अनेक
बार व्यक्तिगत रूप से महसूस किया है कि संबंधों का विस्तार हो मगर भावनात्मकता के
बिना हो. संबंधों में यदि भावनात्मकता का समावेश हो जाये और यदि किसी कारण से
उनमें तारतम्यता न बनी रहे तो कष्ट बहुत होता है. ऐसा किसी और के नहीं वरन स्वयं
के अनुभव से महसूस किया है. ऐसा बहुत लम्बे समय से हमारे साथ होता आ रहा है जबकि
संबंधों का लाभ उठाया जाता रहा, हमारे संपर्कों का लाभ उठाते हुए अन्य लोगों
द्वारा स्वार्थ सिद्ध किये गए मगर विगत एक दशक से ज्यादा समय से ऐसा बहुत नजदीक से
देखने को मिला. कहा जाता है कि जो होता है उसके होने में कोई न कोई अच्छाई छिपी
होती है. हमारा इस विचार से हमेशा विरोध रहा है. कई बार समझ नहीं आता था कि किसी
परिवार के युवा की मृत्यु हो जाने में कौन सी अच्छाई छिपी हुई है? किसी मासूम
बच्चे के साथ हुए अन्याय में किस तरह की अच्छाई छिपी होती है? ऐसा ही कुछ उस समय
महसूस हुआ जबकि खुद को एक दुर्घटना का शिकार बना पाया. समझ नहीं आया कि इस दुर्घटना
के चलते हमारे साथ क्या अच्छा होने वाला है?
बहरहाल,
वो कठिन दौर जैसे आया था, कम से कम वैसे तो नहीं निकला मगर धीरे-धीरे गुजरने की
कोशिश करने लगा. समस्याएं जैसी थीं वैसी भले ही समाप्त न हुईं मगर कम होने लगीं.
इन्हीं के बीच अपने और गैरों की पहचान दिखने लगी. बहुत सारे अपने किसी गैर की तरह
दिखने लगे और बहुत सारे गैर किसी अपने से ज्यादा नजर आये. समय गुजरता रहा, लोगों
का आना-जाना लगा रहा. अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोगों का आना-जाना लगा रहा.
इसमें कुछ सम्बन्ध आत्मीयता की हद तक बने, कुछ सम्बन्ध औपचारिक ही बने रहे.
औपचारिक संबंधों से कभी किसी तरह की समस्या नहीं होती क्योंकि उनसे किसी तरह की
अपेक्षा भी नहीं की जाती है. ऐसा माना जाता है कि औपचारिक सम्बन्ध सिर्फ और सिर्फ सम्बन्ध
बनाये जाने के लिए बने हैं. उसी औपचारिकता में कोई एकाध ही संबंधों का दुरुपयोग कर
जाता है. समस्या उनसे होती है जो आत्मीयता की हद तक जुड़े हुए होते हैं. जिनसे किसी
तरह के अपनेपन की अपेक्षा की जाती है. ऐसे सम्बन्ध जब किसी गैर की तरह से व्यवहार
करते दिखते हैं तो कष्ट होना स्वाभाविक है.
ज़िन्दगी
के इस दौर में कई बार लगता है कि संबंधों का बनाया जाना जहाँ एक तरफ शक्ति प्रदान
करता है तो वहीं दूसरी तरह कमजोर भी बनाता है. संबंधों की आड़ में स्वार्थ-पूर्ति
करने वालों की आज कमी नहीं और यदि ऐसा किसी आत्मीय सम्बन्ध वाले द्वारा किया जाये
तो कष्ट तीव्र होता है. संबंधों के ऐसे निर्वहन में एक तरह की औपचारिकता दिखाई
देने लगती है जिसके चलते संबंधों में कृत्रिमता विकसित होने लगती है. यही
कृत्रिमता सभी तरह की आत्मीयता का ह्रास कर देती है. लगता है कि यदि संबंधों का
दीर्घकालिक विकास चाहिए तो उनको आत्मीयता से बचाए रखना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि
आत्मीयता का विकास संबंधों के बीच किसी न किसी तरह की अपेक्षा का निर्माण करती है
और उसके पूरा न हो पाने की दशा में इसी आत्मीयता का ह्रास होता है. संबंधों का विकास
कभी भी अपेक्षाओं की आधारभूमि पर नहीं हुआ है. इसके लिए संबंधों का निष्पक्ष,
निष्कलंक रहना आवश्यक है.
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