17 मार्च 2020

अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता

राजनीति करना, राजनीति में बिना किसी पद के बने रहना, राजनीति में चुनाव लड़ना, चुनाव लड़ने में उसका प्रबंधन करना आदि बहुत अलग-अलग प्रकृति की चीजें हैं. आज सांसद, विधायक निधि देख कर और किसी पद की आशा में राजनीति की तरफ भागे आ रहे लोगों को मालूम ही नहीं कि राजनीति महज सफ़ेद कुरता-पजामा पहनना नहीं, महज मंहगी कारों में घूमने का नाम नहीं, असलहे बनवा देने का नाम राजनीति नहीं, बालू अथवा किसी अन्य उत्पाद के ठेके ले लेना ही राजनीति नहीं वरन राजनीति इससे कहीं अलग प्रस्थिति है. आज ऐसा इत्तेफाक रहा कि दिन भर में कई मित्रों से मुलाकात हुई जो राजनैतिक रूप से अलग-अलग दलों से, अलग-अलग विचारधाराओं से सम्बंधित हैं और सभी से इधर-उधर की,कोरोना की बातचीत होने के बाद बात राजनीति पर आकर टिक गई. राजनीति पर आकर टिकना इसलिए भी रहा क्योंकि आज जिस वायरस कोरोना से समूचा विश्व आतंकित दिख रहा है, उससे निपटने के सर्वाधिक कारगर उपाय भारत सरकार द्वारा किये जा रहे हैं. यहाँ का आम नागरिक भले ही कोरोना पर चुटकुले बना रहा हो, भले ही मीम बना रहा हो, भले ही इसे बहुत हलके में ले रहा हो मगर सत्यता यही है कि भारत सरकार ने अपने स्तर पर कोई कमी नहीं रख छोड़ी है.

राजनीति की चर्चा आने पर स्वाभाविक है कि अन्य दलों की भी चर्चाएँ होनी हैं. राजनीति के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रशासन की स्थिति की, उसके कदमों की भी चर्चा होनी है. यह चर्चा इसलिए भी होनी थी क्योंकि एक दिन पहले ही बाँदा में सत्ताधारी दल के जिलाध्यक्ष के पुत्र के साथ और बाद में कार्यकर्ताओं के साथ पुलिसिया मारपीट की घटना हुई. आज जबकि समाचार-पत्रों में इस खबर को पढ़ा जा रहा था, ठीक उसी समय एक अन्य खबर को पढ़ा जा रहा था जबकि एक नेता द्वारा अपने ही दल के मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर पर बन्दूक से फायरिंग करवाई गई. उस फायरिंग के बाद भी न केवल चौबीस घंटे में उसके ऊपर से यह केस हटा बल्कि इसके बाद वह विधान परिषद् सदस्य भी बना. सोचिये इन दोनों घटनाओं के बारे में. ये क्या सन्देश देना चाहती हैं? एक तरफ सत्ता पक्ष स्पष्ट सन्देश देना चाहता है कि कानून की निगाह में सभी एक हैं मगर इससे वह अपने ही कार्यकर्ताओं में निराशा, गुस्सा की भावना भर रही है. दूसरी तरफ वह दल है जो अपने कार्यकर्ताओं को किसी भी कानून से ऊपर रखता है, भले ही जनता में नकारात्मक सन्देश चला जाये.

इस तरह की सकारात्मकता और नकारात्मकता के बीच किसी भी दल को जनता के बीच जाना होता है. जनता के बीच जाने के समय में भले ही बहुत अंतर रहता हो मगर इस दौरान जनप्रतिनिधियों के, राजनैतिक दलों के प्रशासन के साथ संबंधों का पूरा हवाला जनता के पास पहुँचता रहता है. जनता बखूबी देख रही होती है कि प्रशासन किस जनप्रतिनिधि को महत्त्व दे रहा है, किसे नहीं. आज आलम ये है कि जिलाध्यक्ष तो अलग बात हहो गई, प्रशासन द्वारा क्षेत्र के सांसदों, विधायकों को भी महत्त्व नहीं दिया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि लगभग सभी के द्वारा अपनी-अपनी पत्ती सेट कर ली गई है, अपना-अपना कमीशन तय कर लिया गया है. संभव है कि इसे लेकर बहुत से दलों के नेताओं में तमाम तरह की बातें की जाने लगें मगर सत्यता यही है. आज आलम यह है कि एक जनप्रतिनिधि अपने ही दल के काम नहीं करवा पा रहा है. बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं, इसी उत्तर प्रदेश में वर्तमान सरकार के विधायकों ने सदन के अन्दर धरना प्रदर्शन किया था. इसका कारण था अधिकारियों द्वारा उनकी बात न मानना. इसी तरह एक घटना मध्य प्रदेश में हुई थी जहाँ कि एक जनप्रतिनिधि ने उठकर अधिकारी के पैर छू लिए थे. इसके पीछे भी कारण उनके आदेशों की अवहेलना करना था. सोचकर देखिये, क्या स्थिति है आज की राजनीति की जहाँ सौ से अधिक विधायक सदन के अन्दर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना देते हैं. एक सशक्त जनप्रतिनिधि भरी मीटिंग में अधिकारी के पैर छूने लग जाता है. 


असल में जिस तरह से राजनीति में सिद्धांतों की, मर्यादाओं की, संस्कारों की अवहेलना हुई है उससे इसमें गिरावट देखने को मिली है. भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी इस क्षेत्र में भी प्रवेश कर गई है. निधियों के वितरण में पहले से ही अपना-अपना कमीशन निर्धारित करने से प्रशासन के बीच भी जनप्रतिनिधियों की स्वच्छ छवि नहीं बन सकी है. ऐसे में ठगना सिर्फ जनता को पड़ता है. ऊपर के लोग अपना-अपना हिसाब करके किनारे निकल जाते हैं और रास्ता अवरुद्ध होता है आमजन का. इसी कारण से आज स्थिति यह है कि सोशल मीडिया पर अपनी जान तक देने का दम भरने वाले लोग कोरोना के भयावह होने की स्थिति में मास्क, सेनेटाइजर आदि की कालाबाजारी करने में लगे हुए हैं. दस-दस, बीस-बीस रुपये के मास्क को सौ से लेकर पांच सौ रुपये तक में बेचा जा रहा है. ऐसे लोगों से किस राष्ट्रभक्ति की अपेक्षा की जाए. आखिर वे व्यापारी हैं, उनका काम तो लाभ लेना ही है. वे भी अपने जनप्रतिनिधियों से सीख रहे हैं, जो विशुद्ध जनकल्याण के कार्यों में कमीशनबाजी करने से नहीं चूक रहे हैं. आखिर सन्देश तो यही जाएगा कि अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता. 

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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