सोशल
मीडिया ने नियंत्रण के सारे बिन्दुओं को किनारे लगा रखा है. इस मंच पर न रिश्तों
की कोई कद्र है, न संबंधों की, न उम्र की. इसकी उन्मुक्तता ने सभी को आज़ादी दे रखी
है और वह भी पूरी तरह से निरंकुशता वाली. इस निरंकुश आज़ादी की कीमत लोगों के अपमान
से, लोगों की बेइज्जती से चुकाई जा रही है. कई साल पहले कहीं पढ़ रखा था कि देश की
आज़ादी के समय बहुत से लोगों ने अपना विचार इस रूप में दिया था कि भारत अभी उस
स्थिति में नहीं है कि आज़ादी का सही अर्थ समझ सके या फिर उसका सही उपयोग कर सके.
उस समय बहुतेरे लोगों ने आज़ादी के बाद भी कुछ सालों तक एक तरह की तानाशाही की
वकालत की थी. उन स्थितियों में ऐसा किया जाना सही होता या गलत ये तो अब विमर्श का
विषय है मगर अब लगता है कि वाकई देश अभी भी ऐसी स्थिति में नहीं है कि यहाँ आज़ादी
का सही उपयोग किया जा सके. इसके उदाहरण के रूप में सोशल मीडिया के तमाम मंचों को
लिया जा सकता है.
यहाँ
किसी भी विषय पर एकतरफा कुतर्क (इसे बहस कतई नहीं कहा जा सकता है) चलते रहते हैं.
उम्र, अनुभव, ज्ञान को दरकिनार करते हुए बड़े-बड़ों की इज्जत का कचरा यहाँ सहजता से
किया जाने लगता है. किसी भी विषय पर किसी भी व्यक्ति से ऐसी अपेक्षा की जा सकती है
कि वह किसी विशेषज्ञ की तरह अपना ज्ञान उड़ेल सकता है. अपनी बात पर ही, अपने विचार
पर ही जमे रहने की कला इसी मंच पर आसानी से देखने को मिलती है. यहाँ एक अपने अलावा
बाकी सभी के विचार तुच्छ और क्षुद्र की श्रेणी में शामिल मान लिए जाते हैं. ऐसा
व्यक्ति जिसने किसी विषय को पढ़ना तो दूर कभी देखा भी न हो, उस पर भी किसी बड़े विशेषज्ञ
से ज्यादा गंभीरता से अपनी राय दे सकता है. ऐसा किये जाने से न केवल विषय से
सम्बंधित जानकारी का, सामग्री का नुकसान हो रहा है वरन इंटरनेट पर ऐसी सामग्री का
भी जमावड़ा होता जा रहा है जो विशुद्ध रूप से संशय, भ्रम फ़ैलाने का काम कर रही है.
इसी अनावश्यक स्वतंत्रता के चलते सभी को अपनी बात रखने का, अपने विचार पोस्ट करने
का अधिकार मिला हुआ है. बिना किसी सेंसर के, बिना किसी संपादन के ऐसी सामग्री
इंटरनेट पर दिखाई दे रही है जो न केवल भ्रामक है वरन अराजक भी है. इसे रोकने का या
फिर इस पर नियंत्रण लगाने जैसा कोई कदम कहीं से भी उठता हुआ नहीं दिख रहा है.
इस
तरह की अराजक और भ्रामक स्थिति में आने वाली उस पीढ़ी का भी नुकसान होने वाला है जो
इंटरनेट की सामग्री को ही प्रमाणित मानती है. उसके लिए पुस्तकों का, बुजुर्गों के
ज्ञान का कोई अर्थ ही नहीं है. ऐसी स्थिति में अधकचरे ज्ञान से, अशिक्षित लोगों के
विचारों से सोशल मीडिया हरा-भरा बना हुआ है. आने वाले समय में यही भ्रामक और
तथ्यहीन सामग्री ही सामाजिक क्षति करवाएगी. आज भले ही इसके मायने समझ न आ रहे हों
मगर आने वाले समय में इसी तरह की सामग्री के सहारे लोगों के दिमाग को, उनके ज्ञान
को गुलाम बनाया जा सकेगा. आवश्यक नहीं कि प्रत्येक कालखंड में सेना, हथियार से ही
गुलामी लायी जाए. वर्तमान समय तकनीक का है और आने वाला इससे भी ज्यादा तकनीक का,
विज्ञान का, जानकारियों का, तथ्यों का होगा. ऐसे में एक गलत अथवा भ्रामक सामग्री
भी किसी हथियार से कम साबित नहीं होगी. आज के लिए न सही मगर आने वाले कल के लिए,
आने वाली पीढ़ी के लिए आज तथ्यों की गलतियों को, भ्रम को, अराजकता को संभालना होगा.
सोशल मीडिया पर होती अनावश्यक उछल-कूद को नियंत्रित करना होगा.
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