13 फ़रवरी 2020

लिखना चाहते हैं तो पढ़िए भी

कुछ लिखना और न लिखने के बीच का समय पढ़ने को प्रोत्साहित करता है. बिना पढ़े कैसे लिख लिया जाता है, इसे हम आज तक समझ नहीं सके हैं. आज अपने बीच बहुत से लोगों को देखते हैं जो अपने शौक में लिखना तो बताते हैं, किसी न किसी रूप में खुद को लेखक अथवा साहित्यकार भी बताते हैं मगर ऐसे लोग ये नहीं बताते कि वे पढ़ किया रहे हैं. यदि ऐसे लोगों से इतिहास के साहित्यकारों की चर्चा करें तो निपट खाली समझ आते हैं. यदि वर्तमान लेखकों के बारे में जानने का प्रयास किया जाये तो भी इधर-उधर ताकने जैसी स्थिति समझ आने लगती है. यह स्थिति किसी भी साहित्य के लिए, भाषा के लिए सही नहीं है. कहीं न कहीं इससे इस क्षेत्र में भी प्रदूषण दिखाई देने लगता है. 

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