सोशल मीडिया पर जिस
दौर में हमारा आना हुआ था तब लोगों ने बताया-समझाया था कि यहाँ बौद्धिक चर्चा होती
है, आपसी विमर्श होता है. बहुतेरे लोगों ने हमारे पढ़ने-लिखने के शौक को देखते हुए
बताया था कि इसके माध्यम से अच्छा पढ़ने को मिलेगा और उससे लिखने में सहायता
मिलेगी. शुरुआती दौर में कुछ महीने ऐसा समझ आया मगर धीरे-धीरे समझ आने लगा कि यहाँ
समय बर्बाद करने के अलावा और कुछ मिलना नहीं है. उस दौर में जो सोचा था उसे अब
चरितार्थ होते देख रहे हैं. अब सोशल मीडिया सार्थक विषयों पर चर्चाओं से इतर
अनावश्यक चर्चाओं में ज्यादा व्यस्त रहने लगा है. ऐसे विषय जिनके माध्यम से किसी
तरह का सामाजिक परिवर्तन किया जा सकना संभव हो सकता है वे नदारद दिखाई देने लगे
हैं. किसी भी विषय पर चाहे वे काम के हों या नहीं, सभी में एक तरह की भेड़चाल दिखाई
देने लगी है. इस भेड़चाल में न केवल युवा, किशोर भाग ले रहे हैं वरन परिपक्व उम्र
के लोग भी भाग ले रहे हैं. ऐसे लोगों को भी भीड़ का हिस्सा बनते देखा जा सकता है जो
अपने आपको बौद्धिकता से भरा-पूरा बताते हैं.
विगत कुछ दिनों से
ऐसी घटनाओं में अचानक से वृद्धि सी होती समझ आई. कुछ दिन पहले जेसीबी काण्ड चला.
उसके बाद तो जिसे देखो वो इस काण्ड को अपनी वाल पर संचालित करता दिखा. इसमें सभी
आयुवर्ग के लोग मौज-मस्ती में शामिल हुए लेकिन उसी का लगातार प्रसारण सा करते रहना
सिवाय बेवकूफी के और कुछ समझ न आया. क्रिकेट मैच हों, किसी राजनेता के साथ घटित
होने वाली कोई घटना हो, राजनैतिक घटनाक्रम हो या फिर कुछ और सबके सब बिना दिमाग
चलाये उसी एक के पीछे हाथ-पैर धोकर पड़ जाते हैं. ये समझने वाली बात है कि सोशल
मीडिया का जिस तरह से दुरुपयोग होने लगा है वह अब न ही विमर्श का मंच बचा है और न
ही किसी सार्थक चर्चा का. किसी भी अच्छे-भले, सार्थक, सकारात्मक विषय को एक कमेंट
के द्वारा गलत दिशा में ले जाया जाता है और फिर उसके सहारे से कुत्सित कदम चलते
दिखाई देने लगते हैं.
असल में लगभग मुफ्त
की स्थिति में मिलता इंटरनेट और उस पर संपादन-सहित, एकदम स्वतंत्र मंच ने सबको
अभिव्यक्ति की आज़ादी दे दी है. उनको इससे कोई सन्दर्भ नहीं कि उनकी इस नाहक
स्वतंत्रता का समाज पर, लोगों पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है या फिर क्या प्रभाव
पड़ेगा. उनको तो इस संपादन-रहित मंच ने सारी सीमायें तोड़ने की सुविधा उपलब्ध करा दी
है. इसका दुरुपयोग करते हुए लोगों के सामने न तो उम्र का लिहाज है, न ज्ञान का, न
अनुभव का, न ही रिश्तों का. ऐसे में सिवाय परेशानी के, आपसी विद्वेष बढ़ने के और
कुछ होता दिख नहीं रहा है. ये स्थिति वर्तमान में तो कष्टकारी समझ आ रही है,
कालांतर में खतरनाक होने वाली है. जिस तरह से युवा पीढ़ी, बच्चे अपनी सुध-बुध खोकर
सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट को, सोशल मीडिया को अपना भविष्य बना बैठे हैं वह दुखद है.
इससे बचने के उपाय न केवल सरकार को, शासन को, प्रशासन को करने होंगे वरन समाज को, परिवार
को भी इस दिशा में सोचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.
आज आपके ब्लॉग का बहुत भ्रमन किया आदरणीय राजा साहब। ब्लॉग मंच के विशेष अतिथि बनने और आपके ब्लॉग के लिए, जो नितांत मन से लिखा गया है, आपको हार्दिक शुभकामनायें और बधाई प्रेषित करती हूँ। क्षमा चाहती हूँ आपके ब्लॉग से परिचित तो हूँ , पर बहुत बार यहाँ आ नहीं पाई 🙏🙏पर अच्छा है आपका ब्लॉग। पढ़ने के लिए काफी कुछ है यहाँ।सादर 🙏🙏
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