05 अप्रैल 2020

ये सामूहिकता हमारे जीवंत होने का प्रमाण है

चीनी कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध सा छेड़े हुए हमारे तमाम लोगों के सम्मान हेतु 22 मार्च रविवार को मोदी जी ने शाम पाँच बजे ताली-थाली बजाने का आह्वान किया और देशभर से सभी लोग इसमें तन्मयता से लग गए. संभवतः वो जनता कर्फ्यू का दिन नागरिकों की मानसिक परीक्षा का भी दिन रहा होगा. उस परीक्षा में सफल होने के बाद ही मोदी जी इसका भरोसा कर सके होंगे कि देशव्यापी लॉकडाउन का समर्थन देश की जनता अवश्य करेगी. ऐसा हुआ भी. देश भर में लॉकडाउन लागू होने के बाद जनता द्वारा पूरी ईमानदारी से इसका समर्थन किया गया. 21 दिन का लॉकडाउन समय किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए काफी होता है. इसको प्राथमिक न बनाते हुए मोदी जी ने देश की जनता की सुरक्षा को प्राथमिकता दी. उनकी इस प्राथमिकता और व्यवस्था का परिणाम है कि भारत जैसे देश में जहाँ संसाधनों का अभाव माना जाता है, चिकित्सा सुविधाओं को औसत समझा जाता है वहाँ कोरोना पर लगभग नियंत्रण कर लिया गया. (इसी दौरान जाहिल तब्लीगी जमात के लोगों ने आँकड़ों को बिगाड़ना शुरू किया)


लॉकडाउन के लम्बे समय में इन जाहिल जमातियों के पकड़े जाने के बाद इनका नंगनाच शुरू हुआ. डॉक्टर्स, नर्सेज के साथ इनके द्वारा बदतमीजी की जाने लगी. जगह-जगह से इनके पकड़े जाने पर इनके समर्थक उत्पात मचाने लगे. ऐसे में एक तरफ सरकार अपने स्तर पर सभी तरह के कदम उठा रही थी, दूसरी तरफ उसे नागरिकों के मनोबल को भी बनाये रखना था. ऐसे विषम समय में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपील की पाँच अप्रैल की रात नौ बजे मात्र नौ मिनट के लिए अपने-अपने घरों में रहकर दीप प्रज्ज्वलन की. बहुत से ज्योतिषियों ने, ज्ञानियों ने, नक्षत्रविज्ञानियों ने इसके भी अपने सन्दर्भ निकाले मगर हमारी दृष्टि में ये एक तरह की एकजुटता का सन्देश देना था. ये महज दिए जलाने का कदम अकेले नहीं था बल्कि सभी को एकजुट करने का कदम भी था. इस लॉकडाउन में लम्बे समय से काम कर रहे लोगों, जिनके घर में कोरोना से मौत हुई उनको, घरों में बंद लोगों, मजबूर-बेबस लोगों आदि को एक तरह का संबल प्रदान करने के लिए ऐसा कदम उठाया गया.


बहुत से लोगों द्वारा, खासतौर से उनके द्वारा जो मोदी विरोधी हैं, इसका विरोध किया गया. संभव है कि इसके पीछे भी वे कुछ विशेष परिणाम देखना चाहते हों. ऐसे लोगों के लिए और ऐसे लोगों का समर्थन कर रहे लोगों के लिए बस इतना कहना है कि जिस तरह बहुत श्रमसाध्य काम को करने के लिए अनेक मजदूर जुटते हैं तो उनमें से एक आवाज़ लगाता है, जोर लगा के... उसके प्रत्युत्तर में अनेक आवाजें उठती हैं, हईसा. इस आवाज़ में कोई क्रेन नहीं होती है, कोई अतिरिक्त बल नहीं होता है बस एक विश्वास होता है सामूहिकता का. मोदी जी को यही विश्वास और सामूहिकता को आपस में दिखाना था. उनके द्वारा आवाज़ लगाई गई, जोर लगा के.... हम सबने आज रात नौ बजे कहा, हईसा.


हमने सपरिवार, हमने ही नहीं हमारे पूरे मोहल्ले ने सपरिवार इस अपील का अनुपालन किया. इसके साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन किया. हमारी बेटी तो उसी दिन से पूरी तैयारी किये थी. दिए भी सज गए थे. कैसे जलाना है ये भी तय हो गया था. सो सबकुछ उसी हिसाब से पूरा करते हुए रात को ठीक नौ बजे दीपक प्रज्ज्वलित किये गए. स्वास्तिक आकार में दीपों को सजाने के बाद उनको प्रज्ज्वलित किये गया. हम सबकी यही सामूहिकता, यही एकजुटता हमें हमेशा विजेता बनाती है. इस बार भी हम सब विजयी होंगे, विजेता कहलायेंगे.


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#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

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