08 अप्रैल 2020

मानवीय जगत के लिए लाभकारी लॉकडाउन

लॉकडाउन का समय चल रहा है और लोग फुर्सत का समय भी सिर्फ चीनी वायरस कोरोना की चर्चा में बिता दे रहे हैं. या कहें कि अपना अमूल्य समय इस फिजूल विषय पर बर्बाद कर रहे हैं. इस इक्कीस दिन के लॉकडाउन के चौदह दिन बीत गए यानि कि दो हफ्ते और इन दो हफ़्तों में इसका असर हमारे ऊपर क्या हुआ, इस पर शायद ही किसी ने विचार किया होगा. यदि लॉकडाउन मात्र इन्हीं इक्कीस दिनों का ही रहा तो उससे संक्रमण रोकने में हम कितने सफल होंगे ये बात अलग होगी मगर हम व्यक्तिगत रूप से कितने सफल हो चुके होंगे, इसका आकलन अभी किया ही नहीं गया होगा. इधर देश की, राज्यों की अर्थव्यवस्था का आकलन कर लिया गया होगा. निस्संदेह इसमें जबरदस्त तरीके से गिरावट के बिंदु देखने को मिलेंगे. आर्थिक स्थिति का संतुलन अपने आपमें आवश्यक है और उससे कहीं अधिक संतुलन बनाये रखने वाला विषय है प्रकृति, मानवीय स्वास्थ्य, संवेदनाएं.



इन चौदह दिनों में आपने गौर किया होगा कि हमारे आसपास की हवा बहुत सुखद महसूस होने लगी है. आपने अनुभव किया होगा कि आसपास का प्राकृतिक वातावरण कुछ अलग सा दिखने लगा है. आपके आसपास बहने वाली नदियों की रंगत में भी सुधार आता नजर आया होगा. इस प्राकृतिक स्वरूप में सकारात्मक परिवर्तन के अलावा आपको अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन नजर आया होगा. अभी के चौदह दिनों और इसके बाद के सात दिनों के लॉकडाउन से आपके शरीर को और आपके बच्चों के शरीर को किसी भी तरह से जंक फ़ूड की प्राप्ति नहीं हो सकी होगी. (यहाँ उन अपवादों की चर्चा नहीं जिनके घर में ऐसे सामान उपस्थित रहते हैं.) स्वयं देखिये, आप या आपका बच्चा बाजार नहीं जा रहा. ऐसे में मोमोज, पिज्जा, बर्गर आदि जैसी खाद्य वस्तुओं से सबकी दूरी बनी हुई है. इसने निश्चित ही आपके शरीर से नकारात्मक रसायनों को दूर ही रखा होगा.


इसके साथ-साथ एक और विशेष बात देखने में आ रही है वह यह कि सभी की जीवन-शैली अत्यल्प वस्तुओं के द्वारा पूरी की जा रही है. न मॉल की सैर की जा रही है, न फिल्मों का शौक पूरा किया जा रहा है, न ही अनावश्यक कारें दौड़ाई जा रही हैं. इससे जहाँ एक तरफ अपव्यय पर रोक लगी है वहीं दूसरी तरफ प्रदूषण पर भी अंकुश लगा है. इन सुखद अनुभूतियों के साथ-साथ सड़क दुर्घटनाओं में अचानक से गिरावट आई है. इसी तरह बीमारों की भीड़ भी अब चिकित्सालयों में नहीं दिखाई दे रही है. यहाँ विचार करना होगा कि भले ही सभी जगह के ओपीडी बंद करवा दिए हों मगर कहीं भी आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं को बंद नहीं किया गया है. इसके बाद भी किसी चिकित्सालय में आपातकालीन सेवाओं में भी भगदड़ नहीं मची है. इसका सीधा सा अर्थ है कि बीमार लोगों की संख्या में भी गिरावट आई है.

इसे क्या माना-समझा जाये? क्या इसे स्वीकार लिया जाये कि जीवन-शैली को भौतिकतावाद से दूर रखने में ही हम सभी का लाभ है? क्या ये माना जाये कि सादा जीवन हम सभी के लिए लाभप्रद है? क्या ये मान लिया जाये कि ऐसा कदम के द्वारा एक तरफ हम प्रकृति को स्वच्छ करेंगे साथ ही खुद को भी स्वस्थ रखेंगे? कुछ भी हो मगर सत्य यह है कि जीवन को कम से कम संसाधनों में गुजारना कतई मुश्किल नहीं बस उसके लिए भौतिकतावादी संस्कृति से, दिखावे से, आडम्बर से, कथित आधुनिकता से दूर रहने की आवश्यकता है.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक लेख , जीवन कितने वर्ष पीछे यानी कि आधुनिकता की दौड़ की पीछे चली आई है ।

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  2. सार्थक एवं विचारणीय पोस्ट।

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