13 सितंबर 2019

ख़ुशी तो खुद को खुश रखने में है


ख़ुशी की चाह सबको है मगर उसे पाने का, तलाशने का तरीका बहुत से लोगों को पता ही नहीं. पहली बात तो ये कि अभी बहुत से लोगों को इसका ही पता नहीं कि ख़ुशी आखिर है क्या? उन्हें तो इसका भी भान नहीं कि उनके लिए ख़ुशी क्या है? ऐसे लोग बस दूसरे के चेहरे की प्रसन्नता को, उसकी भौतिक स्थिति को देखकर, उसके रहन-सहन को देखकर ही ख़ुशी का आकलन करने में लगे हैं. दूसरे की दिखाई देने वाली स्थिति को उसकी ख़ुशी समझ कर अपनी ख़ुशी की तलाश में लगे हुए हैं. ऐसे लोगों को पहले यह समझना होगा कि आखिर ख़ुशी होती क्या है. क्या बड़ा मकान होना ख़ुशी है? क्या बहुत बड़े वेतन वाली नौकरी मिल जाना ही ख़ुशी है? क्या बड़ी, लक्जरी कार में सैर करना ही ख़ुशी है? क्या अपने पसंद के व्यक्ति को जीवनसाथी के रूप में पा लेना ही ख़ुशी है? क्या खूब सारा धन जमा कर लेना ही ख़ुशी है? संभव है कि बहुत से लोगों के लिए यही ख़ुशी हो. ये भी संभव है कि बहुत से लोग एक पल को इन्हीं को ख़ुशी मानें मगर अगले ही क्षण उसे नकार दें. 


इस नकार के पीछे खुद उन्हीं की मानसिक स्थिति है. उनकी खुद में संतुष्ट न हो पाने की स्थिति ही उन्हें ख़ुशी का असली स्वाद नहीं लेने देती है. ऐसे लोग आज कार खरीद कर खुश होते हैं मगर अगले ही क्षण कार के चलते ही दुखी हो जाते हैं. ऐसा कार के नए-नए स्वरूप के कारण, नए-नए मॉडल के कारण, उसकी कीमतों के कारण होने लगता है. कार तो महज एक उदाहरण है, ऐसा बहुत सी स्थिति में होता है. असल में लोगों के लिए ख़ुशी का असल अर्थ मालूम ही नहीं. ऐसे लोग सांसारिक स्थितियों में ख़ुशी की तलाश करते हैं. वे ऐसे-ऐसे कदमों में ख़ुशी की चाह रखते हैं जो असल में महज प्रसन्नता देने का माध्यम होते हैं. ऐसी स्थितियों से मिलने वाली ख़ुशी जीवन की तरह क्षणभंगुर होती है. एक पल को ख़ुशी देकर वह स्थिति गायब हो जाती है. ऐसी ख़ुशी मिलने के तुरंत बाद आगे आने वाली ख़ुशी की चाह पैदा हो जाती है. ख़ुशी का पूरा आनंद उठाने से पहले ही किसी दूसरी ख़ुशी की चाह करने लगना ही उस ख़ुशी को समाप्त करना होता है. किसी अपने के परीक्षा में अधिक अंक लाना ख़ुशी पैदा करता है, तत्क्षण उसके आगे की परीक्षा में उससे भी अधिक अंक लाने की आकांक्षा वर्तमान ख़ुशी को समाप्त कर देती है. वर्तमान ख़ुशी का आनंद उठाये बगैर भविष्य की ख़ुशी की प्रत्याशा करने लगना कई बार दुःख का कारण बनता है.

असलियत यह है कि समाज में बहुतायत लोग आन्तरिक ख़ुशी के स्थान पर बाहरी ख़ुशी पाने में लगे हुए हैं. अपने भीतर की ख़ुशी से प्रसन्न रहने के बजाय बाहरी तत्त्वों की दिखावटी स्थिति में अपनी प्रसन्नता पाने का काम करते हैं. सत्यता यह है कि कोई भी व्यक्ति खुश उसी स्थिति में रह सकता है जबकि उसका मन प्रसन्न हो, उसका दिल प्रसन्न हो. अपने भीतर दुःख की स्थिति लेकर कोई व्यक्ति समाज को दिखाने के लिए भले खुश रहे मगर असल में वह खुश होता नहीं है. एक पल को ख़ुशी झलका कर वह सामने वाले की ख़ुशी से ही निराश होने लगता है. ऐसे में किसी भी व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि यदि वह खुश रहना चाहता है तो संसाधनों की अनावश्यक अपेक्षा से बचने का काम करे. भौतिकतावादी वस्तुओं की अनावश्यक संग्रह करने की मानसिकता से बचे. ऐसी सोच केवल और केवल दुःख देने का कार्य करती है. ख़ुशी तो स्वयं को प्रसन्न रखने का माध्यम है. कोई व्यक्ति बिना किसी संसाधन के भी उस समय खुश कहा जा सकता है जबकि वह स्वयं से संतुष्ट है. आज व्यक्ति अपनी ही स्थिति, अपने ही कार्य से संतुष्ट नजर नहीं आता है. वह किसी न किसी रूप में असंतुष्टि ही दर्शाता नजर आता है. ऐसे में उसके पास भले ही अपार संसाधन मौजूद हों किन्तु खुद से पैदा असंतुष्टि ख़ुशी को जन्मने ही नहीं दे सकती. खुद को खुश रखने के लिए सबसे पहले खुद से संतुष्ट होना सीखना पड़ेगा. बिना इसके कोई भी संसाधन अधूरा है, कोई भी स्थिति ख़ुशी देने वाली नहीं है. असल ख़ुशी तो खुद को खुश रखने में ही है. 



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