31 जनवरी 2020

बिटिया की मित्रता से बढ़ा सामाजिकता निर्वहन का दायरा


समय रफ़्तार से निकलता है ये बात बहुत लम्बे समय से जानते आये हैं. ऐसा बताया भी जाता रहा है कि समय किसी के लिए नहीं रुकता है, बस भागता ही रहता है. ऐसा विगत काफी समय से देख भी रहे हैं जबकि समय कुछ ज्यादा ही रफ़्तार पकड़ता जा रहा है. अब देखिये, ऐसा लग रहा है जैसे अभी बहुत सारे लोग नए साल की शुभकामनायें देकर मुड़ भी न पाए हैं और ये एक महीना समाप्त हो भी गया. इतनी रफ़्तार भी अच्छी नहीं समय की. उसे समझना चाहिए कि इन्सान उसकी इसी रफ़्तार को पकड़ने के लिए, उसकी बराबरी करने के लिए पैदल यात्रा से पहिये के आविष्कार पर आया. इसके बाद जानवरों से चलने वाली गाड़ियाँ, उसके बाद साइकिल, कार, बस, ट्रेन, हवाई जहाज से होता हुआ जेट प्लेन तक में यात्रा करने लगा है. अब तो वह जैसे समय को पीछे छोड़ने के मूड में है और इसी के चलते अन्तरिक्ष विमानों में उसकी यात्रा के चरण आरम्भ हो गए हैं. ये और बात है कि इन विमानों का उपयोग एक देश से दूसरे देश के बीच नहीं किया जाना है मगर क्या यही कम है कि जिन ग्रहों, उपग्रहों को अभी तक बस देखा जाता रहा है, अब उन पर जाने का विचार भी सफल होता दिखने लगा है.


समय का परिवर्तन सदैव-सदैव से होता रहा है. इसी परिवर्तन ने समाज को अनेक आविष्कारों से, खोजों से परिचित करवाया. अनेक नवीन और आश्चर्यजनक उत्पादों के द्वारा उनका लाभ दिलवाया. इसी क्रम में समाज में समय ने संबंधों में भी परिवर्तन करवाए हैं. सामाजिकता में भी परिवर्तन उसी तेजी से दिखाए हैं. समय ने अपनी गति बदली या तीव्र की है तो उसी तीव्रता से उसने संबंधों में, सामाजिकता में भी गति प्रदान की है. ऐसा महसूस स्वयं में उस समय हुआ जबकि एक वैवाहिक समारोह में जाने का या कहें कि ले जाये जाने का अवसर मिला. वैवाहिक समारोह वाले किसी भी परिवार से हमारा कोई परिचय नहीं. वर, वधु से भी भी हमारा कोई सम्बन्ध नहीं, कोई परिचय नहीं. उनके किसी परिजन का भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सम्बन्ध हमसे नहीं, कोई जान-पहचान नहीं. इसके बाद भी शादी समारोह में शामिल होना पड़ा और उसके पीछे का मूल कारण बनी हमारी बिटिया रानी. कक्षा छः में पढ़ने वाली हमारी बिटिया की सहेली की बड़ी बहिन की शादी का पावन अवसर था. उस बिटिया ने अपने ग्रुप की सभी सहेलियों को विवाह समारोह में आमंत्रित किया था. बिटिया रानी उसी दिन से पगलाई घूम रही थीं. उसे भी आनंद महसूस हो रहा था कि किसी शादी का कार्ड उसके नाम से भी घर में आया है.

एक-दो बार बिटिया को समझाया मगर बाद में लगा कि समय का ये परिवर्तन सामाजिक ही है जो अपने दायरे लगातार बढ़ाता है. किसी ने किसी रूप में हमने भी अपने परिवार के सामाजिक दायरे को बढ़ाया ही है. आज उस दायरे को बढ़ाने का काम समय ने बिटिया के हाथों में दे दिया है. यूँ तो सामाजिक कार्यों में उसकी सहभागिता को हम बहुत पहले से बनाये हुए थे मगर इस तरह के सामाजिक निर्वहन का उसका यह पहला अवसर रहा. इस तीव्र परिवर्तन पर आश्चर्य इसलिए भी हुआ क्योंकि अपने समय में हमें याद नहीं पड़ता कि इंटरमीडिएट तक हम किसी मित्र के द्वारा विवाह समारोह के लिए आमंत्रित किये गए हों या किसी मित्र के यहाँ विवाह समारोह में शामिल हुए हों. बहरहाल, बिटिया रानी को वैवाहिक कार्यक्रम में लेकर जाना हुआ. यथास्थिति उसी की मर्जी से रुकना हुआ ताकि उसे विवाह समारोह में पूर्णतः शामिल होने का एहसास रहे. समय की यह गति हमें जितनी परिवर्तनकारी लगी उतनी ही आश्चर्यजनक भी. अपने ही शहर में निवास बनाये रहने के कारण आज भी हमें अपने पारिवारिक सदस्यों के संबंधों की सामाजिकता का भी निर्वहन करना पड़ता है. ऐसे में लगा कि अब बिटिया रानी के संबंधों के दायरे में आकर उसके संबंधों का निर्वहन हाल-फिलहाल तो हमें ही करना होगा, जो उनके मित्रों के जन्मदिन से एक कदम आगे आकर उनके परिजनों के वैवाहिक कार्यक्रमों के रूप में हमारे सामने आयेंगे.

संबंधों के सामाजिक परिवर्तन में पारिवारिक संबंधों में भी परिवर्तन अपनी इसी गति ने करवाए हैं. हम तो तीस वर्ष की उम्र तक अपने पिताजी से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे और आज अभिभावकों-संतानों के सम्बन्ध मित्रवत बनते दिख रहे हैं. सामाजिकता की भावी स्थिति में ये सम्बन्ध कितने सुखद होंगे ये भविष्य के गर्भ में है. फिलहाल तो समय अपनी गति को लगातार बढ़ाता जा रहा है, ये हम लोगों के लिए अनिवार्य जैसी स्थिति है कि हम भी अपनी गति को बढ़ाते हुए उसके साथ कदमताल करते रहें. अन्यथा की स्थिति में पिछड़ने में पल भर भी न लगेगा.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें