बहुत से दिन, तिथियाँ भुलाए
नहीं भूलतीं, ये और बात होती है कि हम सभी अपनी-अपनी व्यस्तता में उन्हें याद न कर
पायें. ऐसी तारीखें स्मृति-पटल पर अंकित रहती हैं और वक्त-बेवक्त सामने आ खड़ी होती
हैं. हरेक व्यक्ति के जीवन में ऐसी बहुत सी तारीखें होंगी, बहुत सी स्मृतियाँ
होंगी जिनको वह चाह कर भी भुला न पाया होगा. ऐसी की अनेक तारीखों में एक तारीख आज
की, हमारे जीवन में भी है. न सिर्फ आज की वरन गुजरे कल की तारीख भी आज की तारीख से
जुड़ी हुई है. कल यानि कि 23
फरवरी और आज यानि कि 24 फरवरी, ऐसी तारीखें
हैं जिसमें परिवार के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को हम सबने खो दिया था. अपनी अइया को
एक दिन पहले हमने अपनी आँखों के सामने अंतिम साँस लेते देखा था और आज अपनी आँखों
के सामने ही उनको पंचतत्त्व में विलीन होते देखा था.
ये भी तारीखों का अपना
मनोविज्ञान होता होगा. कल से ही मन कुछ उदास है. आज भी कुछ लिखने-पढ़ने का मन नहीं
हुआ. पहले सोचा कि अपनी अइया के बारे में कुछ लिखें फिर इसका भी मन न हुआ. असल में
व्यक्तिगत हमारे लिए अइया एक इन्स्टीट्यूट जैसी रहीं. उनकी शिक्षा-दीक्षा
डिग्रियों के सापेक्ष बहुत नहीं रही हो मगर उनके व्यावहारिक अनुभव बहुत ही गंभीर
और सीख देने वाले थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. (इस बारे में फिर कभी)
बस, आज मन न किया तो इधर-उधर
का पिटारा खोलकर बैठ गए. कई बार कुछ भी लिखने-पढ़ने का मन नहीं होता. उस समय हम अपने चित्रों को खोलकर बैठ जाते हैं. बहुत सुकून मिलता है. ऐसे ही सुकून के क्षणों में ये चित्र सामने आये. आप भी देखिये.
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