12 मई 2019

मतभेद किसी तरह मनभेद में न बदले


विगत पांच सालों से जबसे केंद्र में भाजपा की सरकार आई है तबसे लोगों की मानसिकता में दो तरह के वर्ग साफ़ दिखाई देने लगे हैं, एक भाजपा-समर्थक, दूसरा भाजपा-विरोधी. इन दोनों वर्गों के अपने-अपने पूर्वाग्रह हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसे में दोनों ही वर्ग अपने-अपने विचारों, अपने-अपने तथ्यों को ही प्रामाणिक बताने की कोशिश में लगे रहते हैं. इसी कारण से इन्हीं पांच वर्षों में लोगों के बीच विभेद भी बढ़ता दिखाई दिया है. बहुत से भाजपा-विरोधी लोगों का मानना है कि ऐसा मोदी के कारण हुआ है. क्या वाकई ऐसा है? क्या मोदी ने किसी भी भाषण में, किसी भी रैली में, किसी भी आयोजन में लोगों से कहा है कि जो भी भाजपा या मोदी समर्थक है वह अपने विरोधियों से वैमनष्यता रखे? क्या कहीं भी मोदी ने इन दोनों वर्गों की मानसिकता रखने वालों को आपस में लड़ने-झगड़ने को कहा है? इसका जवाब यदि पूर्वाग्रह से रहित होकर दिया जायेगा तो निश्चित ही नहीं में आएगा. मोदी ने किसी भी क्षण ऐसी कोई बात नहीं की जिससे आपस में वैमनष्यता फैले. इसके बाद भी बहुतायत मोदी-विरोधियों का मानना है कि ऐसा सिर्फ मोदी के कारण हो रहा है.


आपसी वैमनष्यता महज सोशल मीडिया पर ही तैरती नहीं दिख रही है वरन आम जीवन में भी इसे साफ़-साफ़ देखा जा रहा है. रोज के मिलने वालों के बीच भी राजनैतिक वैचारिकी को लेकर बहस हो रही है. कहीं-कहीं यह बहस मनमुटाव के रूप में भी देखने को मिल रहा है. यहाँ समझना यह चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी सोच, अपनी विचारधारा होती है और उसे उसके हिसाब से स्वतंत्र ही बने रहने देना चाहिए. विचारों को लेकर विरोध की स्थिति वहीं आकर खड़ी होती है जहाँ कि एक-दूसरे पर अपने विचारों को आरोपित करने की कोशिश की जाने लगती है. यहाँ यह भी विचार उठता है कि ऐसा केंद्र में भाजपा सरकार आने के पहले क्यों नहीं हो रहा था? या यदि ऐसा हो भी रहा था तो उसका प्रभाव वर्तमान की तरह क्यों नहीं दिख रहा था? साफ़ सी बात है कि विगत लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह की लहर या जिस तरह का आकर्षण नरेन्द्र मोदी के पक्ष में दिखाई दिया वह अपने आपमें अकल्पनीय है. ऐसे में भाजपा के और मोदी के समर्थकों में विश्वास का चरम देखने को मिल रहा है. उनके अन्दर यह विश्वास पैदा हो गया है कि मोदी के साथ भाजपा की, उनकी विचारधारा की जीत सहज रूप में हो सकती है. बस यही बिंदु भाजपा-विरोधियों के लिए सहज स्वीकार नहीं हो रहा है. 

देश की आज़ादी के बाद से लम्बे समय तक कांग्रेस ही जनमानस के बीच कार्य करती रही, सत्ता में बनी रही. यदा-कदा उसे राजनैतिक चुनौती भी मिली मगर वह लम्बे समय तक नहीं टिक सकी. ऐसे में कांग्रेस समर्थक स्वयं को, अपने दल को अपराजेय समझने लगे थे. इस मानसिकता में उस समय कुठाराघात हुआ जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने केंद्र में अपनी सत्ता स्थापित की. उसने न केवल सत्ता स्थापित की वरन मोदी के रूप में वैश्विक नेतृत्व को भी जन्म दिया. ऐसे में कांग्रेस समर्थकों को हताशा, निराशा लगनी स्वाभाविक थी. इसी के चलते न केवल कांग्रेस समर्थक बल्कि अन्य भाजपा-विरोधी भी सक्रियता से ऐसा माहौल बनाने में लग गए कि जिस तरह की विरोधात्मक स्थितियाँ वर्तमान में बनी हैं वे बस भाजपा की या मोदी की देन हैं. असल में यह उनकी राजनैतिक चाल है, जिसके द्वारा वे भाजपा को जनमानस की स्वीकार्यता से बाहर करके उसे सत्ता से बाहर करने का ख्वाब देख रहे हैं. जनमानस में फैली या कहें कि फैलाई गई विरोधी लहर के पीछे सिर्फ और सिर्फ गैर-भाजपाई दलों का हाथ है. इसी लहर के द्वारा वे केंद्र की सत्ता तक पहुँचने का मंसूबा पाले हैं. इस बात को आम जनमानस को समझना होगा. यदि ऐसा नहीं होता है तो आपसी मतभेद मनभेद में बदलते भी देर न लगेगी.

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