10 जनवरी 2020

जीवट आत्मविश्वास के आगे बौनी बनी शारीरिक अक्षमता


उरई के इंदिरा स्टेडियम में बुन्देलखण्ड ओपन बैडमिंटन टूर्नामेंट का आयोजन का आज शुभारम्भ हुआ. पहले दी ही अनेक मैच हुए. उन मैचों सहित पूरे टूर्नामेंट की रिपोर्टिंग की जिम्मेवारी हमारे ऊपर थी. ऐसे में एक-एक मैच को देखा जा रहा था, उनके परिणामों पर, खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर भी रखी जा रही थी. इसी निगरानी के बीच एक मैच सामने से गुजरा जो कहीं न कहीं हमारी दो-तीन साल पुरानी मांग को पूरा करता दिखा साथ ही आश्चर्य में भी डाल गया. जिला बैडमिंटन क्लब विगत कई वर्षों से टूर्नामेंट का आयोजन करता आ रहा है. अपने शौक और अपनी शारीरिक स्थिति के चलते हर बार आयोजकों से निवेदन किया जाता रहा है कि कम से कम एक मैच पैरा खिलाड़ियों के लिए करवा दिया करें. भले ही ये मैच प्रदर्शनी हो मगर ऐसा होना चाहिए. इससे एक तरफ पूरे समाज में सन्देश जाएगा कि जनपद जालौन का जिला बैडमिंटन क्लब पैरा स्पोर्ट्स के लिए सजग है, साथ ही जनपद में तथा जनपद के आसपास के पैरा खिलाड़ियों में भी उत्साह का संचार करेगा.


बहरहाल विगत कई वर्षों की मांग सिर्फ मांग बनकर ही रह गई. इसके पीछे यहाँ के लोगों का, खिलाड़ियों का आगे न आना भी रहा. आज जब बालिका जूनियर वर्ग में एक मैच चल रहा था. उस मैच को हम महज मीडिया की दृष्टि से देख रहे थे. तभी हमारी नजर में वो खिलाड़ी आई जिसकी चर्चा हमसे क्लब के पदाधिकारियों द्वारा पैरा मैच करवाने के सन्दर्भ में हो चुकी थी. वो खिलाड़ी बहुत ही आत्मविश्वास से अपने मैच का जैसे आनंद ले रही हो. जैसा कि उसके खेलने के ढंग से, उसके शॉट लगाने के हावभाव से लग रहा था कि वह पूरी तरह से अपनी जीत के प्रति आशान्वित है. मैच जैसा कि अपेषित था, उसी ने जीता. मैच के समाप्त होने के बाद तमाम तरह की औपचारिकताओं के करने के बाद, कतिपय मीडियाकर्मियों से बातचीत करने के बाद लगा कि वह फ्री है तो उससे बात करने का समय लिया. ऐसा इसलिए नहीं कि उससे महज बात करनी थी बल्कि इसलिए कि एक खिलाड़ी के रूप में उसका सम्मान बना रहे.


उससे अनुमति लेकर ही उसका वीडियो बनाया, जो फेसबुक पर लाइव भी किया, उसकी अनुमति लेकर. ऐसा इसलिए किया कि महज उसकी शारीरिक अवस्था के चलते उसे किसी तरह का विभेद न महसूस हो. आज के दिन वह एक खिलाड़ी थी और वह भी विजेता. ऐसे में उसके साथ व्यवहार भी एक विजेता की तरह किया जाना था. उसकी अनुमति के साथ ही औपचारिक, अनौपचारिक बातचीत के द्वारा उसके बारे में, उसके खेल के बारे में, उसकी इस खेल में आने की स्थिति के बारे में, उसके परिवार के बारे में जानने का प्रयास किया. स्वाति सिंह, जी हाँ, यही नाम है उस जीवट खिलाड़ी का, जिसका दायाँ हाथ जन्म से पूर्ण नहीं है. कोहनी के आगे का हाथ विकसित ही नहीं हो सका. बहरहाल, उसे किसी भी क्षण ये महसूस नहीं हुआ कि उसका एक हाथ पूर्ण नहीं है. अपनी आँखों से उसे मैच में जहाँ सर्विस लेते देखा वहीं अपने सामने बैठकर उसे जूतों के फीते बांधते देखा. 


स्वाति में जितना आत्मविश्वास अपने खेल के प्रति लगा उतना ही भोलापन उसके स्वभाव में नजर आया. कृषक पिता की सबसे बड़ी संतान के रूप में कबड्डी को तिलांजलि देकर वह पी०वी० सिंधु को अपना आदर्श मानकर बैडमिंटन में उतर आई. दसवीं की परीक्षा एक साल पहले उत्तीर्ण करने के बाद स्वाति वर्तमान में प्राविधिक शिक्षा ग्रहण कर रही है. दो छोटे भाई-बहिन गाँव में रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और स्वाति उरई में स्वावलंबी और खिलाड़ी बनने के लिए प्रयासरत है. सबसे बड़ी बात यह कि महज तीन महीने के अभ्यास के बाद उसमें बैडमिंटन के प्रति असीम प्रेम, स्नेह, समर्पण दिखाई देता है. अपने सभी वरिष्ठ साथियों के सहयोग के प्रति वह अभिभूत है. उसका कहना है कि स्टेडियम के सभी साथियों का इतना सहयोग ही है तभी वह आज इस टूर्नामेंट में भाग ले पा रही है. इन्हीं साथियों की बदौलत वह पूरे विश्वास के साथ अपनी तैयारी कर पाई है. ऐसा लगा भी क्योंकि अपने जीवन का पहला मैच, पहला टूर्नामेंट खेलने वाली स्वाति जबरदस्त आत्मविश्वास से भरी दिखाई दी. वर्तमान में पैरा से इतर खुद को सामान्य वर्ग में सबके सामने उतार कर स्वाति ने खुद को ही साबित किया है. कामना है कि जल्द ही वह अपनी प्रतिभा को समूचे देश के सामने प्रदर्शित करे.

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