07 अप्रैल 2020

बुजुर्गों का अकेलापन दूर करना हमारी जिम्मेवारी

जितना हमने अनुभव किया है, इस संसार में किसी भी व्यक्ति के लिए अकेलापन सबसे बड़ा दुश्मन है और उसके बाद शायद पूर्वाग्रह का नंबर आता हो. पहले पूर्वाग्रह के बारे में थोड़ा सा स्पष्ट कर दें क्योंकि इस पर विस्तार से बाद में लिखा जायेगा. पूर्वाग्रह इस कारण दुश्मन है क्योंकि इसके बाद व्यक्ति सही, गलत का आकलन नहीं कर पाता है. उसके लिए वही बिंदु सही होता है जो वह मान बैठता है. इसके लिए भले ही वह कितनी भी हानि क्यों न उठाये. वर्तमान सन्दर्भों में इसे यदि चीनी कोरोना वायरस से जोड़कर देखें तो समझने में और आसानी होगी. तब्लीगी जमात के द्वारा तथा मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों द्वारा कोरोना को कुरान से निकला बताया जा रहा है. उनके द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि मस्जिद में एकसाथ बैठने से कोरोना नहीं होता है. इसी पूर्वाग्रह के चलते बहुतायत जगहों पर जुम्मे कि नमाज पर भी प्रशासन की सख्ती के बाद भी रोक नहीं लग सकी है. इसी पूर्वाग्रह ने डॉक्टर्स पर, स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले करवाए हैं, आइसोलेशन वार्ड में कार्यरत लोगों के साथ अभद्रता करवाई है. पूर्वाग्रह महज इतना कि मोदी मुस्लिम विरोधी है, भाजपा मुस्लिम विरोधी है. एक पल को इसे सच मान लिया जाये तो इस देश का क्या कसूर, देशवासियों का क्या कसूर मगर नहीं पूर्वाग्रह से ग्रसित लोगों द्वारा ऐसा विचार बना लिया तो उसे सही करना ही है.


अकेलापन किसी उम्र विशेष के लिए दुश्मन नहीं है वरन हर उम्र के लिए दुश्मन है. बहुत लम्बे समय से सामाजिक क्षेत्र में काम करने के कारण ऐसे अनेक लोगों से परिचय होता रहा है जो किसी न किसी रूप में अकेले हैं या खुद को अकेला महसूस करते हैं. इसमें उम्रदराज लोग भी शामिल रहे तो युवा भी, बच्चे भी. आखिर ये अकेलापन है क्या? क्या किसी का साथ न मिला अकेलापन है? क्या आपके साथ किसी मित्र का न होना अकेलापन है? क्या किसी व्यक्ति को दूसरे किसी व्यक्ति का साथ न मिलना अकेलापन है? क्या किसी के साथ उसके परिजन का न होना अकेलापन है? अकेलापन वास्तव में मानसिक स्थिति है जो व्यक्ति की अपनी स्थिति के कारण उपजती है. ऐसा अनेक लोगों से मिलने के कारण कह सकते हैं. ये और बात है कि उम्र के अनुसार इस अकेलेपन के कारक बदल जाते हैं. बुजुर्ग लोगों के अकेलेपन के कारक अलग होते हैं और युवाओं के अकेलेपन के कारक एकदम अलग.

यहाँ किसी उम्र विशेष के लोगों के कारकों पर चर्चा करना, उनके बारे में विमर्श करना और उनका समाधान खोजना न तो आसान है और न ही व्यावहारिक. यहाँ इस बात की चर्चा करने का विचार महज इस कारण उपजा क्योंकि आज एक ऐसे व्यक्ति से मुलाक़ात हुई जो 92 वर्ष की अवस्था में भी खुद को सक्रिय बनाये हुए हैं. पारिवारिक पृष्ठभूमि भी ऐसी नहीं जहाँ कि साधन सहजता से उपलब्ध हुए हों मगर उनकी जिजीविषा ने और आगे बढ़ने की मानसिकता ने उनके लगातार सक्रिय बनाये रखा. आज उन्होंने अपने जीवन के अनेक संस्मरण सुनाये. जातिगत विभेद के, आर्थिक विभेद के, सामाजिक विभेद के, लोगों के सहयोग के, लोगों के असहयोग के, अपने परिजनों के साथ के, उनके अलगाव के और सबके बीच परिणाम वही निकला जो ऐसे सभी मामलों में निकलता रहा है.

अब बुजुर्गों के साथ बातचीत करने वाले युवा नहीं हैं, बच्चे नहीं हैं. हमने या हमारी उम्र के लोगों ने अपने जीवन का बहुत बड़ा समय अपने बाबा-दादी, नाना-नानी के साथ बिताया है. उनके जीवन का यह भाग हँसते-गाते कब बीत जाता था, किसी को पता ही नहीं चलता था. आज आलम ये है कि परिवार के बुजुर्ग कहीं दूर अकेले पड़े हुए हैं और उनके परिजन अपनी ही दुनिया में मगन हैं. ऐसी स्थितियों के कारण जहाँ बुजुर्गों को अकेलापन महसूस हो रहा है वहीं बच्चों को, युवाओं को इन बुजुर्गों से सीख नहीं मिल रही है. हमारे परिवार के ये बुजुर्ग अपने आपमें एक पाठशाला, एक विश्वविद्यालय हुआ करते हैं. इनसे न केवल सैद्धांतिक ज्ञान मिलता है वरन व्यावहारिक ज्ञान भी मिलता है. आज जबकि हम सभी भौतिकतावादी समाज में रहने के आदी होते जा रहे हैं, हम सभी को अपने बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. हमारा एक पल यदि उनको असाधारण ख़ुशी देता है तो हमें इसके लिए अपने कई-कई पलों को न्योछावर कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि हमें याद रखना होगा कि हमारे भविष्य की इमारत इन्हीं के अतीत की नींव पर निर्मित है.

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