19 फ़रवरी 2020

गुज़रे वक़्त की यात्रा (कविता) - 1675वीं पोस्ट


शब्दों की रवानी भी
नज़र की शोख़ी में
छोटी पड़ जाए,
दिल की आवाज़,
दिल से निकले और
सीधे दिल से टकराए.

वो एक पल के शतांश में
तेरी आँखों का यूँ मटकना,
होंठों में लरजन और
शब्दों का गुम हो जाना.

थाम कर
वक़्त की उड़ान को
एक झटके में,
वक़्त के साथ
गुज़रे वक़्त की यात्रा कर आए,
न जाने कितनी हसीन यादें
एक अदा पर समेट लाए.

++
कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
12-02-2018

++++++++++++++
इस ब्लॉग की 1675वीं पोस्ट. आज कुछ लिखने का मन न किया. दो वर्ष पुरानी एक स्व-लिखित कविता, आपके लिए.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें