16 मार्च 2020

बिन आपके घर कैसे सँभला, ये आप ही जानें

ज़िन्दगी भर इस बात की टीस रहेगी कि कभी आपसे खुलकर बात भी न कर सके. पिता, पुत्र के बीच का जैसा सम्बन्ध आज देखने को मिलता है, उस समय सोचा भी नहीं जा सकता था. कई-कई महीने तो ऐसे निकल जाया करते थे जबकि हमारे और आपके बीच किसी तरह की कोई बातचीत नहीं होती थी. जबसे होश संभाला तबसे ऐसी कोई जरूरत समझ ही नहीं आई जो हमें पूरी करने के लिए कहना पड़ा हो. परिवार में जिस तरह का लालन-पालन, भरण-पोषण हो रहा था उसमें किसी तरह की भौतिकतावादी चीज की अपेक्षा कभी रखी भी नहीं गई. जीवन के लिए जो आवश्यक हुआ करता था वह सब अपने आप, बिना माँगे ही मिल जाया करता था. इसलिए कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि आपसे कुछ माँगने के लिए ही आपसे बातचीत का माध्यम बनाया गया हो. यदा-कदा कुछ आवश्यकता भी हुई तो उसके लिए अम्मा एक माध्यम बनती थीं. 


एक समय के बाद हमारी अपनी घुमक्कड़ी की आदत, सामाजिक कार्यों में बिना किसी सोच-विचार के लगे रहने की आदत पर आपने अम्मा से क्या कहा होगा, इसका पता नहीं मगर आपने हमसे कभी कुछ नहीं कहा. हाँ, कभी-कभी देर रात, और वह भी ज्यादा देर नहीं महज नौ या साढ़े नौ बजने पर आपने बस इतना कहा कि कितना बज रहा है, हम समझ जाते थे कि आपका कहने का क्या मंतव्य है. आपके कुछ भी न कहने के बाद भी कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर सामने आई आर्थिक समस्या को आपने ही दूर किया. उन दिनों हम भी अपने सपनों की दुनिया में खोये हुए थे. स्नातक की और परास्नातक की शिक्षा के दौरान जो सपने देखे थे, वे सब बस अगले ही कदम में सच होते दिखते थे. उन्हीं सपनों के बीच सपना देखा करते थे आपके लिए कुछ करने का. बहरहाल, आपके सामने हम इस स्थिति में आ ही नहीं सके कि आपके लिए कुछ कर सकें. आपके लिए क्या, उस समय तक हम अपने लिए ही कुछ न कर सके. इसके लिए आप लोगों द्वारा एक जिम्मेवारी से बाँध देने के कारण भी कुछ न कुछ करने की भावना का निर्माण हो रहा था. उस भावना का विकास हो पाता, कुछ उसका स्थायी समाधान निकल पाता कि आप उस सुबह आशीर्वाद देकर और अब तुम घर सँभालना का अंतिम वाक्य कह कर चल दिए. उस समय कतई यह भान न था कि उसके बाद आपसे फोन पर आपकी तबियत के बारे में बात होगी. यह भी नहीं सोचा था कि अब आपको दोबारा आशीर्वाद देने के लिए अपने सामने साक्षात् नहीं पायेंगे.

आज आपके बिना पंद्रह वर्ष की जीवन-यात्रा पूरी हो गई है, आपका आशीर्वाद साथ है मगर लगता है जैसे घर सँभाल नहीं पाए. आपके जाने के अगले महीने ही परिवार पर, घर पर हम एक संकट बनके आये. उसके बाद लगातार अच्छे दिन भी आते रहे और संकट भी आते रहे. घर को सँभालने की कोशिश में बराबर लगे रहे. कोशिश यही रही कि कुछ बिगड़े नहीं. कोशिश यही रही कि कुछ टूटे नहीं, कुछ बिखरे नहीं. तमाम प्रयासों के बाद भी ऐसा कुछ होता रहा जहाँ कुछ न कुछ बिखरता रहा, कुछ न कुछ टूटता रहा, कुछ न कुछ बिगड़ता रहा. इन टूटती, बिखरती, बिगड़ती किरिचों के बीच लगातार, बराबर कोशिश यही है कि इनकी जो भी खरोंच लगे वह हमें लगे. आपने घर के एक रहने का, एकसूत्र में बंधे रहने का, संभले रहने का जो भी सपना देखा था, वह किसी न किसी तरह हम पूरा करते रहें. उस दिन की अपनी दुर्घटना के बाद भी आज आपके सपने को पूरा करने में अपने आपको लगे रहना देखते हैं तो एहसास होता है कि आप साथ हैं, आपका आशीर्वाद साथ है. आपका आज भी पन्द्रह सालों के बाद भी लगातार, नियमित रूप से हर दूसरे-तीसरे दिन हमारे सपने में आना, मार्गदर्शन देना यही साबित करता है.

इन पन्द्रह वर्षों में घर को, परिवार को सँभालने में जो चूक हुई हो उसके लिए क्षमा करियेगा. कोशिश यही है कि सबकुछ सँभला रहे, सबकुछ बना रहे. हाँ, एक कसक, एक तीस आपसे बातचीत न कर पाने की जो रह गई थी, वो अब सपने में दूर हो रही है. आपका आना, आपके साथ बातचीत करना, लगता ही नहीं कि आप हमसे कहीं दूर हैं. सनातन संस्कृति की मोक्ष और भटकने का दर्शन क्या कहता है, उसका क्या सत्य है इसकी जानकारी नहीं मगर आपके साथ होने का एहसास हमें सुखद लगता है, आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.


सादर श्रद्धांजलि के साथ आपको सादर नमन. आपका आशीर्वाद सदा हमारे साथ रहे, घर-परिवार को एकजुट बनाये रहे, सँभाले रहे, यही कामना है. 

(पिताजी की पुण्यतिथि 16 मार्च पर विशेष)
(16.03.2005 - 16.03.2020)
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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