यह सार्वभौमिक सत्य है कि समूचे विश्व के क्षेत्रफल का लगभग सत्तर
प्रतिशत हिस्सा पानी से लबालब है. ऐसा होने के बाद भी वैश्विक स्तर पर जल-संकट बना
हुआ है. इसका कारण है और वह कारण उपलब्ध जल का खारा होना है. सत्तर प्रतिशत के
आसपास जल होने में पीने योग्य जल मात्र तीन प्रतिशत ही है, शेष
उपलब्ध जल खारा है. इसमें भी एक समस्या है और वह यह कि उपलब्ध तीन प्रतिशत पेयजल
में से महज एक प्रतिशत जल का उपयोग किया जाता है. औद्योगीकरण, जनसंख्या विस्फोट,
पर्यावरण के साथ खिलवाड़ आदि से जहाँ प्राकृतिक संतुलन डगमगाया है उसी के दुष्परिणाम
से जल का संकट सामने आया है. इस संकट में
वृद्धि उस समय और होने लगी है जबकि जल-प्रदूषण बढ़ने लगा है.
सेंट्रल वाटर कमीशन बेसिन प्लानिंग डारेक्टोरेट, भारत सरकार 1999 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में आने वाले वर्षों में
विभिन्न क्षेत्रों में जल की खपत बढ़ती ही रहेगी. इससे भी जल-संकट और बढ़ने की आशंका
है. इस रिपोर्ट में विभिन्न वर्षों एवं क्षेत्रों में भारत में जल की माँग प्रस्तुत
करते हुए बताया गया है कि वर्ष 2000 में सिंचाई क्षेत्र में
सर्वाधिक जल की माँग 542 बिलियन क्यूबिक मीटर रही जो बढ़कर
वर्ष 2025 में 910 बिलियन क्यूबिक मीटर
हो जाएगी. इसी तरह घरेलू उपयोग में जल की माँग मात्रा वर्ष 2000 में 42 बिलियन क्यूबिक मीटर थी जो बढ़कर वर्ष 2025
में 73 बिलियन क्यूबिक मीटर हो जाएगी. रिपोर्ट
में इसी तरह से उद्योग, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में जल की माँग को दिखाया गया है.
इन तमाम क्षेत्रों में कुल माँग वर्ष 2000 में 634 बिलियन क्यूबिक मीटर रही जिसके वर्ष 2025 में बढ़कर 1092
बिलियन क्यूबिक मीटर होने की सम्भावना इस रिपोर्ट में दर्शायी गई है.
स्पष्ट है कि देश में आने वाले वर्षों में हर क्षेत्र में जल की माँग निरंतर बढ़ती
जा रही है. इस माँग के बढ़ने के अनुपात में पूर्ति न होने के कारण जल-संकट अवश्य ही
बढ़ेगा.
यहाँ एक बात ध्यान रखने योग्य है कि जल-संकट का मूल कारण जल
की बढ़ती माँग नहीं है. अब सवाल यही उठता है कि यदि जल की बढ़ती माँग जल-संकट का कारण
नहीं है तो फिर इसका कारण क्या है? असल में देखा जाये तो देश में जल का उपयोग
नियंत्रित ढंग से नहीं होता है. इसके साथ-साथ जनसामान्य द्वारा जल-संरक्षण के
प्रति भी जागरूकता नहीं दिखाई जाती है. इससे भी जल का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है.
एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 15 प्रतिशत जल का उपयोग होता है शेष बहकर बर्बाद
हो जाता है. इसके अलावा घरों से, उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ भी जल को
प्रदूषित कर रहे हैं. इससे भी पानी का संकट पैदा हो रहा है.
यदि भविष्य के घनघोर जल-संकट से निपटने का विचार मानव अपने मन
में नहीं लाता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि आने वाले समय में जल के लिए
विश्व युद्ध हो जाये. हाल-फिलहाल बड़े-बड़े कदमों के उठाये जाने के बजाय छोटे-छोटे
कदमों को उठाकर जल-संकट से बचा जा सकता है. जल के प्रति प्रत्येक व्यक्ति में
गंभीरता आये इसके लिए आवश्यक है बचपन से ही घरों, स्कूलों के माध्यम से सभी को
जल-संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाये. कुछ कानूनी कदम इस तरह के भी उठाये जाने
चाहिए जिनके चलते लोग जल का दुरुपयोग करने से बचें. भू-गर्भ जल की, पेयजल की बर्बादी
के प्रति उनमें डर का भाव जागे. घर के, उद्योगों के अपशिष्ट का उचित प्रबंधन किया
जाना चाहिए, जिससे कि नदियों में, तालाबों में जल प्रदूषित न हो सके. इसके अलावा
वर्षा के जल का संरक्षण करने सम्बन्धी कदम उठाये जाने की आवश्यकता है. इसके
साथ-साथ यह देखने में आया है कि समाज में धर्म सम्बन्धी कार्यों के प्रति लोगों
में एक सजग भावना रहती है. इसलिए जल संवर्धन सम्बन्धी कार्यों को धार्मिकता से जोड़कर
उनका प्रसार करना चाहिए. सामाजिक स्तर पर किसी धर्म सम्बन्धी कदम की तरफ सभी का ध्यान
सहजता से जाता है और उसके प्रति जागरूकता भी बढ़ती है. आने वाले समय के लिए हम सभी
को आज सजग होना पड़ेगा, आज ही जागरूक होना पड़ेगा अन्यथा की स्थिति में कल को गंभीर
जल-संकट से सामना करना पड़ सकता है.
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही ज्ञानवर्धक और मददगार है।
जवाब देंहटाएंमैं भी ब्लॉगर हूँ
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