आत्महत्या
एक ऐसा शब्द है जो सिवाय झकझोरने के और कोई भाव पैदा नहीं करता. यह महज एक शब्द
नहीं बल्कि अनेकानेक उथल-पुथल भरी भावनाओं का, विचारों का समुच्चय है. यह शब्द मौत
की सूचना देता है. किसी व्यक्ति के चले जाने की खबर देता है. सम्बंधित व्यक्ति के
परिचितों के दुखी होने का बोध कराता है. इतना ही नहीं है इस एक शब्द में. इसके
अलावा न जाने कितनी त्रासदी, न जाने कितना कष्ट, न जाने कितने आंसू, न जाने कितने
सवाल भी इसमें छिपे होते हैं. ऐसा नहीं है कि जिसने आत्महत्या की है वह इन सबसे
परिचित न था. ऐसा भी नहीं कि जिसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया तो उसे मालूम नहीं था
कि उसके इस कदम के बाद क्या होगा. ऐसा भी नहीं कि वह इस शब्द की विभीषिका के बारे
में जानता नहीं था. सब कुछ जानते-समझते हुए भी कोई व्यक्ति आत्महत्या जैसा जघन्य
कदम उठा लेता है. आखिर क्यों? आखिर कैसे? आखिर किसलिए?
ये
तमाम सारे सवाल हैं जो व्यक्ति के चले जाने के बाद गूंजते रहते हैं. आत्महत्या
जैसा कदम उठा लेने वाले परिजनों को परेशान करते रहते हैं. किसी भी व्यक्ति के चले
जाने के बाद उसके आसपास की तमाम कड़ियों को, घटनाओं को आपस में जोड़-घटाकर आत्महत्या
के कारणों का, कारकों का पता लगाने की कोशिश की जाती है. संभव है कि कई बार असलियत
के करीब पहुँच भी जाया जाता हो और ये भी होता हो कि ऐसा किये जाने के पीछे के कोई
कारण सामने न आ पाते हों. संभव है कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति क्षणिक भावावेश
में इस तरह के कदम उठाता होगा या फिर यह कदम लम्बे समय से चली आ रही उसकी किसी भी
स्थिति की सहनसीमा को पार करने के बाद उठा हो. किसी भी व्यक्ति के द्वारा
आत्महत्या किये जाने के कारण, स्थिति, घटना कुछ भी रह सकता है किन्तु जहाँ तक समझ
आता है कि सभी का मूल अकेलापन, अत्यधिक मानसिक तनाव, परेशानी आदि ही रहता होगा. इसमें
भी मानसिक तनाव और अकेलापन सबसे अधिक प्रभावी होता होगा. इसके पीछे कारण यह है कि
आत्महत्या जैसा भाव अचानक से नहीं आता होगा. ऐसा भाव सम्बंधित व्यक्ति के मष्तिष्क
में कई बार उभरा होगा. ये और बात है कि परेशानी, तनाव या फिर किसी अन्य कष्ट की
अधिकता के चलते वह किसी विशेष अवस्था में ऐसा कदम उठा लेता होगा.
मूल
रूप में आत्महत्या का सम्बन्ध दिमागी भावबोध से जुड़ा हुआ है. घर की स्थिति,
सामाजिक स्थिति, खुद की शारीरिक-मानसिक स्थिति, काम का दवाब, किसी परीक्षा में पास
होने का तनाव, पारिवारिक कलह या फिर अन्य कोई और स्थिति उस व्यक्ति को लगातार
परेशान करती रहती होगी. ऐसे में उसके आसपास का अकेलापन, उसकी समस्या को किसी और के
द्वारा न बांटने की स्थिति, उसकी परेशानी को न समझ पाने का कारण भी आत्महत्या की
तरफ उसे ले जाता होगा. ऐसे में संभव है शत-प्रतिशत सफलता ऐसे कदमों को रोक पाने
में न लगे मगर यदि हम सभी अपने परिजनों, अपने आसपास के लोगों, अपने परिचितों, अपने
सहयोगियों के साथ परस्पर सम्बन्ध बनाये रखें, उनके साथ विचारों का आदान-प्रदान
करते रहें तो ऐसे कदमों को रोकना संभव है. किसी भी समय में किसी भी व्यक्ति के लिए
विचारों का आदान-प्रदान करने के रास्तों का समाप्त हो जाना, अपनी मानसिक समस्या के
प्रकटीकरण की स्थिति का लोप हो जाना ही ऐसे कदमों का कारण बनता है. आज भीड़ के बाद
भी व्यक्ति नितांत अकेला महसूस करता है. ऐसे में अपने आपको, अपने आसपास के वातावरण
को अकेलेपन से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया जाना चाहिए. आज वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन
डे पर ऐसा संकल्प लेकर आत्महत्या रोकने की दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ाया जा सकता
है.
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