जैसा कि मन में अंदेशा था और
वैसा ही हुआ. अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप की भारत यात्रा को लेकर मोदी विरोधियों को
विचलित किये जा रही थी. मोदी विरोधियों के लिए ऐसा कोई भी काम असहनीय हो जा रहा है
जो मोदी की लोकप्रियता में किसी भी तरह की वृद्धि करते हैं. अमेरिका में संपन्न
हुए हाउडी मोदी की जबरदस्त लोकप्रियता के बाद भारत में अमेरिकी राष्ट्रपति के
सम्मान में संपन्न होने वाले नमस्ते ट्रंप से मोदी विरोधी बौखलाए थे. वे भली-भांति
जानते थे कि यह कार्यक्रम और ट्रंप की यात्रा अद्भुत रूप से सफल होगी. इस
कार्यक्रम में विरोधी प्रत्यक्ष रूप से कोई व्यवधान डालने की स्थिति में ही नहीं
थे, ऐसे में उनके द्वारा अप्रत्यक्ष कदम उठाने की शंका मन में थी. अमेरिकी
राष्ट्रपति के आने और दिल्ली में उत्पात मचने के अपने ही सह-सम्बन्ध हैं.
दिल्ली में दो महीने से अधिक
समय से चल रहे शाहीन बाद प्रदर्शन से केन्द्र सरकार पर किसी तरह का कोई असर नहीं
हो रहा था. यद्यपि इस अवरोध से आम नागरिक अवश्य परेशान था तथापि उनके द्वारा भी
कोई आक्रोश कहीं व्यक्त नहीं किया गया. इधर अमेरिकी राष्ट्रपति के आने का
कार्यक्रम बना उधर CAA
का और काल्पनिक NRC का विरोध कर रहे लोगों को
जैसे मौका मिल गया. मोदी विरोधियों के लिए, CAA विरोधियों के
लिए देश का कोई मतलब नहीं. वे अपने किसी भी कदम से ट्रंप तक, वैश्विक मीडिया तक
सन्देश पहुँचाना चाह रहे थे कि देश में केन्द्र सरकार नाकाम है. देश की राजधानी
में आग लगी हुई है. इस मकसद में वे कितने कामयाब हुए, कितने नहीं यह तो समय बताएगा
किन्तु राजधानी में जबरदस्त हिंसा मचाने में वे अवश्य ही सफल रहे.
खुलेआम हिंसा, आगजनी, उत्पात
में कई लोगों की जान गई, सैकड़ों वाहनों में आग लगा दी गई, करोड़ों रुपये की संपत्ति
का नुकसान हुआ. विरोध का विस्तार शाहीन बाग़ से बाहर और भी कई जगहों पर हुआ. सड़कों
पर अवरोधक का भी विस्तार हुआ. यह किसी भी स्थिति में देश के लिए सुखद नहीं है. मोदी
विरोध के नाम पर विरोध अब देश का होने लगा है. इससे भी बुरी बात यह है कि कथित
मीडिया और कथित बुद्धिजीवी इसमें भी उत्पातियों का पक्ष लेते नजर आ रहे हैं. पुलिस
के सामने खुलेआम रिवाल्वर के फायरिंग करने वाले को मासूम बताया जा रहा है. जगह-जगह
घरों में घुसकर हिंसा फैलाने वालों को नजरंदाज किया जा रहा है. इन सब पर चर्चा
करने के बजाय ट्रंप यात्रा के खर्चे को निशाना बनाया जा रहा है. समझने वाली बात यह
है कि आखिर CAA पर इन विपक्षी दलों का इतना विरोध क्यों? विरोध के नाम पर खुलेआम इस्लामिक
आतंकवाद को समर्थन क्यों? ये स्थितियाँ न तो वर्तमान के लिए सुखद हैं और न ही
भविष्य के लिए. इस पोस्ट के लिखे जाने के समय तक उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगाइयों
को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए हैं. आखिर इस समय तक ट्रंप भी देश से
अपनी रवानगी कर चुके हैं. अब देखना है स्थिति कैसे नियंत्रण में आती है?
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