, अपने बच्चों के
साथ खेलते-कूदते हैं, श्वेता हम सबको अपनी यादों के बीच छोड़ गई.
इसे
संयोग ही कहा जायेगा कि श्वेता से हमारी अंतिम मुलाकात रक्तदान करने के दौरान ही
हुई थी. किसी को आवश्यकता पड़ने पर उसे कॉल की गई होगी. चिकित्सक परिवार से सम्बन्ध
रखने के कारण उसे रक्त की महत्ता ज्ञात थी. तत्काल उसकी उपस्थिति रक्तदान के लिए
हुई. उस समय तक हम रक्तदान कर चुके थे. श्वेता के रक्तदान करने के बाद हमारी एक
मित्र ने हमसे उसकी तरफ इशारा करते हुए उससे परिचित होने की बात पूछी. हमने श्वेता
को चुप रहने का इशारा करते हुए उसे पहचानने से इंकार कर दिया. तब हमें बताया गया
कि ये मुस्कान हॉस्पिटल वाले डॉ० अंकुर शुक्ला की पत्नी है. हमने उस पर भी
अनभिज्ञता दिखाई तो हमारी मित्र चौंकी क्योंकि उस समय तक अंकुर और मुस्कान जनपद
में ही नहीं वरन आसपास के क्षेत्रों में भी विख्यात हो चुके थे. ऐसे में हमारे
जैसे दिन भर घूमने वाले, सामाजिक प्राणी को इनके बारे में न मालूम होना आश्चर्य
की, चौंकने की बात ही थी.
हमारी
मित्र की शक्ल-सूरत देख हम दोनों ठहाका मार कर हँस दिए. ऐसा इसलिए क्योंकि अंकुर
हमारे छोटे भाई के समान है और उस दिन के पहले भी कई बार हम लोगों की मुलाकात
पारिवारिक माहौल में हो चुकी थी. तब श्वेता ने ही उन मित्र का संशय दूर करते हुए
कहा, ये हमारे बड़े भाई हैं. तब अंदाजा भी नहीं था कि हँसने-खिलखिलाने वाली श्वेता
के साथ अगला कोई पल किसी भी रिश्ते के रूप में बिताने को नहीं मिलेगा.
आज से पहले
भी दो बार उसकी स्मृति में रक्तदान किया और हर बार यही लगता है जैसे वह सामने खड़ी
होकर उसी तरह खिलखिलाकर हँस रही है और कह रही है कि ये हमारे बड़े भाई हैं.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
यादेँ याद आती हैं बातें भूल जाती हैं।
जवाब देंहटाएंउपयोगी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंदिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि।
जानेवाले चले जाते है ,पर अपनो को न भूलने वाला दुख भी दे जाते है ,उनकी कमी सदैव खटकती है ,पर ये अटल सत्य है ,मार्मिक पोस्ट
जवाब देंहटाएंसादर नमन !!!💐
जवाब देंहटाएंकुछ स्मृतियाँ यूँ भी साथ चलती है। उनकी यादों को बहुत सुन्दर तरीक़े से लिखा आपने। हार्दिक श्रद्धॉंजलि।
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