पूरे हर्ष-उल्लास
के साथ जिस वर्ष का स्वागत किया गया था, वो वर्ष हम सबसे विदा ले चुका है. अनेक खट्टी-मीठी घटनाओं, हँसाती-रुलाती यादों के साथ वह वर्ष भी इतिहास बन गया है. नया वर्ष
अनेकानेक संभावनाएँ, आशाएँ, योजनाएँ आदि लेकर पूरे हर्षोल्लास से हम सबके जीवन में
प्रवेश कर चुका है. पुराने को अलविदा और नए के स्वागत के बीच की बारीक रेखा पर
बहुतायत लोगों द्वारा गए वर्ष में अपने उपलब्धियों,
नाकामियों का स्मरण किया जायेगा, उनका आलोचनात्मक मूल्यांकन
किया जायेगा. इसी तरह से नव वर्ष के लिए बहुत सारे संकल्प,
नवीन कार्य मन-मष्तिष्क में बन-बिगड़ रहे होंगे.
नव-वर्ष के लिए
संकल्पों का निर्धारण करना व्यक्ति के मनोभावों का एक हिस्सा रहा है. उसके द्वारा
अपने व्यवहार, अपनी
कार्य-क्षमता, अपनी जीवन-शैली, अपनी
आदत आदि को लेकर किसी न किसी नए संकल्प का निर्माण करके उसी के सादृश्य कार्य करते
रहने का वादा खुद से किया जाता है. इस बार भी बहुत सारे संकल्प किये गए होंगे, बहुत से कार्यों को संपन्न किये जाने का आश्वासन खुद से किया गया होगा.
आइये, इस बार हम सभी लोग मिलकर परिवार को बचाने का, परिवार के पुनर्निर्माण का, परिवार के सशक्तिकरण का
संकल्प लें. संभव है कि इस संकल्प प्रस्ताव को उतनी गंभीरता से विचारार्थ न लिया
जाये, जितनी गंभीरता की आवश्यकता आज परिवार बचाने को लेकर
होनी चाहिए. पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों,
जल-वायु आदि को बचाने की मुहिम चलाते-चलाते समाज बेटियों को बचाने की स्थिति में आ
गया है. एक पल को विचार करिए कि क्या कभी सोचा गया था कि ‘बेटी बचाओ’ जैसा नारा
समाज में देना पड़ेगा? इसी के साथ सोचिए कि वर्तमान स्थितियाँ
ऐसी नहीं बन चुकी हैं कि कल को ‘परिवार बचाओ’ जैसी मुहिम भी
चलानी पड़ेगी?
वर्तमान परिदृश्य
में रोजमर्रा में बेटियों के यौन-शोषण की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. अनेकानेक
घटनाओं में परिवार के सदस्य ही संलिप्त पाए जा रहे हैं. बचपन एकाकी, गुमसुम होने के साथ-साथ शारीरिक रूप
से, मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा है. खेलने-कूदने की उम्र में उसका भी
हताश-निराश होना दिख रहा है. नंबर-गेम के चलते उसके मन-मष्तिष्क पर एक तरह का दबाव
बना ही रहता है. इसके चलते एकाधिक घटनाओं में बच्चों के द्वारा भी गलत कदम उठा लिए
जाने का कृत्य सुनाई पड़ता है. चिंता ये दिखाई पड़ती है कि आज के बच्चे हिंसात्मक
प्रवृत्ति के होते जा रहे हैं. खेलकूद के दौरान, स्कूल
में आपसी प्रतिद्वंद्विता के समय, किसी भी बात पर
एक-दूसरे से झगड़ जाना बचपन की आम प्रवृत्ति है. ऐसा न केवल दोस्तों में वरन सगे
भाई-बहिनों के बीच भी देखने को मिलता है. अब स्थिति इस स्वाभाविक, बाल-सुलभ झगड़े से कहीं आगे पहुँच चुकी है. अब बालमन हत्यारी हिंसात्मक
प्रवृत्ति का होता जा रहा है.
युवाओं का हाल भी
सशक्त अथवा सहज नहीं कहा जा सकता है. जरा-जरा सी बात पर अवसाद में घिर जाना उनके
लिए आम बात होती जा रही है. नशे की गिरफ्त में चले जाना, आपराधिक कृत्यों की तरफ मुड़ जाना, आत्महत्या कर लेना आदि ऐसे युवाओं का अंतिम लक्ष्य होता जा रहा है. दरअसल
समाज ने आधुनिक बनने की कोशिश में पहनावा, रहन-सहन, शालीनता, संस्कृति, भाषा, रिश्तों, मर्यादा आदि तक को दरकिनार करने से
परहेज नहीं किया है. आधुनिक संस्कारों में घुलमिल जाने की चकाचौंध में हमारे
परिवारों की दिव्यता कहीं गायब ही हो गई है. युवाओं की जोशपूर्ण मस्ती के बीच
परिवार के बुजुर्गों का व्यक्तित्व सिमटने सा लगा है. पश्चिमी सभ्यता, संस्कारों को अपनाने की कोशिशों में हमें अपने मूल को नहीं भूलना चाहिए.
बुजुर्गों की अहमियत को विस्मृत नहीं करना चाहिए. हम बुजुर्गों के प्रति अनभिज्ञता
जैसा भाव अपनाने लगे हैं, इससे भी पारिवारिकता पर संकट दिखाई देने लगा है.
ऐसी स्थितियों में
परिवार के सभी सदस्यों को एकाकी परिवार के स्थान पर संयुक्त रूप में रहने पर विचार
करना होगा. वर्तमान समय में जबकि आर्थिक स्थितियाँ इन्सान को बुरी तरह से अकेलेपन
की तरफ धकेलने में लगी हैं तब न सही संयुक्त परिवार की तरह किन्तु हफ्ते-दस दिन
में बुजुर्गों, बच्चों
के साथ दोस्ताना माहौल में रहने का प्रयास किया जा सकता है. घर के छोटे-छोटे कामों
में उनको शामिल किया जाना चाहिए जिससे उनके अन्दर सामूहिकता की भावना जगे, उनमे कार्य करने के प्रति रुचि बढ़े. नए वर्ष में कोई भी संकल्प लें मगर
साथ में परिवार को एकजुट रखने का, परिवार को बनाये रखने का, बचाए रखने का भी संकल्प लेना होगा. इससे पहले कि हमारे परिवार के बीच में
अकेलेपन का भयावह साया किसी सदस्य को अपनी गिरफ्त में ले, किसी बच्चे को अवसाद की तरफ ले जाये, किसी युवा
को अपराध की तरफ धकेले, हम सबको एकजुटता की आवश्यकता
है. हम सभी को सहयोग की, अपनत्व की महफ़िल सजाकर अपने
लोगों को अपने लोगों के बीच उपस्थित करना होगा. एक-दूसरे
से करते हैं प्यार हम, एक-दूसरे के लिए बेक़रार हम या फिर साथी हाथ बढ़ाना, एक
अकेला थक जायेगा... आदि गीतों की पंक्तियाँ स्मृति में
बसाकर सबको एकसाथ गाना-गुनगुनाना होगा.
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