15 सितंबर 2019

हिन्दी है तो हम हैं


हिन्दी दिवस के बाद हिन्दी की बात करना चर्चा करना कुछ लोगों को ऐसे महसूस होता है जैसे जन्मदिन गुजर जाने के बाद जन्मदिन की बधाई देना. जन्मदिन पर बधाई देना और लेना हमें व्यक्तिगत रूप से कभी पसंद नहीं आया. अब इसे एक तरह की सामाजिक परंपरा कहें या फिर अपने लोगों के बीच होने वाली एक तरह की औपचारिकता कि जन्मदिन की बधाई दे देते हैं. इसके बाद भी बधाई लेना आज भी पसंद न आया. ठीक इसी तरह से कभी भी हिन्दी दिवस पर शुभकामनायें देना, बधाई देना, कार्यक्रमों का आयोजन करना भी कभी रास न आया. आखिर हिन्दीभाषियों को इस एक दिन की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? क्या इस दिन को मनाने का कारण संवैधानिक दर्जा दिलाने जैसी स्थिति का होना रहा है? यदि यही एक कारण है तब तो ऐसे आयोजन करना और भी नहीं होना चाहिए. आखिर अभी हम ही हमारी हिन्दी को उसका असल स्थान उपलब्ध नहीं करवा सके हैं. अभी भी महज पंद्रह वर्ष की छूट बढ़ती ही चली आई है और कब तक बढ़ेगी कुछ कहा नहीं जा सकता.


यह सोचकर प्रसन्न होते रहना कि हिन्दी आज वैश्विक स्तर पर लगातार उन्नति कर रही है, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा में चौथे स्थान पर है तो उसका एक कारण हमारे देश का वैश्विक जगत में बहुत बड़े बाजार की उपलब्धता करवाना है. बाजार की सहज उपलब्धता के कारण सम्पूर्ण विश्व हिन्दी सीखने को मजबूर है. ऐसा सुना है कि किसी कालखंड में चंद्रकांता संतति को पढ़ने के लिए अंग्रेजों ने भी हिन्दी सीखी थी. उस समय अंग्रेजों के हिन्दी सीखने का कारण हिन्दी के प्रति उंनका प्रेम, स्नेह नहीं था. कुछ ऐसा ही आज हो रहा है. यदि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, उनके कर्मचारी यदि हिन्दी सीख रहे हैं, अपने उत्पाद का प्रचार हिन्दी में कर रहे हैं तो उसके पीछे बाजार की शक्ति है, न कि हम हिन्दी भाषियों की शक्ति. सही अर्थों में देखा जाये तो हम हिन्दी-भाषी ही हिन्दी को कमजोर करने का काम करने में लगे हुए हैं. हिन्दी पट्टी के लोगों ने अपनी-अपनी बोलियों को भाषा के रूप में स्वीकार्यता देने-दिलाने की मुहीम छेड़ रखी है. इससे भले ही एक पल को गर्व महसूस हो कि हमारी बोली अब एक भाषा के रूप में मान्य हो रही है मगर उसका नुकसान यह हुआ कि हिन्दी भाषाई लोगों की संख्या में कमी आ गई. यही कमी वैश्विक स्तर पर हिन्दी के लोगों की कम संख्या का प्रदर्शन करती है. यह तो भला हो इंटरनेट का, मुफ्त में मिलते सोशल मीडिया मंचों का, जहाँ हिन्दी भाषी लोगों द्वारा लगातार कुछ न कुछ शेयर पोस्ट किया जा रहा है जो हिन्दी को सशक्त बना रहा है. 

हिन्दी-भाषियों को ध्यान रखना होगा कि उनकी भाषा उनके जन्म से उनको मिली है. उसे सीखने की कोशिश उनके द्वारा नहीं की गई है. यही वह भाषा है जिसके द्वारा वे सोचने का काम करते हैं. इसी भाषा में वे सपने देखने का काम करते हैं. इसी में वे कल्पना के सितारे जड़ते हैं. इसके के द्वारा वे कहानियों का निर्माण करते हैं. ऐसे में जबकि वैचारिक रूप से और काल्पनिक रूप से हिन्दी को उनके द्वारा उपयोग किया जाता रहता है तो फिर एक दिन की वैधानिकता क्यों? गर्व से चौबीस घंटे बोली जाने, महसूस की जाने वाली भाषा के प्रति विश्व रहे, सम्मान रहे, आदर रहे. यही भाव स्वतः ही हिन्दी भाषा को सशक्त, समृद्ध करेगा.

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